किसानों ने एक बार फिर अपनी आवाज़ बुलंद करने का ऐलान किया है। पंजाब में 16 से 18 दिसंबर तक होने वाले ट्रैक्टर मार्च और रेल रोको आंदोलन ने केंद्र और राज्य सरकारों का ध्यान आकर्षित किया है। इस बार मुद्दा कृषि ऋण, स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को कानूनी दर्जा देने का है।

क्यों जारी है किसानों का संघर्ष?
कृषि देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, लेकिन किसान खुद आर्थिक संकटों से जूझ रहे हैं। बढ़ते कर्ज, फसलों की गिरती कीमतें और जलवायु परिवर्तन के असर ने उनकी स्थिति और दयनीय बना दी है। जब भी सरकार से वादे पूरे नहीं होते, किसान मजबूर होकर आंदोलन का सहारा लेते हैं।

पंजाब जैसे कृषि प्रधान राज्य में किसानों का असंतोष नई बात नहीं है। परंतु इस बार का आंदोलन सरकार और किसानों के बीच संवाद की कमी को फिर से उजागर करता है।

क्या हैं किसानों की प्रमुख मांगें?
कृषि ऋण माफी: लगातार बढ़ते कर्ज ने किसानों को आर्थिक संकट में डाल दिया है।
एमएसपी को कानूनी दर्जा: किसान चाहते हैं कि फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य का कानूनी प्रावधान किया जाए, ताकि वे बाजार में शोषण से बच सकें।
स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें: किसानों की आय दोगुनी करने के लिए आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग लंबे समय से की जा रही है।
पर्यावरणीय क्षति की भरपाई: पराली जलाने पर किसानों को अपराधी ठहराने की बजाय स्थायी समाधान की मांग।
क्या कर सकती है सरकार?
किसानों के मुद्दों का समाधान ढूंढना केवल नीतिगत निर्णयों का विषय नहीं है, बल्कि यह देश की सामाजिक और आर्थिक संरचना को संतुलित करने की चुनौती है।

संवाद की पहल: सरकार और किसान संगठनों के बीच ईमानदार और खुले संवाद की जरूरत है।
दीर्घकालिक नीति: कृषि क्षेत्र के लिए स्थायी समाधान ढूंढने की आवश्यकता है, जो किसानों को आत्मनिर्भर बनाए।
कृषि के लिए वित्तीय सुरक्षा: सब्सिडी और समर्थन के नए तरीके विकसित कर किसानों के कर्ज और वित्तीय बोझ को कम किया जा सकता है।
रेल रोको आंदोलन: समाधान या समस्या?
रेल रोको जैसे आंदोलन देश के आर्थिक तंत्र को प्रभावित करते हैं। यात्री और माल ढुलाई में रुकावट से न केवल आम जनता को असुविधा होती है, बल्कि औद्योगिक उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखला पर भी प्रभाव पड़ता है।
फिर भी, यह आंदोलन सरकार को यह याद दिलाता है कि किसानों की समस्याओं की अनदेखी की गई तो इसका असर व्यापक होगा।

किसान आंदोलन और लोकतंत्र
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में आंदोलन करना किसानों का अधिकार है। परंतु सवाल यह है कि क्या बार-बार आंदोलन करना ही समाधान है? क्या सरकार और किसान मिलकर कृषि क्षेत्र की समस्याओं का स्थायी समाधान नहीं निकाल सकते?

आगे की राह
किसानों और सरकार के बीच तालमेल ही इस समस्या का दीर्घकालिक समाधान हो सकता है। सरकार को चाहिए कि वह कृषि सुधारों को किसानों के नजरिए से देखे और उनकी मांगों को प्राथमिकता दे।

निष्कर्ष:
किसानों का आंदोलन उनकी पीड़ा और संघर्ष का प्रतीक है। ट्रैक्टर मार्च और रेल रोको जैसे कदम हमें यह याद दिलाते हैं कि कृषि क्षेत्र को नजरअंदाज करना देश की प्रगति को धीमा कर सकता है। सरकार को किसानों की समस्याओं का तत्काल समाधान निकालने की आवश्यकता है।

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