अगर आप या मैं ट्रेन से सफर करते हैं तो क्या देखते हैं, भागते हुए पेड़, मैदान, पहाड़, नदी, बस्ती और भागता हुआ समय । लेकिन डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर ने भागती हुई ट्रेन से भीमबेटका नाम का पाषाण कालीन आदि मानव सभ्यता ही खोज ली।
1957 की बात है वाकणकर जी एक दिन ट्रेन से भोपाल से इटारसी की यात्रा कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने विंध्य पर्वत श्रृंखला के बीच स्थित चट्टानों को देखा। उनकी बनावट और स्थिति देखकर उन्हें लगा कि ये स्थान प्राचीन मानव सभ्यता के निवास स्थान हो सकते हैं।
वाकणकर को प्राचीन गुफाओं और शैल चित्रों का गहरा ज्ञान था। वे पहले से यूरोप की ऑल्टामिरा गुफाओं और अन्य पुरापाषाण स्थलों का अध्ययन कर चुके थे। इन गुफाओं की समानता देखकर उन्हें लगा कि यहाँ भी प्राचीन शैल चित्र या मानव निवास के अवशेष मिल सकते हैं। उन्होंने अपने साथियों के साथ इस स्थान का दौरा किया स्थानीय लोगों की मदद और पुरानी सभ्यता के अपने ज्ञान को विस्तार देते हुए यहाँ शैल चित्रों और अन्य अवशेषों को ढूंढना शुरू किया। विंध्य क्षेत्र मे नर्मदा और उनकी सहायक नदी, जैव विविधता, सघन जंगल खोज की दिशा के अनुकूल थे।स्थानीय मान्यता के अनुसार महाभारत कालीन भीम ने यहां अपने दिन गुजारे थे तो भीमबैठका कहलाता है।
और उन लोगों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब उनकों आदिमानव की एक पूरी दुनिया होने का प्रमाण मिले ।प्रागैतिहासिक काल का प्रतीक भीमबैठका गुफाएँ मानव के प्राचीन निवास स्थानों में से एक हैं। यहाँ के गुफा चित्र बताते हैं कि यह स्थल लगभग 30,000 साल पुराना है।
यहाँ के शैल चित्र पाषाण युग (Stone Age) और मध्यपाषाण युग (Mesolithic Age) के हैं। इन चित्रों में मानव का शिकार, नृत्य, रीति-रिवाज, और सामाजिक जीवन दर्शाया गया है।
मध्य प्रदेश, जिसे भारत का हृदय कहा जाता है, अपनी अद्भुत प्राकृतिक सुंदरता, ऐतिहासिक धरोहरों और सांस्कृतिक विविधता के लिए प्रसिद्ध है। इसी प्रदेश मे भीमबैठका, रायसेन जिले में स्थित, भोपाल से लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर विंध्याचल की पहाड़ियों में स्थित है। यह स्थल प्रागैतिहासिक काल से लेकर आज तक मानव के अस्तित्व और उनकी रचनात्मकता का साक्षी है। UNESCO ने 2003 में इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया।
भीमबैठका एक ऐसा स्थल है, जो न केवल हमारे इतिहास का प्रमाण है, बल्कि यह मानव सभ्यता की विकास यात्रा का जीवंत दस्तावेज भी है। यहाँ मिले अवशेष यह बताते हैं कि यहाँ पर प्राचीन काल से मानव का निवास था। पत्थर और हड्डी के औजार इस बात का प्रमाण हैं कि यहाँ रहने वाले लोग शिकार और कृषि करते थे। यह स्थल गुफा चित्रकारी और पाषाण युगीन संस्कृति का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है। यहाँ की गुफाएँ प्राकृतिक रूप से बनी हैं, और इनकी संरचना लाखों वर्षों की भूगर्भीय गतिविधियों का परिणाम है।
श्री वाकणकर ने पाया कि ये गुफाएँ पाषाण युग से लेकर मध्यकाल तक मानव गतिविधियों का केंद्र रही हैं। इन गुफाओं को शैल आश्रय कहते हैं (Rock Shelters)शैल आश्रय प्राकृतिक रूप से बने स्थान हैं, जहां चट्टानों के नीचे या उनके किनारे एक संरक्षित जगह होती है। ये प्राचीन काल में मनुष्यों और जानवरों के रहने, शरण लेने या कला के निर्माण (जैसे भित्ति चित्र) के लिए उपयोग में लाए जाते थे। भारत में भीमबेटका शैल आश्रय का प्रसिद्ध उदाहरण हैं।
अब प्रश्न यह है की ये कैसे पता चलता है की ये शैल आश्रय कितने पुराने हैं।इस उम्र का पता करने के लिए कार्बन डेटिंग विधि का उपयोग करते हैं।
भीमबैठका 500 से अधिक शैल आश्रयों (Rock Shelters) का समूह है, जिनमें से 15 गुफाएँ पर्यटकों के लिए खोली गई हैं। इन गुफाओं में बनी चित्रकारी लगभग 30,000 साल पुरानी है।
विश्व में कई अन्य जगह शैल आश्रय हैं जिनमे अल्टामिरा गुफाएँ (स्पेन) जो लगभग 36,000 साल पुरानी हैं, लास्को गुफाएँ (फ्रांस) यह गुफाएँ 17,000 साल पुरानी हैं और इन्हें “पाषाण युग की कला दीर्घा” कहा जाता है , ट्वाईफेलफोंटेन (नामीबिया) अफ्रीका के नामीबिया में स्थित, यह स्थल लगभग 6,000 साल पुराना है, काकाडु नेशनल पार्क (ऑस्ट्रेलिया)यह स्थल 40,000 साल पुराना है और आदिवासी समुदायों द्वारा बनाए गए शैल चित्रों के लिए प्रसिद्ध है, बंदरगाह गुफाएँ (दक्षिण अफ्रीका) में स्थित हैं।यहाँ मानव जीवन के प्राचीन प्रमाण मिले हैं, और चित्रों में शिकार और सामाजिक गतिविधियाँ दर्शाई गई हैं।
गुफा चित्रों से पता चलता है कि आदिमानव सामूहिक जीवन व्यतीत करते थे। वे एक साथ शिकार करते, भोजन साझा करते और समूह में रहते थे। समूह में काम करने की क्षमता और जिम्मेदारियों का बंटवारा, जैसे शिकार, भोजन संग्रह, और बच्चों की देखभाल, प्रारंभिक सामाजिक संगठन को दर्शाता है। समूह में नेतृत्व करने वाले व्यक्ति हो सकते थे, जो शिकार और सुरक्षा के लिए जिम्मेदार होते थे। रीति-रिवाज और परंपराएँ धीरे-धीरे विकसित हो रही थीं। भाषा के शुरुआती स्वरूप मौखिक थे। संकेत और आवाज़ों के माध्यम से संवाद होता था। समूह में शिकार और सामाजिक गतिविधियों के लिए यह आवश्यक था। चित्रलिपि (Pictographic Communication) शैल चित्र उनके संवाद का सबसे पुराना स्वरूप हो सकता है। चित्रकारी का उपयोग संदेश और कहानियों को व्यक्त करने के लिए किया जाता था।
भीमबैठका में किसी संरचित लिपि का प्रमाण नहीं है, लेकिन चित्रलिपि से संकेत मिलता है कि भाषा और लेखन का विकास धीरे-धीरे हुआ। भीमबैठका के शैल चित्रों की तुलना अन्य स्थलों (जैसे अल्टामिरा, लास्को) से करके सभ्यता के विकास को समझा जा सकता है।
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