राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत प्रस्तावित त्रिभाषा सूत्र पर देशभर में बहस छिड़ी हुई है। कुछ राज्यों में इसे हिंदी थोपने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है, जबकि अन्य इसे भारतीय भाषाओं के समन्वय की दिशा में एक बड़ा कदम मानते हैं। हाल ही में, तेलुगु सुपरस्टार और जन सेना पार्टी के प्रमुख पवन कल्याण ने हिंदी भाषा के महत्व को लेकर सकारात्मक रुख अपनाया था। अब आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने भी हिंदी के पक्ष में अपने विचार व्यक्त किए हैं, जिससे यह बहस और तेज हो गई है।
नायडू का मानना है कि हिंदी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि पूरे देश को जोड़ने का माध्यम है। उनके अनुसार, विभिन्न राज्यों के लोगों के बीच संवाद स्थापित करने के लिए हिंदी का ज्ञान आवश्यक हो सकता है। व्यापार, शिक्षा और रोजगार के अवसरों की दृष्टि से हिंदी का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। इस संदर्भ में, भाषा को राजनीतिक हथियार बनाने के बजाय इसे ज्ञान और संवाद का माध्यम समझने की आवश्यकता है।
भारत की बहुभाषी संस्कृति इसकी सबसे बड़ी विशेषता है, और इसमें हिंदी सहित सभी क्षेत्रीय भाषाओं का समान योगदान है। किसी भी भाषा को थोपने या दबाने का प्रयास न तो व्यावहारिक है और न ही उचित। हालांकि, यह भी सच है कि हिंदी के व्यापक उपयोग और रोजगार में इसकी प्रासंगिकता को नकारा नहीं जा सकता। भाषा सीखने से किसी की मातृभाषा कमजोर नहीं होती, बल्कि नई भाषाओं का ज्ञान व्यक्ति की बौद्धिक और व्यावसायिक क्षमताओं को और समृद्ध करता है।
इस पूरे मुद्दे को भाषा बनाम राजनीति की लड़ाई की बजाय भाषाई समावेशिता के रूप में देखा जाना चाहिए। हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं को प्रतिद्वंद्वी नहीं, बल्कि सहयोगी के रूप में स्वीकार करने की ज़रूरत है। पवन कल्याण और चंद्रबाबू नायडू जैसे नेताओं का दृष्टिकोण इसी संतुलन की ओर इशारा करता है, जो यह दर्शाता है कि हिंदी का ज्ञान किसी पर थोपा जाने वाला विषय नहीं, बल्कि व्यक्तिगत और राष्ट्रीय विकास के लिए एक सकारात्मक प्रयास है।
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