लंदन । जीवाश्म ईंधन का उपयोग चरणबद्ध तरीके से बंद करने के बजाय, इसके उपयोग को चरणबद्ध तरीके से कम करने के भारत के सुझाव को महत्व देते हुए ग्लासगो में कॉप-26 शिखर सम्मेलन में लगभग 200 देश शनिवार को एक जलवायु समझौते के लिए सहमत हो गए हैं।

इसके साथ ही ग्लासगो जलवायु समझौता हानिकारक जलवायु प्रभाव वाली ग्रीनहाउस गैसों के लिए जिम्मेदार कोयले के उपयोग को कम करने की योजना बनाने वाला पहला संयुक्त राष्ट्र जलवायु समझौता बन गया है। समझौते में शामिल देश अगले साल कार्बन कटौती पर चर्चा करने के लिए भी सहमत हुए हैं, ताकि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लक्ष्य तक पहुंचा जा सके। इस दौरान तुर्की अलग ही राग छेड़े हुए था। मेजबान ब्रिटेन की तरफ से भारत को स्पेशल ट्रीटमेंट दिए जाने पर तुर्की भड़क गया और इससे यूके के लिए शर्मिंदगी की स्थिति बन गई।

ग्लासगो जलवायु सम्मेलन के दौरान जब दुनिया के कई देश स्पष्ट रूप से मानवता के सामने चुनौती और इससे निपटने के प्रयासों पर चर्चा कर रहे थे, उस समय तुर्की अलग ही राग छेड़े हुए था। तुर्की ने सम्मेलन में मेजबान ब्रिटेन की तरफ से भारत को स्पेशल ट्रीटमेंट दिए जाने को लेकर विरोध जाहिर किया। इससे यूके के लिए शर्मिंदगी की स्थिति बन गई। ग्लासगो के पास इतने बड़े वैश्विक कार्यक्रम की मेजबानी करने के लिए पर्याप्त साधन नहीं होने के कारण यूके ने सम्मेलन में शामिल प्रतिनिधिमंडलों से होटल शेयर करने का आग्रह किया था।

इसी तरह शासनाध्यक्षों को सम्मेलन स्थल तक ले जाने के लिए बसों का आयोजन किया गया। हालांकि, तीन देश मेजबान, अमेरिका और भारत इसको लेकर अपवाद थे। इन देशों के प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों को उन्हें उन होटलों में रहने की अनुमति दी गई जिन्हें उन्होंने अपने लिए विशेष रूप से बुक किया था। जबकि उनके नेता- बोरिस जॉनसन, जो बाइडेन और नरेंद्र मोदी-1 नवंबर को कारों के काफिले के साथ कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे थे। प्रोटोकॉल में भेदभाव पर तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने अपनी नाराजगी जाहिर की। तुर्की के राष्ट्रपति ने यह सवाल उठाया कि भारत का विशेषाधिकार प्राप्त व्यवहार को क्या माना जाए?

सूत्रों ने बताया कि तुर्की नेता ने विरोध के रूप में कार्यवाही से दूर रहे, जो पहले से ही तनावपूर्ण द्विपक्षीय समीकरणों को और बढ़ा सकता है। हालांकि, अधिकारियों ने इस विषमता को यह कहते हुए उचित ठहराया कि यह उन प्रयासों की स्वीकृति थी जो भारत ने हाल ही में जलवायु संकट के संबंध में की है।

कॉप-26 के अध्यक्ष आलोक शर्मा ने समझौते की घोषणा करते हुए कहा है कि अब हम इस धरती और इसके वासियों के लिए एक उपलब्धि के साथ इस सम्मेलन से विदा ले सकते हैं। हालांकि, कई देशों ने जीवाश्म ईंधन पर भारत के रुख की आलोचना की। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने ग्लासगो जलवायु शिखर सम्मेलन में पूछा कि कोई विकासशील देशों से कोयले और जीवाश्म ईंधन सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से बंद करने के वादे की उम्मीद कैसे कर सकता है, जबकि उन्हें अब भी उनके विकास एजेंडा और गरीबी उन्मूलन से निपटना है।