इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस की थीम “प्लास्टिक प्रदूषण पर रोक” ने दुनियाभर में चिंता की लहर दौड़ा दी है। हाल ही में प्रकाशित वैज्ञानिक रिपोर्टों में यह बात सामने आई है कि प्लास्टिक के अत्यंत सूक्ष्म कण यानी माइक्रोप्लास्टिक अब हमारी नदियों, समुद्रों, हवा, मिट्टी और यहां तक कि मानव मस्तिष्क में भी पाए जा रहे हैं।
इस संकट के बीच भोपाल स्थित भाभा यूनिवर्सिटी ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में प्रेरणादायक कार्यों को अंजाम देकर समाज के सामने एक आदर्श प्रस्तुत किया है।
भाभा यूनिवर्सिटी की अभिनव पहलें
ईको ब्रिक्स: प्लास्टिक कचरे का अभिनव पुन: उपयोग
छात्रों द्वारा प्लास्टिक कचरे को बोतलों में भरकर “ईको ब्रिक्स” बनाए गए, जिनका उपयोग यूनिवर्सिटी परिसर में बेंच, दीवार और सजावटी निर्माण में किया गया। इस पहल ने न केवल प्लास्टिक अपशिष्ट को पुनर्जीवित किया बल्कि छात्रों को पर्यावरण के प्रति उत्तरदायी भी बनाया।
ट्री एम्बुलेंस: पेड़ों के इलाज की अनूठी सेवा
“ट्री एम्बुलेंस” के माध्यम से यूनिवर्सिटी द्वारा कमजोर या क्षतिग्रस्त वृक्षों की विशेष देखभाल की जाती है। जैविक पोषण, सिंचाई और इलाज के ज़रिए पेड़ों को फिर से जीवंत किया गया।
वृक्षारोपण और ग्रीन कैंपस अभियान
“एक छात्र – एक पौधा” संकल्प के तहत यूनिवर्सिटी परिसर और आस-पास हजारों पौधे लगाए गए। जैविक खाद, रेन वाटर हार्वेस्टिंग और सोलर एनर्जी जैसी हरित तकनीकों का भी समावेश किया गया।
छात्रों की संसद में गूंज उठी आवाज
भाभा यूनिवर्सिटी के छात्रों ने राज्य स्तरीय भाषण प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त कर राष्ट्रीय स्तर पर संसद भवन में पर्यावरणीय विषयों पर अपने विचार प्रस्तुत किए। इन युवाओं ने प्लास्टिक मुक्त जीवनशैली, टिकाऊ विकास और नीति-निर्माण जैसे गंभीर मुद्दों पर सांसदों और नीति-निर्माताओं के समक्ष बेबाक तरीके से अपने सुझाव रखे।
अन्य जागरूकता गतिविधियाँ
• कैंपस में सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध लागू
• छात्रों द्वारा संचालित एनवायरनमेंट क्लब की स्थापना
• वर्ष भर आयोजित सेमिनार, वेबिनार और वर्कशॉप्स
• प्लास्टिक कचरे को कम करने हेतु सामुदायिक भागीदारी
प्लास्टिक से लड़ाई, प्रकृति की रक्षा की जंग
प्रो. घटुआरी ने अपने संदेश में कहा,
“प्लास्टिक प्रदूषण आज एक अदृश्य विष है जो आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को निगल सकता है। इसकी रोकथाम के लिए आवश्यक है कि हम सभी – विशेषकर युवा वर्ग – स्वस्थ और सतत जीवनशैली अपनाएं।”
उन्होंने यह भी अपील की कि सभी नागरिक अपने जीवन में छोटे-छोटे बदलाव लाकर बड़े परिणाम उत्पन्न कर सकते हैं।
निष्कर्ष:
“प्लास्टिक नहीं, प्रकृति को अपनाएं – यही है सुरक्षित भविष्य की राह।”
“प्रकृति है तो हम हैं – आइए मिलकर इसे बचाएं।”
प्रो. (डॉ.) सैलेश कुमार घटुआरी
डीन, फैकल्टी ऑफ फार्मेसी, भाभा यूनिवर्सिटी, भोपाल
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