सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल : मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्व विद्यालय में देवी अहिल्याबाई होल्कर की 300 वीं जन्म शताब्दी के अवसर पर विश्वविद्यालय के सभागार में “एक भारत श्रेष्ठ भारत” विषय पर एक व्याख्यान कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस अवसर पर मुख्य वक्ता एल. एस. निगम, पूर्व कुलगुरु शंकराचार्य प्रोफेशनल विश्वविद्यालय भिलाई, छत्तीसगढ़ ने अपने उदबोधन में कहा कि, देवी अहिल्याबाई ने शिव के मंदिरों के जीर्णोद्धार में बहुत बड़ा योगदान दिया है।
उन्होंने भारत की सांस्कृतिक एकता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। प्रो. निगम ने एक भारत श्रेष्ठ भारत की रूपरेखा प्रस्तुत की। उन्होंने भारत की प्राचीन परंपराओं की चर्चा करते हुए ऋग्वेद में उल्लेखित सात प्रमुख नदियों की चर्चा करते हुए कहा कि, वैदिक, आर्यों की कर्मभूमि सरस्वती, सिंधु, सतलज, व्यास, रावी, चिनाब आदि नदियों के आसपास रही है और यहीं पर आर्य संस्कृति का वि स्तार हुआ। ऋग्वेद में 10 राजाओं के युद्ध का वर्णन है। ये सब आर्य जाति के ही राजा थे। उत्तर वैदिक काल में भारत हिमालय से विंध्य तक आर्यावर्त के नाम से जाना जाता था।
ऐसा कहा जाता है कि, अगस्त्य ऋषि ने आर्य संस्कृति का विस्तार दक्षिणापथ में किया। भारत में उत्तरापथ और दक्षिणापथ दोनों शामिल थे। बौद्ध इतिहास में 16 महाजनपदों का उल्लेख मिलता है। उन्होंने कहा कि, भारत में जन और जनपद महत्वपूर्ण हैं । हमें हमारे संविधान में भी इसका उल्लेख मिलता है। जब उसकी प्रस्तावना में “हम भारत के लोग” और “भारत अर्थात इंडिया” का उल्लेख किया जाता है। उन्होंने कहा कि, इंडिया शब्द की उत्पत्ति ग्रीक शब्द से हुई है। जिसमें सिंधु नदी को इंडस नदी कहा जाता था। उसी से इस क्षेत्र का नाम इंडिया पड़ा। उन्होंने कहा भारत की विविधता एक खूबसूरत उद्यान की तरह है। भारत में 6 प्रजातियों केलोग निवास करते हैं। यहाँ ग्रीक, शक, हूड और कुषाण ये सब आए और भारतीय संस्कृति में एकसार हो गए। उनका भारतीय प्रजातियों में ही सम्मिलन हो गया। भाषा के नजरिया से देखें तो भारत में दो भाषा परिवार हैं, एक इंडो आर्यन भाषा परिवार और दूसरा द्रविडियन भाषा परिवार।
उन्होंने कहा कि, भारत में नौ दर्शन प्रचलित हैं , जिनमें से तीन नास्तिक दर्शन हैं और 6 आस्तिक दर्शन हैं l राष्ट्र की अवधारणा काफी बाद की है। भारत एक सांस्कृतिक,आध्यात्मिक तथा धार्मिक राष्ट्र शुरू से रहा है। उन्होंने कहा भारत में दर्शन अरर्ण्यक से प्रारंभ होते हैं। उपनिषदों से ही गीता निकलती है। भारत की संस्कृति अरर्ण्यक संस्कृति रही है। यही हमारी विविधता का मूल स्रोत भी है। प्रो निगम ने कहा कि, भारत राज्यों का संघ है। बिना राज्य के देश की कल्पना नहीं हो सकती और राज्यों की सीमा ही भारत की सीमा है। राज्यों को संसद ने बनाया है। वे देश का अभिन्न हिस्सा हैं । भारत के लोगों में विविधता है और इनमें सबसे बड़ी एकता का स्रोत हमारी नागरिकता है। हम सभी का एक संविधान है, एक झंडा है, इस दृष्टि से भारत एक राष्ट्र है। उन्होंने कहा कि, हमें भारतीय परिवेश, सांस्कृतिक विरासत, आध्यात्मिकता और दार्शनिक विरासत को सहेज कर रखने की आवश्यकता है।
मुख्य अतिथि वैद्यनाथ लाभ, कुलगुरु, सांची- बौद्ध भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय, सांची ने कहा कि, भारत एक अत्यंत प्राचीन राष्ट्र है। देश एक भौगोलिक इकाई है, जबकि राष्ट्र एक सांस्कृतिक इकाई है। समय के साथ सीमाएं बदलती रहती हैं। उन्होंने कहा कि, इतिहास के नए शोधों से पुरानी कई भ्रांतियां समाप्त हो रही हैं। नालंदा, उदंतपुरी, विक्रमशिला, सोमपुर, वल्लभी, कांचीपुरम आदि ये हमारे विद्या के केंद्र थे। उन्होंने कहा कि, शंकराचार्य ने देश के अलग-अलग हिस्सों में जाकर चार मठों की स्थापना की और यह हमारी सांस्कृतिक एकता की पहचान है। भारत में विद्वानों की बहुतायत्ता रही है। प्रो बैद्यनाथ लाभ ने कहा, कि भारत के लोह पुरुष सरदार पटेल ने 565 रियासतों का एकीकरण किया और इसे एक देश के रूप में एकीकरण किया। उन्होंने कहा कि, भारत राजनीतिक रूप से भले विभाजित रहा हो लेकिन सांस्कृतिक रूप में एक राष्ट्र हमेशा था। हमें इतिहास के अपने गौरवमय पक्ष को हमेशा याद रखना चाहिए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय के कुलगुरु संजय तिवारी ने कहा कि, इतिहास वही बनाते हैं जो इतिहास को याद रखते हैं। सभ्यताएं आती जाती रहती हैं। किन्तु संस्कृति हमेशा बनी रहती है। उन्होंने अहिल्याबाई होल्कर को याद करते हुए कहा कि, वह एक कुशल प्रशासक होने के साथ-साथ कुशल रणनीतिकार भी थीं और वह जनता के कल्याण को हमेशा आगे रखती थीं। जनता से हमेशा सीधा संवाद करती थीं । निदेशक तिवारी ने भारतीय संस्कृति के संबंध में कहा कि, प्रकृति एवं मनुष्य में हम देवत्व का भाव देखते हैं। हमारा प्रकृति के साथ सहज जुड़ाव रहा है।
कार्यक्रम में विषय प्रवर्तन विश्वविद्यालय के आंतरिक गुणवत्ता आश्वाशन केंद्र की उपनिदेशक अनिता कौशल द्वारा किया गया। इस अवसर पर संचालन विश्वविद्यालय की वरिष्ठ सलाहकार निधि रावल गौतम द्वारा किया गया। कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन उत्तम सिंह चौहान संकाय अध्यक्ष, कला एवं मानविकी संकाय मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय द्वारा किया गया। इस अवसर पर भोपाल के प्रतिष्ठित विद्वान तथा विश्वविद्यालय के अधिकारी, कर्मचारी एवं शिक्षकगण भारी संख्या में उपस्थित रहे।

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