आध्यत्मिकता सरल शब्दों में स्व सृजन से स्व प्रलय की मौलिक प्रक्रिया है-वीरजी

 

जब हम अपने आप से यानि प्रकृति से दूर होते हैं या आत्मन में कुछ अव्यवस्था आ जाती है इसलिए हमे हर तरफ सब होता है पर कुछ कम रहता है जिसे हा इंसान मिसिंग कहता है। इसको अक्सर दूर करने के लिए वह सब कुछ यत्न करता है पर वह नहीं करता जो उसे करना चाहिए। यानि माँ प्रकृति से अपने संबंधन पर काम पर वह कुछ नहीं सोचता। यह इसलिए होता है क्योंकि हम अपने आधार जो हमारा मूल है उससे अपने आपको स्वतंत्र समझने के भ्रम में आ जाते हैं।

यहीं से हम अपने स्वयं के बनाए छदम अस्तित्व का निर्माण करते हैं, जो हमारा होता है और ककून के कीड़े की तरह हम अपने उपर लिहाफ दर लिहाफ परतें ढकते जाते हैं और एक दिन उसी मे दबकर मर जाते हैं।

आइये हम इसी मूल प्राकृतिक गुण जो हमें हमारे मूल अस्तित्व से मिला है जिसे माँ प्रकृति कहते हैं जिसने हमें बनाया है यहाँ से वहाँ तक जो भी दिखता है सब उसका ही विस्तार और विसर्जन है, हम अंश है।

जब हम इस भाव पर काम करते हैं तब तब हम पुनः: सृजन के प्रलय की प्रक्रिया का विकास देखते हैं। जब यह प्रक्रिया गति लेती है हमें हमारे अस्तित्व के हर कोण पर सुहानेपन का अहसास दिखने लगता है।

आध्यत्मिकता सरल शब्दों में स्व सृजन से स्व प्रलय की मौलिक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के चलते हम सुहानेपन को जीना आरंभ कर देते हैं। जिसे मनीषी अक्सर आनंदम कहते रहे जो मेरी समझ से तनिक नीचे की अवस्था है। हरित वीर दर्शन यदि माँ से जुड़ाव को कहता है तो उसका कारण यही है। सुहानपन हरित वीर दर्शन का तात्विक गुण के रूप में हम मान सकते हैं।

इसिलिये हमारे अंतर में सुहानापन प्रकृति का एक मौलिक गुण है, जो हमें उसकी सुंदरता और अद्वितीयता की ओर आकर्षित करता है। प्रकृति की हर एक रचना, चाहे वह एक छोटा सा फूल हो या एक विशाल पर्वत, हमें अपनी ओर खींचती है और सुकून का अहसास कराती है।

 

यह गुण हमें याद दिलाता है कि प्रकृति में एक विशेष आकर्षण और शांति है। जब हम जंगलों, पहाड़ों, नदियों या समुद्र के किनारों पर होते हैं, तो वहाँ की ताजगी और प्राकृतिक सौंदर्य हमें मंत्रमुग्ध कर देते हैं। यह हमारे मन और आत्मा को शांति और संतुलन प्रदान करता है।

 

सुहानापन हमें यह भी सिखाता है कि प्रकृति की सुंदरता न सिर्फ देखने में बल्कि महसूस करने में भी है। इसके कारण हम रोजमर्रा की चिंताओं और तनावों से मुक्त होते हैं और एक नई ऊर्जा और सकारात्मकता का अनुभव करते हैं। इसलिए, प्रकृति के इस अद्भुत गुण का सम्मान और संरक्षण करना हमारा कर्तव्य है।

आइये हम सभी इस गृह पर रहते हुए इसी धारा पर मानव जीवन जो संभावनाओं से भरपूर है उसके दीर्घ काल तक अस्तित्व संरक्षण के लिए हरित वीर माँ प्रकृति की सेवा में उत्कट प्रेम को प्रकट करें और आगामी जीवनों के लिए सुरक्षित  भविष्य देने के वायदे में  सम्मिलित हों। प्रकृति प्रेम की इबारत ग्रीन डोनर।

आलेख: वीरजी साहिब, राष्ट्रीय ध्वज वाहक हरित वीर वाहिनी, ग्रीन डोनर, ईईआरसी भारत

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