सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के भोपाल परिसर में महाकुंभ कनक्लेव 19वां गोलमेज सत्र का आयोजन किया गया । इस कार्यक्रम कीअध्यक्षता रमाकान्त पाण्डेय, निदेशक, भोपाल परिसर, मध्यप्रदेश ने किया । अपने अध्यक्षीय उद्वोधन में सम्माननीय निदेशक ने कहा – वैदिक काल से ही महाकुंभ का माहात्म्य है । ऋग्वेद के खिल सूक्त से महाकुंभ से सम्बन्धित चर्चा की गई है । लोक से अध्यात्म की हमारी संस्कृति संगम से विकसित है । महाभारत में भी भीष्म द्वारा महाकुंभ गंगा स्नान निरूपित किया गया है । हर्षचरितम् में- बाणभट्ट ने गंगा के माहात्म्य को
परिभाषित किया है । कुंभ धर्म दर्शन एवं भारतीय संस्कृति का केन्द्र बिन्दु है । यूनेस्को द्वारा 2017 में Intangible Cultural Heritage of Humanity अर्थात् कुंभ मेला मानवता की एक अमूर्त सांस्कृतिक विरासत है। ऐसा घोषित किया गया है । यह महाकुम्भ दिनांक – 13.01.2025 से 26.02.2025 तक प्रयागराज, उत्तरप्रदेश में आयोजित होगा । निदेशक निदेशक महोदय ने यह भी कहा कि हम सभी परिसर के प्राध्यापक अवश्य ही इस महाकुम्भ में सम्मिलित होंगे । निदेशक धनंजय चौपड़ा, मुख्य वक्ता, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद ने अपने विचारों को साझा करते हुए कहा – कुंभ अलौकिक, अद्भुत, अप्रतिम एवं अद्वितीय है । यह जन संस्कृति का मेला है । अद्भुत है यह जन संचार । प्रयागराज का कल्पवास ऊर्जा का सञ्चालन करता है । ऋषि महर्षियों का अद्भुत संगम है। यह हमारी विरासत में सम्मिलित है । बहुत सारी संस्कृतियों का समागम है। यह आकांक्षाओं का मेला है। वसुधैव कुटुम्बकम् का दिग्दर्शन है । कुंभ हमारी रगों में है । रामचरित मानस की चौपाइयों को उद्धृत करते हुए महाकुंभ के माहात्म्य को परिभाषित किया – माघ मकर गति रवि जब होई। तीरथ पतिहिं आव सब कोई॥ देव दनुज किन्नर नर श्रेनी। सादर मज्जहिं सकल त्रिवेनी॥ त्रिवेणी संगम से भारतीय चेतना का प्रसार ही महाकुंभ है। यह आध्यात्मिक चेतना का विमर्श है । उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बहुत ही सुंदर एवं सुचारू तरीके से महाकुंभ का
आयोजन किया जा रहा है । यह महाकुंभ उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग एवं प्रसार भारती के सहयोग से यह आयोजित हो रहा है । अमिताभ पाण्डेय – IGRMS निदेशक, संस्कृति मन्त्रालय कार्यक्रम के मुख्य अतिथि ने महाकुंभ की महत्ता एवं उद्देश्य को परिभाषित करते हुए कहा कि – कुंभ एक जीवन संस्कृति का उदाहरण है। यह आध्यात्मिक केन्द्र है। आस्था और विश्वास का संगम है। यहां सम्पूर्ण शहर बंद हो जाता है और कल्पवासी चलते रहते हैं। कुंभ में संस्कृति की विविधता है। ऋषि महर्षियों द्वारा अनुप्राणित है।
महाकुंभ में VIP कल्चर समाप्त हो जाता है। इस त्रिवेणी में तीन विषयवस्तु पर अवश्य ही विचार करना चाहिए – 1. निरन्तरता 2. वैयक्तिक विविधता एवं 3. सांस्कृतिक चेतना । निदेशक हर्षवर्धन त्रिपाठी, वरिष्ठ पत्रकार ने भी अपने वक्तव्य में महाकुम्भ के माहात्म्य को परिभाषित किया साथ ही कहा कि कुंभ में मूल रूप से शास्त्रार्थ की परम्परा को स्थापित करना चाहिए । संगम की चर्चा हम महर्षि भारद्वाज से क्यों नहीं कर सकते हैं । निदेशक नीलाभ तिवारी, सह-निदेशक, भोपाल परिसर ने अपने विचारों को
साझा करते हुए कहा कि महाकुंभ का धार्मिक महत्व तो है ही इससे ज्यादा आध्यात्मिक महत्त्व है ऋषि महर्षि तपस्या अर्थात् अनुसंधान करते थे इससे ब्रह्मोद्यम की संकल्पना साकार होती है । अखाड़ा की संकल्पना भी ज्ञान की रक्षा एवं शास्त्र की रक्षा के लिए ही की गई है । पर्यावरण को ध्यान में रखना अत्यंत अनिवार्य है । समाज की जागरूकता आवश्यक है। एक थैला एक थाली की संकल्पना साकार होनी चाहिए साथ ही हरित महाकुंभ को चरितार्थ करना चाहिए । इस कार्यक्रम मे आये हुए अतिथियों का स्वागत – निदेशक सबोध शर्मा ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन – निदेशक भारत भूषण मिश्र ने महाकुंभ के ज्योतिषीय महत्व को परिभाषित करते हुए किया । इस कार्यक्रम के मुख्य प्रस्तावक सौरभ पाण्डेय थे । एवं सुचारु रूप से कार्यक्रम का संचालन कृपाशंकर शर्मा ने किया । इस अवसर पर परिसर के समस्त प्राध्यापक शोधच्छात्र एवं कर्मचारी उपस्थित थे । कल्याण मंत्र के साथ इस कार्यक्रम का समापन किया गया ।
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