सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: भोज मुक्त विश्वविद्यालय में “राष्ट्रीय शिक्षा नीति और भारतीय ज्ञान परंपरा” विषय पर कार्यक्रम आयोजित हुआ। बीजवक्ता के रूप में अपने विचार व्यक्त करते हुए, मध्य प्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी के संचालक डॉ. अशोक कड़ेल ने कहा कि, भारत में अलग-अलग संस्कृतियों और भाषाओं के बावजूद हम सब की एक भारतीय संस्कृति है। भारत एक उत्सवधर्मी देश रहा है। शिक्षा का उद्देश्य ही है कि, आपका जीवन उत्सव से पूर्ण होना चाहिए। उन्होंने कहा कि, जितना अंधकार है, वह प्रकाश में समा जाए जो अज्ञान है वह ज्ञान में समा जाए, यही भावना रही है। डॉ. कड़ेल ने कहा कि, कष्ट में भी आनंद की अनुभूति हमारे देश की परंपराओं में रही है। इसी का ज्ञान हमारे आने वाले पीढ़ियां को भी करवाना आवश्यक है। प्राचीन ग्रंथो में कहा गया है कि, 1000 हाथ से कमाएँ और 100 हाथ से दान भी करें। समाज के दीन दुखियो को दान देने की सीख विद्यार्थियों को देने की आवश्यकता है। डॉ. अशोक ने इस अवसर पर महाभारत के श्री कृष्ण और कर्ण के जीवन की चर्चा की और उनमें समानताओं और असमानताओं की भी चर्चा करते हुए कहा कि, श्री कृष्ण की शिक्षाएं आज भी हमारे लिए प्रासंगिक हैं। हमें श्री कृष्ण के जीवन से प्रेरणा लेकर अपनी आज की समस्याओं का सामना करना चाहिए।
उत्सव धर्मिता हर व्यक्ति के जीवन में आना चाहिए। हर ऋतु में हमारे यहां कोई ना कोई उत्सव होता है। प्रकृति की रक्षा करना हमारी पुरातन संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है। हम प्रकृति उपासक के रूप में जाने जाते हैं। आज हमारे सामने ग्लोबल वार्मिंग, पर्यावरण प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याएं खड़ी हैं। इन सबके लिए हमारी नीति एवं व्यवहार ही जिम्मेदार है। हमें अपनी प्रगति के साथ-साथ प्रकृति का भी ध्यान रखने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मुख्य उद्देश्य ऐसे नागरिकों का निर्माण करना है जो विचार, व्यवहार और कार्य से विश्व कल्याण के लिए समर्पित हों। विद्यार्थियों को सत्य एवं प्रज्ञा के मार्ग पर ले जाना और उन्हें आत्मिक ज्ञान की ओर प्रेरित करना तथा समग्रता एवं भारत केंद्रित शिक्षा ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मूल उद्देश्य है। विद्यार्थियों में धैर्य न होने के कारण उनमें आत्महत्या की प्रवृत्ति में वृद्धि देखी जा रही है। विद्यार्थियों में गुण और अवगुण दोनों होते हैं, किंतु हमारी शिक्षण संस्थाएं उनके गुणों के विकास के लिए तथा अवगुणों के शमन के लिए उचित वातावरण प्रदान करते हैं। डॉ. अशोक कड़ेल कहा कि, भारतीय ज्ञान परंपरा में और अधिक शोध की आवश्यकता है।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि डॉ. भरत मिश्रा, कुलगुरु, महात्मा गांधी चित्रकूट विश्वविद्यालय चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय ने अपने उद्बोधन में कहा कि, भारत में प्राचीन काल में गुरुकुल की शिक्षा व्यवस्था थी। गुरुओं का स्थान तो भगवान से भी ऊपर रखा गया है। औपनिवेषिक काल की शिक्षा से आज भारत बाहर निकल रहा है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में बहुविषयक दृष्टिकोण है। परंपरागत शिक्षा के बंधन से अब मुक्ति मिल गई है। नई शिक्षा नीति के आने से भाषाई कुंठा से मुक्ति मिली है। इसमें विद्यार्थियों को विषय चयन की स्वतंत्रता है और विद्यार्थियों में मानवीय गुणों के विकास पर बल दिया गया है।
कार्यक्रम के अध्यक्षता कर रहे, भोज मुक्त विश्वविद्यालय के प्रो. संजय तिवारी ने कहा कि, राष्ट्रीय शिक्षा नीति वास्तव में स्वयं को पहचानने का प्रयास है। उन्होंने कहा कि, लॉर्ड मैकाले ने पाश्चात्य शिक्षा पद्धति लागू कर हमारी ज्ञान परंपरा का नाश कर दिया। अब पाश्चात्य शिक्षा पद्धति को खत्म करने का काम इतने लंबे अंतराल के बाद होने जा रहा है। उन्होंने कहा कि, अभी भी हम गुलामी की मानसिकता से पूरी तरह हुआ नहीं पा रहे हैं। डॉ. तिवारी ने कहा कि, जनसंख्या हमारे लिए वरदान है। उन्होंने कहा कि, राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मुख्य बल कौशल विकास पर है। इसमें विश्व बंधुत्व का भाव है और भारतीयता के प्रति गौरव बोध है।
कार्यक्रम का संचालन मध्यप्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय के निदेशक डॉ. रतन सूर्यवंशी द्वारा किया गया तथा धन्यवाद ज्ञापन भोज मुक्त विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. सुशील मंडेरिया द्वारा किया गया। इस अवसर पर सभागार में शिक्षा जगत के विद्वानों सहित विश्वविद्यालय के समस्त शिक्षक, अधिकारी एवम कर्मचारीगण उपस्थित रहे।