ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा जारी 2025 की करप्शन परसेप्शन इंडेक्स (CPI) रिपोर्ट भारत के लिए एक गंभीर चेतावनी है। तीन पायदान नीचे गिरकर 96वें स्थान पर पहुंचना केवल एक आंकड़ा नहीं, बल्कि यह हमारे प्रशासनिक तंत्र, शासन व्यवस्था और समाज की नैतिक स्थिति पर भी सवाल खड़े करता है।

छोटी गिरावट, बड़ी समस्या

भारत का स्कोर 38 पर आ गया है, जो 2023 में 39 और 2022 में 40 था। मात्र एक अंक की गिरावट ने भारत की रैंकिंग को तीन स्थान नीचे धकेल दिया। यह दर्शाता है कि भ्रष्टाचार की समस्या धीरे-धीरे लेकिन लगातार गहराती जा रही है। वैश्विक औसत स्कोर 43 है, जो यह दर्शाता है कि भारत औसत से नीचे है और भ्रष्टाचार पर नियंत्रण के प्रयास उतने प्रभावी नहीं रहे हैं, जितने होने चाहिए थे।

एशियाई देशों में भी बिगड़ते हालात

अगर हम अपने पड़ोसी देशों से तुलना करें, तो चीन 76वें स्थान पर स्थिर बना हुआ है, जबकि पाकिस्तान की स्थिति और खराब हो गई है। श्रीलंका और बांग्लादेश की रैंकिंग भी चिंता का विषय है। स्पष्ट है कि एशिया में भ्रष्टाचार का स्तर धीरे-धीरे बढ़ रहा है, और सरकारें इस समस्या को नजरअंदाज कर रही हैं।

सरकार की नीतियां और हकीकत

भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत सरकार ने कई योजनाएं और कानून लागू किए हैं, जैसे कि लोकपाल अधिनियम, डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देना, और सरकारी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता लाना। हालांकि, इन उपायों के बावजूद भ्रष्टाचार पर काबू पाने में सफलता नहीं मिली है। भ्रष्टाचार केवल रिश्वतखोरी तक सीमित नहीं, बल्कि यह प्रशासनिक अक्षमता, राजनीतिक प्रभाव, और कमजोर न्यायिक व्यवस्था के रूप में भी सामने आता है।

कौन जिम्मेदार?

इस गिरावट की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार की नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की है। आम नागरिक से लेकर उच्च प्रशासनिक अधिकारी तक, भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने में किसी न किसी रूप में शामिल होते हैं। ‘चाय-पानी’ से लेकर बड़े घोटालों तक, भ्रष्टाचार हमारे रोजमर्रा के जीवन में घुस चुका है।

क्या किया जाना चाहिए?

1. कड़े कानून और निष्पक्ष क्रियान्वयन – भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों को केवल कागजों तक सीमित नहीं रखा जाना चाहिए, बल्कि इनका सख्ती से पालन होना चाहिए।

2. प्रशासनिक पारदर्शिता – सरकारी टेंडर, फंड आवंटन और नौकरियों में पारदर्शिता लाने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का उपयोग किया जाना चाहिए।

3. नागरिकों की भागीदारी – आम जनता को जागरूक किया जाए कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाए और किसी भी तरह की अनियमितता की रिपोर्ट करे।

4. राजनीतिक सुधार – चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और राजनीतिक दलों की फंडिंग को लेकर सख्त नियम बनाए जाएं।

5. न्यायिक प्रक्रिया में तेजी – भ्रष्टाचार के मामलों में जल्द से जल्द सजा हो, ताकि लोगों में कानून का डर बना रहे।

 

निष्कर्ष

भारत की भ्रष्टाचार रैंकिंग में गिरावट महज आंकड़ों की बात नहीं, बल्कि एक गहरी समस्या का संकेत है। जब तक सरकार, प्रशासन और नागरिक मिलकर इस मुद्दे पर गंभीरता से काम नहीं करते, तब तक भारत का ‘ईमानदार और भ्रष्टाचार-मुक्त’ बनने का सपना अधूरा ही रहेगा। इस समय सख्त कदम उठाने की जरूरत है, वरना यह समस्या हमारी आर्थिक और सामाजिक प्रगति में और बड़ी बाधा बन सकती है।

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