सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल : लोक संस्कृति और पंरपरा के बहुरंगी पर्व गणगौर पर केन्द्रित लघु फिल्म ‘गणगौर गाथा’ इन दिनों आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है। विश्वरंग फाउण्डेशन के लिए इस अनूठे चलचित्र का निर्माण युवा फिल्मकार आदित्य उपाध्याय के निर्देशन में ‘द पोडियम’ टीम ने किया है। ‘गणगौर गाथा’ की विशेष स्क्रिनिंग 13 अप्रैल को शाम 5 :30 बजे तुलसी नगर स्थित नर्मदा सभागार में की जाएगी। पोडियम टीम, युवा सिनेकर्मियों तथा कलाकारों का रचनात्मक समूह है जो सांस्कृतिक विरासत और सामाजिक सरोकारों के उद्देश्यपूर्ण फिल्मांकन के लिए सक्रिय है। गत वर्ष इस टीम ने ‘गणगौर पर्व’ के अवसर पर मध्यप्रदेश के पूर्व और पश्चिम निमाड़ के गाँव-देहातों की सांस्कृतिक यात्रा की। इस दौरान इस पर्व से जुडे़ अनुष्ठान, तथा पारंपरिक नृत्य-संगीत और अन्य संलग्न गतिविधियों का वास्तविक फिल्मांकन किया। संस्कृतिकर्मी-साहित्यकार संतोष चौबे के मुख्य मार्गदर्शन में निर्मित इस फिल्म की परिकल्पना और शोध आलेख के साथ ही वाचक स्वर संस्कृतिकर्मी-कला समीक्षक विनय उपाध्याय का है। इस फ़िल्म का वीडियो संपादन निखिल कुमार अरमान आर्य सिन्हा तथा अभिषेक कनौजिया ने किया है। छायांकन अनिरूद्ध चौथमल, आशीर्वाद मंडल और हेमांग कुरील का है। ध्वन्यांकन तनिष्क भूरिया ने किया है जबकि कोरियोग्राफ़ी लोक नर्तक संजय महाजन की है।

यह फ़िल्म बताती है कि एक सिरे पर आध्यात्म के गहरे रंग, अनुष्ठान की पवित्रता, पूजा-प्रार्थना और निवेदन तो दूसरे सिरे पर लोकरंजन में आकंठ डूबा तन-मन एक आदिम सुख की इच्छा से भरकर गणगौर में थिरकने लगता है। दूसरे सिरे पर रनुबाई यानी निमाड़ की स्त्री को ही अधिष्ठात्री देवी मानकर उसका गुणगान किया जाता है। गीत की कड़ियों और लय की लड़ियों में लहराते संगीत तो यहाँ दूर देश को ब्याही रनुबाई की अपनी सखियों के संग ठिठोली है, तो प्रेम, ममत्व, करूणा, वात्सल्य और वियोग भी है।
यह फ़िल्म लोकपर्व के उन महत्वपूर्ण पक्षों को भी सामने लाती है जहाँ धर्म, संस्कृति, विज्ञान और अध्यात्म मिलकर मनुष्यता का उत्सवी रूपक बन जाते हैं। यह जीवंतता हमें ऐतिहासिक अनुभव की ओर ले जाती है। जीवन, प्रकृति और संस्कृति को हम एक ही डोर में बंधा पाते हैं। गीत, संगीत और नृत्य की रेशमी झालरों से सजा जीवन का रंगमहल यहाँ अलग ही चहक-महक से भरा है।
चैत्र महीने के दसवें दिन से आगामी नौ दिनों तक मध्यप्रदेश के निमाड़ की धरती गणगौर की धन्यता को गाने मचल उठती है। इन गीतों में स्मृतियों की दुनिया खुलती है। स्त्री की सृजन शक्ति, उसकी अभिलाषाएँ, उसके सरोकार, उसकी नियति और दैवीय महिमा के दिव्य स्वरूपों को जीवन्त होता देखा जा सकता है। इन गीतों की गुंजार बिखरती है तो देह अनायास ही थिरक उठती है।
आदित्य उपाध्याय फ़िल्म प्रॉडक्शन में स्नातकोत्तर हैं। उनकी शॉर्ट फ़िल्म ‘लेटर बॉक्स’ का चयन चित्र भारती अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव के लिए हुआ है। उन्होंने महेश्वर और मांडू के पुरातात्विक वैभव, साहित्य तथा कलाओं के अंतरराष्ट्रीय महोत्सव ‘विश्वरंग’ और रबीन्द्रनाथ टैगोर के कृती-व्यक्तित्व पर एकाग्र लघु फ़िल्मों का निर्माण स्वयं के निर्देशन में किया है।

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