सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: साल 1920 में मिडिल ईस्ट में तनाव के बीच ये बात ब्रिटेन के एक अखबार में छपी थी। तब से अब तक 104 साल गुजर चुके हैं, लेकिन मिडिल ईस्ट आज भी उसी तरह जल रहा है।
इजराइल ने शनिवार को एक के बाद एक ईरान के 20 ठिकानों पर हमला किया। ये 1 अक्टूबर को इजराइल पर 200 मिसाइलों से हुए ईरानी हमले का पलटवार था। लेबनान और गाजा में भी इजराइल के हमले जारी हैं।
लगभग 3 घंटे जारी रहे हमले में 100 से ज्यादा फाइटर जेट्स ईरान में घुसे। इजराइल ने इसे ऑपरेशन पछतावे का दिन कहा है।
पर ऐसा क्यों है कि मिडिल ईस्ट में कभी शांति नहीं होती, यहां पिछले 30 साल से हर चार साल में एक जंग लड़ी गई है। इसकी वजह अंग्रेजों का 104 साल पहले लिया गया वो फैसला है जिसमें अरब देशों का बंटवारा हुआ।
3 समझौते जिनसे बिगड़ी मिडिल ईस्ट की तकदीर…
आज का मिडिल ईस्ट प्रथम विश्व युद्ध से पहले ऐसा नहीं दिखता था। जैसे ही युद्ध खत्म हुआ, ब्रिटेन और फ्रांस ने इस इलाके पर कब्जा किया और इसे अपने हितों के मुताबिक बांटना शुरू कर दिया।
आज तक ये देश इन विवादित सीमाओं की वजह से एक-दूसरे के साथ जंग लड़ रहे हैं।
प्रथम विश्व युद्ध से पहले मिडिल ईस्ट के बड़े हिस्से पर ऑटोमन एम्पायर (तुर्किये) का कब्जा था। 1918 में जंग खत्म होने से पहले ही ब्रिटेन और फ्रांस ने मिडिल ईस्ट पर अपना दावा मजबूत किया। यूरोप में बैठकर मिडिल ईस्ट का नया नक्शा बनाने के लिए 3 अहम समझौते हुए।
- साइक्स-पिकॉट समझौता- 3 जनवरी 1916, ब्रिटेन के डिप्लोमेट मार्क साइक्स और फ्रांस के डिप्लोमेट फ्रांसिस जॉर्ज पिकॉट के बीच एक सीक्रेट मुलाकात हुई। इसमें तय हुआ कि युद्ध के बाद हर साथी सदस्य को अरब देशों में हिस्सा मिलेगा। तय हुआ कि एंटोलिया (तुर्किये) का एक हिस्सा, सीरिया और लेबनान फ्रांस के अधीन रहेंगे।
वहीं, मिडिल ईस्ट का दक्षिणी और दक्षिणी पश्चिमी हिस्सा यानी इराक और सऊदी अरब ब्रिटेन को मिलेगा। फिलिस्तीन को इंटरनेशनल एडमिनिस्ट्रेशन में रखा गया था। इसके अलावा बचे हुए इलाके रूस और इटली को देने का फैसला हुआ।
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