भोपाल । राजधानी के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में देश की पहली ट्रांसलेशनल मेडिसिन विंग बनकर तैयार हो चुकी है। इसका सीधा लाभ आम नागरिकों व मरीजों को होगा। यहां पर कोरोना संक्रमण जैसी जानलेवा महामारी से बचाव हेतु शोध किए जाएंगे। एम्स के ट्रांसलेशनल मेडिसिन विभाग में यह कार्य किया जाएगा। इस विभाग का मकसद ही गंभीर व अचानक फैलने वाली बीमारियों की रोकथाम व उसके इलाज को खोजना होगा। इस विभाग के शोध की मुख्य अवधारणा ‘बेंच टू बेड साइड रिसर्च होगी। एम्स प्रबंधन का कहना है कि यदि कोरोना या जीका जैसे वायरस का हमला होता है तो जीनोम सिक्वेसिंग की जाएगी। बच्चों में किसी विशेष प्रकार की बीमारी दिखी तो उसपर शोध किए जा सकेंगे। एम्स प्रबंधन की तरफ से बताया गया है कि इस विभाग में शोध के लिए मॉलिक्यूलर बायोलॉजिस्ट, बायोटेक्नोलॉजिस्ट, बायो इंजीनियर, क्लीनिकल फार्मासिस्ट, बायो इन्फॉमेर्टेशियन, माइक्रोबायोलॉजिस्ट और बायोमेडिकल साइंटिस्ट जोड़े गए हैं। शोध में न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, यूएसए सहित विश्व के प्रतिष्ठित संस्थानों के चिकित्सकों को इसमें शिामल किया है। एम्स भोपाल ट्रांसलेशनल मेडिसिन में पीजी कोर्स शुरू करेगा। एम्स में बेंच टू बेडसाइट अनुसंधान के मकसद के तहत मरीज के इलाज क लिए किस दवा और उपकरण की जरूरत है उसके हिसाब से तकनीक विकसित की जाएगी। फिर उत्पाद बनाए जाएंगे। यह विभाग इस पर भी काम करेगा कि कोई दवा या उपकरण बना है तो वह संबंधित मरीजों के उपयोग योग्य कैसे बनेगा। एम्स के प्रवक्ता डॉ. अरनीत अरोरा ने बताया कि उक्त विभाग की स्थापना एम्स के डायरेक्टर (प्रोफेसर) सरमन सिंह ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के सामने प्रस्ताव रखा था। जिसे स्वीकृति मिलने के बाद यह विभाग अस्तित्व में आया है। यह डायरेक्टर की दूरगामी सोच का परिणाम है। इसका सीधा लाभ आम नागरिकों व मरीजों को होगा।