सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्कआईटीडीसी इंडिया ईप्रेस / आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: आज की स्ट्रगल स्टोरी में कहानी टीवी इंडस्ट्री के पॉपुलर एक्टर अनिरुद्ध दवे की है। जयपुर में जन्मे अनिरुद्ध का पहला ख्वाब ही एक्टर बनने का था। जब इस सपने को पूरा करने मुंबई आए तो उन्हें जगह-जगह ठोकर मिली।

पैसों की कमी की वजह से गुजारे के लिए क्लब में काम करना पड़ा। 2021 में वे कोविड की चपेट में आ गए। हालत इतनी खराब हो गई कि उन्होंने जीने की उम्मीद ही छोड़ दी थी।

शाम करीब 4 बजे हमने अनिरुद्ध दवे से मुलाकात की। थोड़ी औपचारिकता के बाद उन्होंने हमें अपनी यह कहानी सुनाई।

अनिरुद्ध ने बताया कि वे 2008 से एक्टिंग से जुड़े हुए हैं।

बातचीत की शुरुआत में हमने पहला सवाल अनिरुद्ध से कोविड के समय के बारे में किया। 2021 में अनिरुद्ध को कोरोना हुआ था। अनिरुद्ध ने बताया, ‘वह समय वाकई मेरे लिए बहुत भयानक था। पता ही नहीं चला कि कब मुझे कोविड हुआ और मैं कब अस्पताल में भर्ती हो गया। मैं 57 दिन भर्ती रहा।

खुद को शांत रखने के लिए पेट के बल सोता था। ऐसा इसलिए करता था, क्योंकि अगर एक करवट लूं तो आसपास कोई अंतिम सांसे गिन रहा होता था, दूसरी करवट लूं तो किसी की मौत हुई रहती थी। यह सब रोज देखना पड़ता था। ऐसे में कोई इंसान चाह कर भी पॉजिटिव नहीं रह सकता था।

एक वक्त तो ऐसा आया कि मैंने जीने की उम्मीद ही खो दी थी। खुद ही बताइए, जिस इंसान के मन में हर वक्त यह संशय हो कि वह अगले पल मर सकता है, उसके लिए एक-एक पल काटना कितना मुश्किल होगा।

मेरी जिंदगी एक छोटे बच्चे जैसी हो गई थी। ना कुछ कर सकता था, ना कह सकता था। हाथों में जगह-जगह इंजेक्शन लगे रहते थे। डायपर पहन कर रहना पड़ता था। मतलब बद से बदतर जिंदगी थी।’

इतना कहते-कहते अनिरुद्ध रोने लगते हैं। 2 मिनट शांत रहने के बाद वे पानी पीते हैं और खुद को ढांढस बंधाते हुए कहानी आगे बताते हैं।

अनिरुद्ध ने बताया कि जब वे भोपाल में शूटिंग कर रहे थे, तभी कोविड की चपेट में आ गए थे। उन्हें भोपाल स्थित चिरायु अस्पताल में एडमिट कराया गया था।

वे कहते हैं, ‘मैंने मान लिया था कि जिंदा नहीं बचूंगा। मैं यह सोचने पर मजबूर हो गया था कि अगर मैं नहीं रहा तो परिवार का क्या होगा। उस वक्त मेरी बेटी सिर्फ 1 साल की थी। उस वक्त खुद के अच्छे और बुरे कर्म सब याद आने लगे।

परिवार के साथ इंडस्ट्री के लोगों ने भी बहुत मदद की। उस वक्त एक-एक इंजेक्शन करीब लाख रुपए के थे। एक ऑक्सीजन सिलेंडर का खर्च 2-3 लाख रुपए तक था। 57 दिन में काफी पैसा खर्च हो गया। ऐसे में पेरेंट्स को लोगों से उधार मांगना पड़ा। इंडस्ट्री के लोगों ने भी फाइनेंशियली बहुत मदद की।

भगवान से हमेशा यही दुआ है कि यह पल किसी दूसरे की जिंदगी में कभी ना आए। सच कहूं तो यह मेरी दूसरी जिंदगी है, वरना मैंने तो जीने की पूरी उम्मीद खो दी थी। ठीक होने के बाद मैंने सबका उधार चुका दिया था।’

इस हादसे से गुजरने के बाद आपने पहला प्रोजेक्ट क्या किया?

उन्होंने कहा, ‘इस दौरान मुझे फिल्म ‘कागज 2’ का ऑफर मिला। इसमें मुझे आर्मी ऑफिसर का किरदार निभाना था। सच कहूं तो मैं इस किरदार के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं था। लंग्स में भी दिक्कत थी। लंबे डायलॉग्स नहीं बोल पाता था, लेकिन मैं इतने बड़े मौके को खोना नहीं चाहता था। मालूम था कि इस किरदार को निभाने में बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा, लेकिन मैं इसके लिए तैयार था।