आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस/आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल : जब तक बैठने को न कहा जाए खड़े रहो, ये पुलिस स्टेशन है तुम्हारे बाप का घर नहीं…(जंजीर-1973 )

कितने आदमी थे….(शोले- 1975)

मेरे पास मां है.. (दीवार- 1975)

डॉन का इंतजार तो 12 मुल्कों की पुलिस कर रही है…(डॉन- 1978)

ये बेहतरीन डायलॉग्स लिखे हैं राइटर जोड़ी सलीम-जावेद ने। इस जोड़ी के सलीम खान आज 88 साल के हो चुके हैं। नई जनरेशन इन्हें सुपरस्टार सलमान खान के पिता के रूप में जानती है, लेकिन 70-80 के दशक में उनका वो रुतबा था कि हर फिल्ममेकर उनसे ही अपनी फिल्में लिखवाना चाहता था, चाहे फीस या शर्त कुछ भी हो।

इंदौर शहर में रहते हुए दोस्तों के लव लेटर लिखने से शुरू हुआ राइटिंग का सिलसिला हिंदी सिनेमा के सबसे बेहतरीन स्क्रिप्ट राइटर बनने पर मुकम्मल हुआ।

हालांकि, उन्हें इंदौर से बॉम्बे राइटर नहीं बल्कि हीरो बनने के लिए बुलाया गया था। हीरो बनकर तो सलीम को कोई पहचान नहीं मिली, लेकिन राइटर बनकर उन्होंने कई आम लड़कों को सुपर स्टार बना दिया। सालों पहले सलीम खान ने एक मशहूर राइटर से कहा था कि देखना एक दिन राइटर किसी फिल्म के हीरो से ज्यादा फीस लेंगे। उस समय तो लोगों ने उनका जमकर मजाक उड़ाया, लेकिन उन्होंने ये सच कर दिखाया।

आज सलीम साहब के जन्मदिन के खास मौके पर जानिए उनकी बेहतरीन जिंदगी से जुड़े कुछ अनसुने किस्से-

सलीम खान का जन्म 24 नवंबर 1935 को बालाघाट, मध्यप्रदेश में हुआ था। उनके दादाजी अफगानिस्तान से भारत आए थे। उनका परिवार सरकारी नौकरी की तलाश में बालाघाट से इंदौर आकर बस गया,जहां उनके पिता अब्दुल राशिद खान को इंडियन इंपीरियल पुलिस में नौकरी मिल गई थी। कुछ समय बाद वो DIG रैंक तक पहुंच गए। सलीम खान महज 5 साल के थे, जब उनकी मां को ट्यूबरकुलोसिस हो गया। बीमारी के चलते घर के सबसे छोटे बेटे सलीम को उनके पास जाने की इजाजत नहीं होती थी।

4 साल बाद 9 साल की उम्र में उन्होंने मां को खो दिया। जब वो 14 साल के हुए तो 1950 में उनके पिता भी गुजर गए। उनके बड़े भाई ने पिता की जगह नौकरी कर उनकी परवरिश की। जब वो कॉलेज में थे, तब ही उनके बड़े भाई ने उन्हें कार दिला दी थी, जबकि उस जमाने में कार होना काफी बड़ी बात हुआ करती थी।

एक दिन सलीम खान इंदौर में हुई एक शादी में पहुंचे थे। उस शादी में फिल्म ‘गांव की गोरी’ बनाकर मशहूर हुए फिल्ममेकर के. अमरनाथ भी पहुंचे थे। सलीम खान बेहद हैंडसम थे, जिन पर अमरनाथ की नजरें टिक गईं। उन्होंने तुरंत सलीम खान को बुलाकर अपनी फिल्म का ऑफर दे दिया। सलीम ने झिझकते हुए कहा कि उन्हें एक्टिंग नहीं आती। इस पर अमरनाथ ने उन्हें दिलीप कुमार का उदाहरण देकर कहा कि उन्होंने भी कभी एक्टिंग नहीं सीखी, लेकिन वो स्टार हैं। जब सलीम राजी हुए तो डायरेक्टर के. अमरनाथ ने उन्हें तुरंत 1000 रुपए थमा दिए और अपना पता देकर बॉम्बे (अब मुंबई) बुला लिया।

सलीम खान मुंबई तो पहुंच गए, लेकिन उन्हें न उस शहर की जानकारी थी, न इंडस्ट्री की। मरीना गेस्ट हाउस पहुंचकर उन्होंने 55 रुपए में एक कमरा ले लिया। एक कमरे में दो बिस्तर लगे हुए थे। दूसरे बिस्तर में जो शख्स आया, उसके जोरदार खर्राटों ने सलीम की नींद इस कदर उड़ाई कि उन्होंने ठान लिया कि जल्द से जल्द 110 रुपए में पूरा कमरा बुक करूंगा।

के. अमरनाथ के पास पहुंचे तो उन्हें फिल्म बारात में साइड हीरो का रोल मिल गया। उन्हें पहले ही हजार रुपए साइनिंग अमाउंट के दिए जा चुके थे। इसके अलावा उन्हें हर महीने के 400 रुपए दिए गए। फिल्म चल नहीं सकी और सलीम खान को भी कोई खास पहचान नहीं मिली। फिल्म से मिले पैसे भी कम पड़ने लगे और उन्हें गुजारा करने के लिए भाइयों से पैसे मंगवाने पड़े। उनके गुड लुक की बदौलत उन्हें बी-ग्रेड फिल्मों में छोटे-मोटे रोल मिल जाया करते थे, लेकिन उनसे उन्हें पहचान नहीं मिली। उनके खाते में 1966 की हिट फिल्में तीसरी मंजिल, सरहदी लुटेरा और 1967 की दिवाना, छलिया बाबू भी रहीं, लेकिन इनसे भी कोई फायदा नहीं मिला। ये बात खुद सलीम साहब ने अरबाज खान के चैट शो द इन्विंसिबल में कही थी।