सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस / आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल : भोपाल के शिवाजी नगर, तुलसी नगर के सरकारी मकानों को तोड़कर 2378 करोड़ रुपए से री-डेवलपमेंट प्लान है। यही पर मंत्रियों के लिए बड़े बंगले बनेंगे, लेकिन 29 हजार से ज्यादा पेड़ों की बलि भी चढ़ेगी। इसके विरोध में लोग विरोध में उतर आए हैं। 5 नंबर स्टाॅप पर बड़ा प्रदर्शन शुरू हो गया है। उनका कहना है कि इन पेड़ों को बचाने के लिए हम उत्तराखंड की तर्ज पर भोपाल में चिपको आंदोंलन करेंगे।

पेड़ों को बचाने धरना दे रहीं महिलाओं का कहना है कि ये पेड़ हमारे बच्चों जैसे हैं। ये हमारे हर सुख-दुख के साक्षी हैं। हमें यहां रहते हुए 50 साल से ज्यादा हो गए। इनसे स्वाभाविक लगाव है। सरकार भोपाल की हरियाली मिटाने जा रही है। स्मार्ट सिटी में हम इसका उदाहरण देख चुके हैं। इसके बाद महिलाएं धरना स्थल के नजदीक लगे पेड़ों के पास पहुंची कुछ उन्हें दुलारने लगीं तो कुछ ने उन्हें गले लगा लिया।

यह एक अहिंसक आंदोलन था जो वर्ष 1973 में उत्तर प्रदेश के चमोली जिले (अब उत्तराखंड) में शुरू हुआ था।

इस आंदोलन का नाम ‘चिपको’ ‘वृक्षों के आलिंगन’ के कारण पड़ा, क्योंकि आंदोलन के दौरान ग्रामीणों द्वारा पेड़ों को गले लगाया गया तथा वृक्षों को कटने से बचाने के लिए उनके चारों और मानवीय घेरा बनाया गया।

जंगलों को संरक्षित करने हेतु महिलाओं के सामूहिक एकत्रीकरण के लिये इस आंदोलन को सबसे ज्यादा याद किया जाता है। इसके अलावा इससे समाज में अपनी स्थिति के बारे में उनके दृष्टिकोण में भी बदलाव आया।

इसकी सबसे बड़ी जीत लोगों के वनों पर अधिकारों के बारे में जागरूक करना तथा यह समझाना था कैसे जमीनी स्तर पर सक्रियता पारिस्थितिकी और साझा प्राकृतिक संसाधनों के संबंध में नीति-निर्माण को प्रभावित कर सकती है।

इसने वर्ष 1981 में 30 डिग्री ढलान से ऊपर और 1,000 msl (माध्य समुद्र तल-msl) से ऊपर के वृक्षों की व्यावसायिक कटाई पर प्रतिबंध को प्रोत्साहित किया।

सुंदरलाल बहुगुणा ने हिमालय की ढलानों पर वृक्षों की रक्षा के लिए चिपको आंदोलन की शुरुआत की।

इसके अलावा इन्हें चिपको का नारा ‘पारिस्थितिकी स्थायी अर्थव्यवस्था है’ गढ़ने के लिये जाना जाता है।

1970 के दशक में चिपको आंदोलन के बाद उन्होंने विश्व में यह संदेश दिया कि पारिस्थितिकी और पारिस्थितिकी तंत्र अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। उनका विचार था कि पारिस्थितिकी और अर्थव्यवस्था को एक साथ चलना चाहिये।

भागीरथी नदी पर टिहरी बाँध के खिलाफ अभियान चलाया, जो विनाशकारी परिणामों वाली एक मेगा परियोजना है। उन्होंने आज़ादी के बाद भारत में 56 दिनों से अधिक समय तक लंबा उपवास किया।

पूरे हिमालयी क्षेत्र पर ध्यान आकर्षित करने के लिये 1980 के दशक की शुरुआत में 4,800 किलोमीटर की कश्मीर से कोहिमा तक की पदयात्रा (पैदल मार्च) की।

उन्हें वर्ष 2009 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।