अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हाल ही में दावा किया कि भारत ने अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ में कटौती करने पर सहमति जताई है, जिससे अमेरिका के लिए व्यापार में सुधार होगा। उन्होंने इसे एक जीत करार दिया और कहा कि अब अमेरिका को “लूटना” बंद हो गया है। लेकिन इस बयान के पीछे की सच्चाई कहीं अधिक जटिल है।
व्यापारिक वार्ता या राजनीतिक बयानबाजी?
ट्रम्प ने कुछ दिन पहले भारत पर 100% तक टैरिफ लगाने की चेतावनी दी थी, लेकिन अब उन्होंने स्वर बदलते हुए इसे अमेरिका के लिए लाभकारी सौदा बताया। हालांकि, भारत सरकार के सूत्रों ने स्पष्ट किया कि यह निर्णय ट्रम्प के दबाव में नहीं, बल्कि पहले से चल रही व्यापार वार्ताओं का हिस्सा है।
भारत ने हाल के वर्षों में ऑस्ट्रेलिया, यूएई, स्विट्जरलैंड और नॉर्वे जैसे देशों के साथ टैरिफ समझौतों को संशोधित किया है। यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के साथ भी ऐसे समझौतों पर वार्ता जारी है। इसी क्रम में अमेरिका के साथ बातचीत को भी देखा जाना चाहिए, न कि इसे ट्रम्प प्रशासन की जबरदस्त जीत मान लिया जाए।
मोदी सरकार का रणनीतिक दृष्टिकोण
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वाशिंगटन यात्रा के दौरान दोनों देशों ने 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 500 बिलियन डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा था। भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने हाल ही में वाशिंगटन में अमेरिकी व्यापार अधिकारियों से मुलाकात की थी।
भारत वैश्विक व्यापार में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए दीर्घकालिक रणनीति के तहत कदम उठा रहा है। यह न केवल अमेरिकी कंपनियों के लिए अवसर पैदा कर रहा है, बल्कि घरेलू उद्योगों के हितों की भी रक्षा कर रहा है।
क्या यह ट्रम्प के चुनावी अभियान का हिस्सा है?
डोनाल्ड ट्रम्प 2024 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में फिर से मैदान में हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या उनके ये बयान महज चुनावी रणनीति का हिस्सा हैं? ट्रम्प ने अपने कार्यकाल के दौरान भी भारत को “टैरिफ किंग” कहा था और कई मौकों पर व्यापारिक समझौतों को लेकर तीखी बयानबाजी की थी।
निष्कर्ष
भारत-अमेरिका व्यापार वार्ताओं को ट्रम्प बनाम मोदी की लड़ाई के रूप में देखने की बजाय इसे आर्थिक कूटनीति के रूप में समझना चाहिए। यह सही है कि भारत अपनी व्यापारिक नीति में बदलाव कर रहा है, लेकिन यह निर्णय केवल ट्रम्प के दबाव में नहीं, बल्कि भारत के दीर्घकालिक आर्थिक लक्ष्यों और वैश्विक प्रतिस्पर्धा को ध्यान में रखकर लिया गया है।
आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि अमेरिका और भारत के बीच व्यापारिक समीकरण किस दिशा में आगे बढ़ते हैं, और क्या ट्रम्प का यह दावा वास्तव में ठोस व्यापारिक सफलता में तब्दील होता है या फिर केवल एक चुनावी बयानबाजी बनकर रह जाता है।
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