सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: एनेस्थेटिक एजेंट्स किस तरह ब्रेन के न्यूरल सर्किट्स से संवाद स्थापित करते हैं। वे किस तरह हमारी चेतना पर असर डालते हैं। एनेस्थीशिया देने के बाद व्यक्ति बेहोश क्यों हो जाता है या उसका मस्तिष्क सुप्त अवस्था में चला जाता है। एक नए शोध के जरिए जल्द ही इन सब सवालों के जबाव हमारे सामने होंगे।
इस शोध को कर रहे हैं भोपाल स्मारक अस्पताल एवं अनुसंधान केंद्र (बीएमएचआरसी) के एनेस्थीशियोलॉजी विभाग के दो वरिष्ठ चिकित्सक सैफुल्लाह टीपू और डॉ सारिका कटियार। इस शोध कार्य में उनका सहयोग कर रहे हैं जापान के सुकोबा शहर में स्थित नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ मैटेरियल में सीनियर साइंटिस्ट के पद पर कार्यरत डॉ अनिर्बान बंधोपाध्याय, भारतीय प्रबंध संस्थान में एसोसिएट प्रोफेसर तनुश्री दत्ता और बीएमएचआरसी के मनोचिकित्सा विभाग में न्यूरो साइकॉलजिस्ट रूपेश रंजन । इस शोध के जरिए मेडिकल प्रोसीजर के दौरान मरीज की मानसिक स्थिति से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य सामने आएंगे, जिनका इस्तेमाल मरीज के बेहतर उपचार में किया जा सकेगा। इस शोध को समस्त आवश्यक मंजूरियां प्राप्त हो चुकी हैं और इसके अगले एक साल में पूरा होने की उम्मीद है।
शोध के जांचकर्ता एवं बीएमएचआरसी के एनीस्थीशियोलॉजी विभाग में प्रोफेसर डॉ सैफुल्लाह टीपू ने बताया कि हमें डॉ बंधोपाध्याय के सहयोग से एक मशीन प्राप्त हुई है, जिसे स्पेक्ट्रम एनालाइज़र कहा जाता है। यह मशीन ब्रेन में होने वाले सिग्नल्स को डिटेक्ट करती है। इस शोध के तहत कुछ चयनित मरीजों के माथे पर एनेस्थीशिया देने से पहले, एनेस्थीशिया देने के बाद और सर्जरी के बाद इस मशीन से अटैच एक प्रोब को लगाया जाएगा, जो तीन अलग—अलग स्थितियों के दौरान माथे से निकलने वाली लहरों (Waves) को रिकॉर्ड करेगा। प्राप्त डेटा से बंधोपाध्याय एक भाषा विकसित करेंगे, जो मरीज की मानसिक स्थिति की व्याख्या करेगी। एक अन्य शोधकर्ता व एनीस्थीशियोलॉजी विभाग में ही प्रोफेसर सारिका कटियार ने बताया कि मिर्गी जैसी कुछ बीमारियों की जांच के काम में आने वाली ईईजी मशीन भी न्यूरो सिग्नल्स को डिटेक्ट करती है, लेकिन इसकी फ्रीक्वेंसी कम होती है। स्पेक्ट्रम एनालाइज़र की फ्रीक्वेंसी 6-26 मेगाहट्र्ज तक होगी, जो उन न्यूरे सिग्नल्स को भी डिटेक्ट कर पाएगी, जिन्हें ईईजी मशीन नहीं कर पाती। जल्द ही हमें एक और उन्नत किस्म की मशीन प्राप्त होगी, जो इस शोध कार्य में और फायदेमंद होगी। उन्होंने बताया कि यह पूरी प्रक्रिया एकदम सुरक्षित है और इस दौरान मरीज को कोई भी असुविधा नहीं होती।
इस रिसर्च से आम लोगों को ये लाभ होंगे
1 बेहतर मैनेजमेंट : एनेस्थीशिया ब्रेन एक्टिविटी पर किस तरह असर डालता है, यह जानने के बाद डॉक्टर बेहतर तरीके से तय कर सकते हैं कि किस मरीज को एनेस्थीशिया का कितना डोज़ देना काफी है। इससे मरीज को आॅपरेशन के बाद होने वाले जोखिमों और जटिलताओं को कम किया जा सकता है। साथ ही सर्जरी और सुरक्षित होंगी तथा मरीज को भी लाभ होगा। मरीज की रिकवरी जल्दी होगी।
2. असहनीय दर्द से जूझ रहे मरीजों के लिए : दर्द के इलाज में इस्तेमाल होने वाली नशीली दवाओं के विकल्प खोजे जा सकेंगे। स्लीप एपनिया और इनसोमनिया जैसे नींद के विकारों का भी बेहतर इलाज करने में मदद प्राप्त होगी।
3. पर्सनल ट्रीटमेंट प्रोटेकॉल तैयार होगा : किसी मरीज की ब्रेन एक्टिविटी का पैटर्न समझने के बाद उसके लिए पर्सनल ट्रीटमेंट प्रोटेकॉल तैयार किया जा सकता है। इससे खासतौर पर बुजुर्गों को और न्यूरोलॉजिकल डिसआॅर्डर से पीड़ित मरीजों को लाभ होगा।
4 रिसर्च को बढ़ावा मिलेगा : आगे और रिसर्च होने पर एनेस्थीशिया की उन्नत दवाएं प्राप्त होंगी, जो ज्यादा सुरक्षित और कम साइड इफेक्ट वाली होंगी। न्यूरोलॉजिस्ट, मनोचिकित्सक और बायोमेडिकल इंजीनियरिंग से जुड़े शोधकर्ता भी आगे अध्ययन के लिए प्रेरित होंगे, जिससे मेडिकल साइंस में कई इनोवेटिव समाधान प्राप्त होंगे।
वर्जन
बीएमएचआरसी में पेशेंट केयर के साथ साथ रिसर्च पर भी फोकस किया जा रहा है। यह रिसर्च मस्तिष्क और एनेस्थीसिया से संबंधित कई नई जानकारियां सामने लाएगी। मेडिकल साइंस के लिए यह काफी फायदेमंद होगी। मरीजों को भी आने वाले समय में इससे लाभ होगा।