सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल:  हमारी धरती दिन-पर-दिन गर्म होती जा रही है. पिछले दो साल मानव इतिहास के सबसे गर्म साल रहे. वैज्ञानिक सालों से चेतावनी दे रहे हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते पृथ्‍वी एक दिन इतनी गर्म हो जाएगी कि वहां से वापसी कर पाना संभव नहीं होगा. दुनियाभर में एक्सट्रीम वेदर इवेंट्स की संख्या बढ़ रही है. अगर फौरन कुछ नहीं किया गया तो शायद हमारी प्यारी धरती रहने लायक न बचे. ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए कई तरीके सुझाए गए हैं, लेकिन अभी तक कुछ कारगर साबित नहीं हुआ. अब एक नई स्टडी में वैज्ञानिकों ने सुझाया है कि पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल में हर साल लाखों टन हीरे के ‘चूरन’ का छिड़काव करने से पृथ्वी को ठंडा रखने में मदद मिल सकती है |

यह सुझाव भले ही किसी फैंटेसी फिल्म का प्लॉट लगता हो, लेकिन वैज्ञानिकों को लगता है कि यह काम कर सकता है. जलवायु विज्ञानियों, मौसम विज्ञानियों और पृथ्वी विज्ञानियों की एक साझा टीम ने Geophysical Research Letters में छपी स्टडी में यह सुझाव सामने रखा है. इस टीम का नेतृत्व ETH ज्यूरिख के जलवायु विज्ञानी सैंड्रो वट्टियोनी ने किया. वट्टियोनी और उनकी टीम ने यह गणना करके देखा कि ग्लोबल कूलिंग के स्ट्रेटोस्फेरिक एरोसोल इंजेक्शन (SAI) तरीके  के लिए कौन सी सामग्री सबसे सही होगी |

हवा में छोटे-छोटे कणों से कैसे ठंडी होगी धरती?

वैज्ञानिक लंबे समय से पृथ्‍वी को ठंडा करने के लिए SAI विधि पर काम करते रहे हैं. इस तरीके में, वायुमंडल में एरोसोल को इंजेक्ट किया जाता है ताकि सूर्य के प्रकाश और अतिरिक्त गर्मी को वापस अंतरिक्ष में परावर्तित किया जा सके. अभी तक इस काम के लिए सल्फर डाइऑक्साइड सबसे मुफीद मानी जाती है. ऐसा इसकी हमारे वायुमंडल में इसकी प्राकृतिक उपस्थिति के कारण है. लेकिन इसका एक नकारात्मक पहलू भी है – यह दुनिया भर में अम्लीय वर्षा को प्रेरित कर सकता है, ओजोन परत को नुकसान पहुंचा सकता है, और शायद निचले वायुमंडल में अप्रत्याशित मौसम परिवर्तन का कारण बन सकता है |

रिसर्चर्स ने एक 3D क्लाइमेट मॉडल बनाया और उसमें विभिन्न तरह के एरोसॉल जोड़कर देखे. उन्होंने देखा कि ये कण प्रकाश और ऊष्मा के साथ किस प्रकार प्रतिक्रिया करेंगे, हवा में उनकी आयु कितनी होगी, एक साथ समूह बनाने की उनकी क्षमता क्या होगी, तथा वे आखिरकार पृथ्वी पर किस प्रकार वापस आएंगे.

हीरे का ‘चूरन’ क्यों है सबसे सही?

कैल्साइट, हीरा, एल्यूमीनियम, सिलिकॉन कार्बाइड, एनाटेस, रूटाइल और सल्फर डाइऑक्साइड सहित सात संभावित उम्मीदवारों पर टेस्ट किया गया. बड़े पैमाने पर हुए प्रयोग ने एक अजीब हल पेश किया: हीरे का चूर्ण |

वट्टियोनी और उनकी टीम की रिसर्च के मुताबिक, कुछ सौ खरब डॉलर मूल्य के हीरे के नैनो पार्टिकल्स से यह काम हो सकता है. रिसर्च टीम के अनुसार, न केवल हीरे का प्रत्येक कण पर्याप्त समय तक हवा में रहेगा और अपना काम करेगा, बल्कि वे आपस में चिपकेंगे भी नहीं. और न ही वे विषाक्त पदार्थ बनाएंगे, जिसकी वजह से अम्लीय वर्षा होती है |

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रिसर्च टीम ने अपने मॉडल के आधार पर हर साल 5 मिलियन टन सिंथेटिक हीरे की धूल को वायुमंडल में डालने की सिफारिश की है. उनका कहना है कि इससे 45 सालों में पृथ्वी को लगभग 1.6 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा किया जा सकता है. लेकिन इसकी लागत बहुत ज्यादा है. अनुमान है कि इस पर लगभग 200 ट्रिलियन डॉलर का खर्च आएगा |

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