सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: अध्यात्म और रंगमंच में अटूट संबंध है सनातन परंपरा में ऋग्वेद से पाठ सामवेद से गीत अथर्ववेद से रस यजुर्वेद से अभिनय लेकर पांचवें वेद नाट्यशास्त्र की रचना की गई है। संस्कार भारती भोपाल में क्रिएटिव युवा ग्लोरियस भारत CYGB की मासिक संगोष्ठी में यह विचार रखे वरिष्ठ रंगकर्मी निदेशक संजय मेहता ने रखे। निदेशक मेहता रंगमंच,अभिनय एवं आध्यात्म विषय पर अपना व्याख्यान दे रहे थे। उन्होंने नाट्यशास्त्र के अध्ययन की अनिवार्यता को स्पष्ट किया।उन्होंने अपने वक्तव्य में बताया कि नैतिकता और धार्मिकता के मध्य अंतर यह है कि नैतिकता की सीमा हो सकती है किंतु धर्म की नहीं। धार्मिकता हमे बुराई से दूर रखती है।
संगोष्ठी के द्वितीय सत्र की प्रमुख वक्ता निराला सृजन पीठ की निदेशक साधना बलवटे ने लोकमाता अहिल्याबाई होलकर पर आधारित महानाट्य पर अपने विचार व्यक्त किए।उन्होंने अपने वक्तव्य का आरंभ वसुधैव कुटुंबकम् की भावना को बताते हुए कहा कि आज से 300 वर्ष पूर्व जन्मी अदभुत बालिका जो कि इतिहास में देवी अहिल्या के रूप में प्रसिद्ध हुईं। उन्होंने अनेकों संघर्ष के बाद ही यह व्यक्तित्व पाया। देवी अहिल्याबाई समरसता की जीवंत मिसाल थीं।
विचारशील,आदर्शवादी, कुशल नेतृत्व महिला के रूप में आज भी उनके कार्य युवा पीढ़ी को मार्गदर्शन देने का काम करते हैं। उन्होंने लोकमंगल के लिए कई कार्य किए जिस कारण से वह लोकमाता के रूप में जगत में जानी हैं। उन्होंने योग्यता का सम्मान करते हुए अपनी पुत्री का विवाह सामान्य व्यक्ति से किया,क्योंकि वह राजसी वैभव से अधिक योग्यता और पराक्रम को स्वीकार करती थीं। कार्यक्रम में फिल्म अभिनेता राजीव वर्मा विशेष रूप से उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संयोजक हिम्मत गोस्वामी ने किया।
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