23 मई 2025 को भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने वित्त मंत्रालय को ₹2.1 लाख करोड़ का ऐतिहासिक लाभांश हस्तांतरित करने का प्रस्ताव पारित किया। यह राशि पिछले वर्ष के ₹87 हज़ार करोड़ के मुकाबले ढाई गुना से अधिक है, जो सरकार के लिए एक बड़ी वित्तीय राहत है। लेकिन इस लाभांश का अर्थ और उसका प्रभाव क्या होगा, यह विचारणीय है।

मुख्य बिंदु:

राजकोषीय राहत और बजट घाटे में कमी

चालू वित्त वर्ष में भारत का बजट घाटा GDP का 5.1% रहने का अनुमान है। इस लाभांश से यह अनुमानतः 0.4 प्रतिशत-बिंदु तक घट सकता है। इससे सरकारी कर्ज का बोझ कम होगा, बांड यील्ड में गिरावट आएगी, क्रेडिट रेटिंग में सुधार होगा और विदेशी निवेश आकर्षित होगा। हालांकि, यह राहत तभी टिकाऊ होगी जब व्यय अनुशासन सख़्त रखा जाए।

लाभांश का उपयोग: विकास परियोजनाओं पर केंद्रित होना आवश्यक

महामारी के बाद से पूंजीगत व्यय अर्थव्यवस्था की रीढ़ बना है। रेलवे, लॉजिस्टिक्स, हरित ऊर्जा, रक्षा स्वदेशीकरण और ग्रामीण डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर जैसी परियोजनाओं को सतत वित्तपोषण की जरूरत है। यदि लाभांश का बड़ा हिस्सा इन बहुवर्षीय योजनाओं में लगाया जाता है, तो इसका गुणन प्रभाव (Multiplier) 1.8 तक हो सकता है, जो अर्थव्यवस्था को स्थायी गति देगा। यदि धन तात्कालिक सब्सिडी या उपभोग के लिए उपयोग किया गया, तो इसका प्रभाव क्षणिक होगा।

मुद्रास्फीति और मौद्रिक-वित्तीय सामंजस्य

वर्तमान में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) 4.4% है, जो आरबीआई के 4±2% के लक्ष्य के अंदर है, पर खाद्य पदार्थों में महंगाई बनी हुई है। यदि अतिरिक्त धन नकद हस्तांतरण या MSP बोनस में दिया जाता है, तो मांग बढ़कर मुद्रास्फीति को बढ़ावा दे सकती है। इसलिए मौद्रिक और वित्तीय नीतियों का सामंजस्य जरूरी है। आरबीआई ने ओपन मार्केट ऑपरेशंस (OMO) निष्क्रिय रखने का संकेत दिया है, अब वित्त मंत्रालय को खर्च में रचनात्मकता दिखानी होगी।

संस्थागत स्वायत्तता और लाभांश वितरण का पारदर्शिता

इतना बड़ा लाभांश राजनीतिक विमर्श का विषय बन सकता है। क्या आरबीआई केंद्र सरकार का ‘कैश-काऊ’ बन रहा है? आरबीआई अधिनियम की धारा 47 के तहत लाभांश वितरण का विवेक आरबीआई बोर्ड को दिया गया है। इस बार विदेशी मुद्रा पोर्टफोलियो मुनाफे और ट्रेज़री आय के कारण लाभांश बड़ा हुआ। आरबीआई को “सप्लस निर्धारण सूत्र” को पारदर्शी बनाकर भविष्य में राजनीतिक हस्तक्षेप से बचने की जरूरत है।

निष्कर्ष:

₹2.1 लाख करोड़ का लाभांश सरकार के लिए विकास ऊर्जा है, लेकिन इसे स्थायी विकास पूंजी में बदलना ही असली चुनौती है। यदि यह राशि सड़कों, हरित हाइड्रोजन, प्रौद्योगिकी पुनर्निवेश, और रक्षा स्वदेशीकरण जैसे क्षेत्रों में खर्च की गई, तो यह इतिहास रचेगा। अन्यथा, यह महज एक बड़ी लेखा प्रविष्टि बनकर रह जाएगा, जिसका आर्थिक प्रभाव सीमित होगा।

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