दुनिया जब समावेशी और प्रौद्योगिकी-आधारित शिक्षा की ओर तेज़ी से बढ़ रही है, भारत एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहाँ डिजिटल परिवर्तन उसके उच्च शिक्षा संकट का एक प्रभावी समाधान बन सकता है।
1.4 अरब से अधिक जनसंख्या वाले भारत में अभी कुल मिलाकर सिर्फ 1,100 विश्वविद्यालय हैं, जबकि अमेरिका – जिसकी आबादी भारत का एक चौथाई है – वहाँ 6,000 से अधिक विश्वविद्यालय हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में उच्च शिक्षा को वास्तव में लोकतांत्रिक बनाने के लिए 30,000 से अधिक संस्थानों की आवश्यकता होगी।
ऐसे में ओपन एंड डिस्टेंस लर्निंग (ODL), यानी मुक्त एवं दूरस्थ शिक्षा प्रणाली, डिजिटल माध्यमों से सशक्त होकर शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा बदलाव ला रही है। केंद्रीय विश्वविद्यालय राजस्थान (CURAJ) जैसे संस्थान इस दिशा में अगुवाई कर रहे हैं। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने 2024–25 सत्र के लिए CURAJ की छह विभागों में ODL और ऑनलाइन कार्यक्रमों को स्वीकृति दी है।
> “डिजिटलीकरण सीमाओं और बाधाओं से परे शिक्षा को संभव बनाता है,” CURAJ के एक अधिकारी ने कहा। “हमारा लक्ष्य है – जो शिक्षा से वंचित हैं, उन्हें शिक्षा तक पहुँचाना।”
🌐 वैश्विक दिशा, स्थानीय चुनौतियाँ
ODL को अब अंतरराष्ट्रीय या सीमापार शिक्षा के रूप में भी देखा जा रहा है, और UNESCO जैसी संस्थाएँ इसे वैश्विक स्तर पर समान शिक्षा उपलब्ध कराने के मॉडल के रूप में अपना रही हैं। लेकिन विकासशील देशों में इसकी राह में तीन बड़ी अड़चनें हैं – पहुँच, वहनीयता और उपलब्धता।
भारत की इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (IGNOU) और मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय मिलकर 30 लाख से अधिक छात्रों को पढ़ा रहे हैं, लेकिन देश के कई हिस्सों में आज भी इंटरनेट, डिजिटल साक्षरता और भाषायी अवरोध जैसे मुद्दे डिजिटल शिक्षा को सीमित करते हैं।
> “इंटरनेट पर सामग्री तो है, लेकिन करोड़ों के लिए वह अब भी दूर की चीज़ है,” रिपोर्ट में कहा गया। “वाणी आधारित इंटरफेस, स्थानीय भाषाओं में कंटेंट और सस्ता तकनीकी समाधान – यही सफलता की कुंजी हैं।”
💡 लागत में लाभ, लेकिन विषय की समझ ज़रूरी
एशिया में डिजिटल शिक्षा पारंपरिक तरीकों की तुलना में काफी किफायती है। लेकिन कई विदेशी संस्थान महंगे पाठ्यक्रम पेश करते हैं, जो स्थानीय छात्रों की पहुँच से बाहर हो जाते हैं।
भारत को चाहिए कि वह व्यापक पहुँच और स्थानीय ज़रूरतों के अनुसार पाठ्यक्रम विकसित करे – केवल व्यवसाय और आईटी नहीं, बल्कि कृषि, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षक प्रशिक्षण जैसे विषयों पर भी ध्यान दिया जाए।
🔄 संस्थानों में बदलाव जरूरी
भले ही डिजिटल तकनीक आ गई हो, लेकिन अधिकांश भारतीय संस्थान अब भी पुरानी प्रणाली पर टिके हैं – जटिल प्रवेश प्रक्रियाएं, सीमित समयबद्ध शिक्षा और पारंपरिक मूल्यांकन प्रणाली।
विशेषज्ञों का कहना है कि अब समय है व्यवस्था के पुनर्गठन का, जहाँ आईसीटी (सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी) का समुचित उपयोग हो।
> “यह केवल तकनीक अपनाने की बात नहीं है, सोच में बदलाव की ज़रूरत है,” रिपोर्ट में ज़ोर दिया गया
नई शिक्षा नीति (NEP-2020) ने इस दिशा में एक आधार तैयार किया है, लेकिन इसे ज़मीन पर लाने के लिए संस्थागत सुधार और नीतिगत प्रतिबद्धता ज़रूरी होगी।
🚀 आगे की राह
आज दुनिया भर में 20% छात्र ODL जैसे कार्यक्रमों से जुड़ चुके हैं, लेकिन अभी भी सिर्फ 6% संस्थान ही इन्हें संचालित कर रहे हैं।
भारत के पास यह अवसर है कि वह डिजिटल शिक्षा को अपनाकर सामाजिक और भौगोलिक असमानता को दूर करे। CURAJ जैसे विश्वविद्यालयों की पहल और UGC की मंज़ूरी भारत को एक सीमाहीन, समावेशी और वैश्विक प्रतिस्पर्धा वाली शिक्षा प्रणाली की ओर अग्रसर कर सकती है।
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