भोपाल। सिस्टम परिवर्तन अभियान के अध्यक्ष आजाद सिंह डवास ने ओ.बी.सी के साथ-साथ अनुसूचित जाति एवं अनूसूचित जनजाति में भी क्रीमीलेयर को लेकर प्रदेश के मुख्यम्रंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिख कर बताया कि 1953 में गठित काका कालेलकर आयोग ने वर्ष 1955 में ओ.बी.सी की जातियों को आरक्षण देने की सिफारिश की थी लेकिन तत्कालीन कांग्रेसी सरकारों ने इसे लागू ही नही किया। 1977 में केन्द्र की जनता पार्टी सरकार ने ओ.बी.सी को आरक्षण देने हेतु मण्डल आयोग के नाम से दूसरे पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया जिसकी एक मात्र सिफारिश यानि केन्द्रीय सेवाओं में 27 :आरक्षण देने के प्रावधान को 7 अगस्त 1990 को लागू करने की घोषणा की गई। लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय के पालन में वर्ष 1993 से केन्द्रीय सेवाओं में ओबीसी के लिए 27 : आरक्षण लागू हो सका। माननीय न्यायालय ने ओ.बी.सी को केन्द्रीय सेवाओं में आरक्षण देने के साथ ही इसमें क्रीमी लेयर का प्रावधान कर दिया जो ओबीसी नेताओं को पसंद नहीं आया। त्रास्दी यह है कि ओ.बी.सी के ज्यादातर राजनेता और सामाजिक संगठन या तो क्रीमीलेयर को हटाने की मांग करते रहे हैं अथवा इसकी वर्तमान सीमा 8 से बढ़ाकर 12 लाख करने की मांग कर रहे हैं ताकि उनके स्वार्थों की पूर्ति होती रहे। इनकी यह मांग कतई सही नहीं है। ओ.बी.सी के ये राजनेता और सामाजिक संगठन जो संपन्न जातियों से संबंध रखते हैं, वे दिखावा तो समस्त ओबीसी जातियों के कल्याण का करते हैं लेकिन वास्तव में ये अपनी-अपनी जातियों के वर्चस्व को ही बनाये रखना चाहते हैं ताकि ओ.बी.सी के आरक्षण का उन्हें ही फायदा मिलता रहे।
मेरे मतानुसार ओ.बी.सी के साथ-साथ अनुसूचित जाति एवं अनूसूचित जनजाति में भी क्रीमीलेयर लगाना समय की मांग है। अजीब विडम्बना है कि आज एससी/एसटी के अनेक परिवारों की दूसरी और तीसरी पीढ़ी आरक्षण का लाभ ले रही है जबकि इनकी बहुसंख्यक आबादी पहली पीढ़ी के लिए ही आरक्षण का लाभ लेने हेतु जद्दोजहद कर रही है। एससी/एसटी के ज्यादातर बुद्धिजीवी और नेता अक्सर यह कह कर क्रीमी लेयर को असंगत बताते हैं कि अगर एससी/एसटी में क्रीमी लेयर लग गया तो आरक्षण की लड़ाई कौन लड़ेगा ? इनके अनुसार गरीब एससी/एसटी के लोग अपनी लड़ाई लड़ने में अक्षम हैं। इस तर्क से तो यही प्रतीत होता है कि एससी/एसटी का जो मलाईदार तबका विगत 75 वर्षो में तैयार हो गया है, वे ही आगे भी आरक्षण की मलाई खाना चाहते हैं। एससी/एसटी का मलाईदार तबका यह भी तर्क देता है कि अगर एससी/एसटी में क्रीमी लेयर लग गया तो आरक्षित पद खाली रह जावेंगे। उनका यह तर्क भी खोखला है। आज गरीब एससी/एसटी के बच्चे भी इतनी मात्रा में शिक्षित हो गये हैं कि वे आरक्षित पदों को आराम से भर सकें। ज्यादातर दलित बुद्धिजीवी यह भी तर्क देते नहीं थकते हैं कि संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण का प्रावधान नहीं है। मेरा मानना हैं कि संविधान निर्माताओं ने उस समय की परिस्थितियों के अनुसार सामाजिक एवं शैक्षिक आधार रखा था लेकिन आज हालात काफी बदल गये हैं। इन्हें भी बदले हुएं हालातों में गरीब एससी/एसटी के हित में सोचना चाहिए। गौरतलब है कि एससी/एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर का सिद्धांत लागू करने हेतु सर्वोच्च न्यायालय में कई याचिकाएं वर्तमान में लम्बित हैं। राजनैतिक नुकसान को देखते हुए केन्द्र सरकार भी इसे जानबूझकर लम्बित रखे हुए है। एससी/एसटी में क्रीमी लेयर का ना लगना भले ही एससी/एसटी के मलाईदार तबके के हित में हो लकिन यह गरीब एससी/एसटी के हित में कतई नहीं है।
साथ ही यह भी अत्यंत आवश्यक है कि क्रीमी लेयर के लिए आय निर्धारित करने हेतु जो मानदंड केन्द्र व्दारा बनाये गये हैं, उनमें भी पारदर्शिता लाई जावे। फिलहाल जो मानदंड बनाये गये हैं, उनमें ओबीसी व्यापारियों के लिए बनाये गये मानदंडों के दुरूपयोग की पूरी सम्भावना है। शासकीय सेवाओं के मामले में केवल वही क्रीमी लेयर में आयगा जिसके माता या पिता में से कोई एक सीधे क्लास-1 भर्ती हो, माता एवं पिता दोनों सीधे क्लास-2 भर्ती हों या पिता क्लास-2 भर्ती हो लेकिन 40 वर्ष की आयु से पूर्व क्लास-1 में पदोन्नत हुआ हो परन्तु यदि पिता क्लास-3 में भर्ती हुआ है और वह 40 वर्ष से पूर्व क्लास-1 बन गया हो तब भी क्रीमी लेयर में नहीं आयेगा। कृषि भूमि के मानदंडों में भी सुधार की जरुरत है। उदाहरणार्थ किसी कृषक के पास कितनी भी असिंचित भूमि हो, वह क्रीमी लेयर में नहीं आयेगा। सिंचित भूमि के प्रकण में सीलिंग लीमिट का 85 प्रतिशत से ज्यादा होने पर ही क्रीमी लेयर में आयेगा। कृषि आय क्षेत्रफल के आधार पर ही निर्धारित होती है। वार्षिक आय में वेतन और कृषि भूमि की आय को नहीं जोड़ा जाता है। आय के निर्धारण में इतनी विसंगतियां हैं कि मध्यप्रदेश के पिछड़े वर्ग के मंत्री की पुत्री का चयन भी ओबीसी वर्ग में हुआ बताते हैं जबकि यह मंत्री बहुत बड़े किसान हैं।
उपरोक्त परिस्थितियों एवं विसंगतियों के मद्देनजर आपसे अनुरोध है कि क्रीमी लेयर के मानदंडों में आवश्यक सुधार करने एवं ओबीसी के साथ-साथ एससी/एसटी में भी क्रीमी लेयर लगाने हेतु प्रस्तावकेन्द्र सरकार को भेजने का कष्ट करें ताकि इन तीनों वर्गों के वास्तविक गरीबों को आरक्षण का लाभ मिल सके, जो संविधान निर्माताओं की भी मंशा रही होगी।