हमारे वातावरण में हो रहे बदलाव अब एक गंभीर समस्या बन गए हैं। मौसम में अत्यधिक बदलाव, ग्लेशियर का पिघलना, और बढ़ते समुद्र के स्तर के कारण यह सवाल उठता है कि क्या हम समय रहते जलवायु परिवर्तन से निपट पाएंगे। आज हमें समझने की जरूरत है कि जलवायु संकट सिर्फ पर्यावरणीय समस्या नहीं है, बल्कि यह हमारी रोजमर्रा की जिंदगी पर भी गहरा असर डाल रही है।
जब अमेरिका ने कदम पीछे खींचे
2020 में, अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पेरिस जलवायु समझौते और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से अमेरिका को बाहर कर लिया। पेरिस समझौता दुनियाभर के देशों के लिए जलवायु परिवर्तन से निपटने का एक ऐतिहासिक प्रयास था, जिसका उद्देश्य वैश्विक तापमान को 2°C तक घटाने का था।
अमेरिका जैसे विकसित देश का इससे बाहर होना एक बड़ा झटका था। अमेरिका दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक है। ट्रंप का तर्क था कि यह समझौता अमेरिकी उद्योगों और नौकरियों के लिए नुकसानदेह है। लेकिन, इस कदम से जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक प्रयास कमजोर हो गए।
हाल ही में, अमेरिका ने एक और बड़ा निर्णय लिया, जिसमें ना केवल इलेक्ट्रिक वाहनों को अनिवार्य बनाने का फैसला वापस ले लिया गया, अपितु राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने शपथ ग्रहण के पश्चात प्रथम उद्बोधन में ही “ड्रिल बेबी ड्रिल” का आव्हान कर अप्रत्यक्ष रूप से पेट्रोल और डीजल वाहनों का उपयोग जारी रखने को प्राथमिकता दे दी गई प्रतीत होती है । यह कदम उन देशों के लिए एक चुनौती बन गया जो इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देकर कार्बन उत्सर्जन को कम करना चाहते हैं।
इसका पर्यावरण पर असर
- वैश्विक एकता को झटकाः पेरिस समझौते से अमेरिका के बाहर होने और पेट्रोल-डीजल वाहनों के उपयोग को बढ़ावा देने जैसे कदमों से अंतरराष्ट्रीय सहयोग कमजोर हुआ।
- ग्रीनहाउस गैसों में वृद्धिः पेट्रोल और डीजल वाहनों का बढ़ा हुआ उपयोग सीधे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को बढ़ाता है, जो जलवायु संकट को तेज करता है।
- नवीकरणीय ऊर्जा को झटकाः इलेक्ट्रिक वाहनों का समर्थन न करने से ग्रीन टेक्नोलॉजी और नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में निवेश कम हो सकता है।
- स्वास्थ्य पर प्रभावः WHO से बाहर होने और पेट्रोल-डीजल वाहनों के बढ़ते उपयोग के कारण प्रदूषण से संबंधित बीमारियों में वृद्धि हो सकती है।
अब हम क्या कर सकते हैं?
हालांकि अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जो बाइडेन ने पेरिस समझौते में अमेरिका को दोबारा शामिल कर लिया था परन्तु अपने दूसरे कार्यकाल में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप में पुनः पेरिस समझौते से अमेरिका को पृथक रखने का निर्णय लिया है I इस प्रकार पेट्रोल-डीजल वाहनों का उपयोग बढ़ाने का निर्णय अब भी एक बड़ी चिंता है। इसके बावजूद, हर देश और हर व्यक्ति अपने छोटे कदमों से बड़ा बदलाव ला सकता है:
- इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाएं: जब भी संभव हो, पेट्रोल-डीजल के बजाय इलेक्ट्रिक या सार्वजनिक वाहनों का उपयोग करें।
- रिसाइक्लिंग और ऊर्जा बचत करें: कचरे का प्रबंधन सही तरीके से करें और बिजली की खपत को कम करें।
- हरित ऊर्जा में निवेश करें: सौर और पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय स्रोतों का उपयोग बढ़ाएं।
- नीतियों का समर्थन करें: ऐसी सरकारी योजनाओं को प्रोत्साहित करें जो पर्यावरण संरक्षण और हरित तकनीक को बढ़ावा देती है।
आशा की किरण
हालांकि स्थिति गंभीर है, लेकिन समाधान अब भी संभव है। सौर और पवन ऊर्जा को प्राथमिकता देकर, वनों की कटाई रोककर, और पर्यावरणीय जागरूकता फैलाकर हम इस संकट को कम कर सकते हैं।
समय की मांगः अभी कदम उठाएं
जलवायु संकट को हल करने के लिए सभी देशों और व्यक्तियों को मिलकर काम करना होगा। यह जिम्मेदारी केवल सरकारों की नहीं है, बल्कि हर व्यक्ति का योगदान आवश्यक है।
याद रखें, अगर हम आज सही कदम उठाते हैं, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित और बेहतर भविष्य सुनिश्चित कर सकते हैं। हमारे पास केवल एक ग्रह है-अब इसे बचाने का समय है।
समय की मांग: अभी कदम उठाएं
जलवायु संकट को हल करने के लिए सभी देशों और व्यक्तियों को मिलकर काम करना होगा। यह जिम्मेदारी केवल सरकारों की नहीं है, बल्कि हर व्यक्ति का योगदान आवश्यक है।
याद रखें, अगर हम आज सही कदम उठाते हैं, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित और बेहतर भविष्य सुनिश्चित कर सकते हैं। हमारे पास केवल एक ग्रह है-अब इसे बचाने का समय |
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