आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस/आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल : आज की स्ट्रगल स्टोरी में कहानी विक्रांत मैसी की, जो इन दिनों फिल्म 12th फेल की वजह से लाइमलाइट में हैं।

कहानी शुरू करने से पहले एक नजर उनके करियर चार्ट पर-

विक्रांत को पहली बार टीवी शो धूम मचाओ धूम में देखा गया था। इसके बाद उन्होंने 9 टीवी शोज में काम किया।

टीवी इंडस्ट्री में काम करने के बाद उन्होंने फिल्मों का रुख किया। पहली बार विक्रांत फिल्म लुटेरा में नजर आए, जो 2013 में रिलीज हुई थी। तब से वो अब तक 18 फिल्मों में नजर आ चुके हैं।

टीवी शोज और फिल्मों के अलावा विक्रांत मैसी OTT प्लेटफाॅर्म का भी जाना-पहचाना चेहरा हैं। वेब सीरीज मिर्जापुर में उन्होंने बबूल भइया का रोल प्ले किया था। इस रोल से उन्हें बहुत ज्यादा पाॅपुलैरिटी मिली थी। फैंस आज उन्हें विक्रांत के नाम से कम, बबूल भइया के नाम से अधिक पहचानते हैं।

फिल्म 12th फेल की सक्सेस के बाद मैं विक्रांत से मिली। फिल्म की सफलता की खुशी उनके चेहरे पर साफ दिखाई दे रही थी। सबसे पहले मैंने उन्हें बधाई दी। हमारी थोड़ी बहुत बातचीत हुई। फिर उन्होंने अपनी जर्नी के बारे में बताना शुरू किया…

मेरा जन्म 3 अप्रैल 1987 को मुंबई के वर्सोवा में हुआ था। पढ़ाई-लिखाई सब कुछ यहीं हुआ है। मैं जहां रहता था, वहां आस-पास फिल्मों की शूटिंग बहुत होती थी। मैं सुनील दत्त, गुलशन ग्रोवर और जैकी श्रॉफ जैसे सितारों की फिल्मों की शूटिंग देखता था। जिसे देखकर ही मेरे मन में एक्टर बनने का ख्याल आया। फिर मैं उसी के सपने देखने लगा।

शूटिंग के साथ फिल्में देखने का भी बहुत शौक था। न्यूजपेपर पर देख लेता था कि आज कौन सी पिक्चर आनी है। उसी के हिसाब से मार्क आउट करके टाइम पर फिल्में देख लिया करता था। घर वाले भी मेरी इस आदत से परेशान हो जाते थे। जब पेपर का टाइम होता था तो टीवी का केबल ही कटवा दिया जाता था। उस समय इससे ज्यादा दूसरी कोई तकलीफ नहीं होती थी। इस तरह सिनेमा हमेशा से जीवन का हिस्सा रहा है।

मुंबई में लोकल ट्रेन का अपना एक एक्सपीरियंस है। एक बार मैं ट्रेन में चढ़ा। जैसे ही ट्रेन चली, मैं गिर गया। गनीमत रही कि बच गया, ज्यादा चोट नहीं लगी। दरअसल, क्रिकेट खेलने का बहुत शौक था। लोकल ट्रेन से दूर-दूर खेलने जाता था।

मैंने स्कूलिंग सेंट एंथोनी हाई स्कूल से की। फिर ग्रेजुएशन मैंने आरडी नेशनल कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड साइंस से किया। इस वक्त मैंने डांस सीखना और सिखाना, दोनों शुरू कर दिया था। सुबह उठकर मैं पहले श्यामक डावर की डांस क्लास में बच्चों को सिखाने जाता था। फिर काॅलेज और उसके बाद शाम को खुद डांस सीखने जाता था। इस वक्त मैं 16 साल का था।

इसी वक्त मैं वर्सोवा में एक काॅफी शाॅप में काम करने लगा था। परिवार की माली हालत ठीक नहीं थी। छोटी-मोटी जरूरतों के साथ कॉलेज की फीस भी भरनी पड़ती थी। दूसरी वजह ये भी थी कि इस काॅफी शाॅप पर फिल्म लाइन के बहुत सारे लोग आते थे। मुझे उम्मीद थी कि यहीं से मेरे फिल्मी सफर की शुरुआत हो जाएगी।

मेरी उम्र कम थी, इसके बावजूद शाॅप की ओनर ने मेरी जरूरतों को देख नौकरी पर रख लिया था। मगर उन्होंने कहा था कि किसी को भी मेरी सही उम्र का पता ना चले, वर्ना उन्हें बाल मजदूरी के आरोप में जेल भेज दिया जाएगा। मैंने उन्हें भरोसा दिलाया कि ऐसा कुछ भी नहीं होगा। वैसे, इस वक्त हालात इतने खराब थे कि 30 रुपए की कॉफी भी खरीद कर पी नहीं सकता था। मुझे टिप और तनख्वाह के साथ लगभग 800 रुपए मिल जाते थे, जो अधिकतर आने-जाने में खर्च हो जाते थे।