काठमांडू । लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक आंखें दिखा रहा चीन अब नेपाल में लुंबिनी तक रेलवे लाइन और सड़क बनाने जा रहा है। चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने इसका ऐलान किया है। चीन का दावा है कि इस रेलवे लाइन और सड़क मार्ग से चारों तरफ से जमीन से घिरे नेपाल का संपर्क दुनिया से बढ़ेगा।
भारत के लिहाज से नेपाल में सड़क और रेलवे लाइन की वजह से चिंताएं पैदा हो गई हैं। वह भी तब जब म्यांमार में भी चीन हिंद महासागर तक रेलवे लाइन बनाने जा रहा है। नेपाल के पुनर्निर्माण पर पिछले दिनों हुए एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने अपनी महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड परियोजना पर नेपाल से सहयोग बढ़ाने के लिए अपील की।
गत बुधवार को वांग यी ने कहा चीन सीमा पार रेलवे प्रॉजेक्ट के व्यवहार्यता अध्ययन पर ठोस प्रगति करेगा, ट्रांस हिमालय कनेक्टविटी नेटवर्क को सुधारेगा और नेपाल के जमीन से घिरे होने की परेशानी को बदलकर जमीन से जुड़े होने के सपना पूरा करने में मदद करेगा। चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने नेपाल से आह्वान किया है कि वह बेल्ट एंड रोड प्रॉजेक्ट के विभिन्न विषयों जैसे व्यापार, निवेश, ऊर्जा सप्लाइ और जलवायु परिवर्तन में सहयोग बढ़ाए। दरअसल, नेपाल चीनी राष्ट्रपति के इस ड्रीम प्रॉजेक्ट को लेकर फूंक-फूंककर कदम रख रहा है। इसकी वजह यह है कि चीन ने जहां भी इस परियोजना को शुरू किया है, वहां पर कर्ज का पहाड़ खड़ा हो गया है। चीनी कर्ज के तले पाकिस्तान, श्रीलंका, अफ्रीकी देश दबते जा रहे हैं।
चीन 8 अरब डॉलर की मदद से दक्षिणी तिब्बत से नेपाल की राजधानी काठमांडू तक सीमा पार रेलवे बनाना चाहता है। माना जा रहा है कि इससे नेपाल की अर्थव्यवस्था को पंख लगेंगे जो उत्तर कोरिया के बाद सबसे गरीब देश है। यह चीन की दक्षिण एशिया में बेल्ट एंड रोड रणनीति का अहम हिस्सा है। चीनी राष्ट्रपति की सन 2019 में हुई नेपाल यात्रा के दौरान 20 द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर हुआ था। नेपाल और चीन के बीच हुए इन समझौतों का उद्देश्य दोनों देशों के बीच आधारभूत ढांचे का विकास करना है।
माना जा रहा है कि ये समझौते भारत को लक्ष्य करके किए गए हैं। इस रेलवे लाइन का रणनीतिक महत्व तो है, लेकिन उसका व्यवहारिक महत्व बहुत सीमित है, क्योंकि इस रास्ते पर व्यापार से जुड़ी संभावनाएं बहुत कम हैं। उन्होंने कहा इस रास्ते पर यात्रियों की डिमांड भी बहुत कम है। नलपत कहते हैं भारत में कई लोग मानते हैं कि इस रेलवे लाइन का असली उद्देश्य तेजी से चीनी सैनिकों के नेपाल की सीमा में घुसाना है, ताकि वे भारत की सीमा पर पहुंच सकें। भारत और चीन के बीच लद्दाख विवाद के बाद से ही संबंध रसातल में पहुंच गए हैं।