सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: संस्कार भारती द्वारा आयोजित एक संगोष्ठी में पद्मश्री नृत्यगुरु, शिक्षाविद् और लेखक पुरु दाधीच ने गुरु-शिष्य परंपरा पर अपने विचार साझा किए। तुलसी नगर स्थित संस्कार भारती सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम में निदेशक दाधीच ने शिक्षा की तीन विधाओं—गुरु सेवा, आदान-प्रदान और दक्षिणा—की व्याख्या की।
उन्होंने कहा, “आज शिक्षा दान नहीं बल्कि दक्षिणा का विषय बन गई है। जिनके पास धन है, वे ही शिक्षण संस्थानों से शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं, जबकि आर्थिक संसाधनों की कमी के चलते कई प्रतिभाएं दबकर रह जाती हैं।”
कार्यक्रम में नृत्यगना हर्षिता दाधीच ने दाधीच की रचनाओं पर कथक नृत्य प्रस्तुत किया। देवी स्तुति और कालिका स्त्रोत की प्रस्तुति ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इन नृत्य संरचनाओं में दाधीच ने प्राचीन अंगों और भगवान शिव के नृत्य का समावेश किया, जिससे शिव और शक्ति के संगम का अनुभव कराया गया।

निदेशक दाधीच ने कहा कि गुरु-शिष्य परंपरा आदिकाल से चली आ रही है। पहले ऋषि-मुनियों के आश्रमों में शिष्य विद्या के साथ खेती और गुरुसेवा करते थे। कालांतर में पारिवारिक गुरुकुल बने, जहां गुरु अपने शिष्यों की शिक्षा और भरण-पोषण का पूर्ण उत्तरदायित्व लेते थे।
कार्यक्रम में विभा दाधीच, मानस भवन के अध्यक्ष रघुनंदन शर्मा, ध्रुपद गायक उमाकांत गुंदेचा, और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोक कला संयोजक निरंजन पांडा भी उपस्थित थे।
निदेशक दाधीच ने भारतीय ज्ञान परंपरा के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा, “ज्ञान का उद्गम भगवान शिव से हुआ। इसे बांटना भारतीय संस्कृति का मूल है। हमें अपनी परंपराओं और भाषाओं को संरक्षित करते हुए उन्हें आधुनिक दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ाना होगा।”

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