भारत 2027 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनेगा—यह लक्ष्य अब सरकार की नीतियों और योजनाओं में स्पष्ट रूप से दिख रहा है। हाल ही में एक समिट में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस संकल्प को दोहराते हुए कहा कि भारत तेज़ी से आर्थिक विकास के पथ पर आगे बढ़ रहा है। उन्होंने विशेष रूप से मध्य प्रदेश की संभावनाओं पर ज़ोर दिया, जहां भरपूर प्राकृतिक संसाधन, श्रम शक्ति और औद्योगिक विस्तार की व्यापक संभावनाएं मौजूद हैं। लेकिन क्या यह लक्ष्य केवल सरकारी घोषणाओं से पूरा हो जाएगा? इसके लिए कौन-कौन से महत्वपूर्ण सुधारों की आवश्यकता होगी, और क्या मौजूदा परिस्थितियां इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य के अनुकूल हैं?
भारत की अर्थव्यवस्था वर्तमान में विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। बीते वर्षों में सरकार ने आत्मनिर्भर भारत, मेक इन इंडिया, और पीएलआई स्कीम जैसी पहलों के माध्यम से उत्पादन और निर्यात को गति देने का प्रयास किया है। इसके साथ ही डिजिटल इंडिया और स्टार्टअप इंडिया जैसी योजनाओं ने तकनीकी नवाचार और युवा उद्यमियों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। किंतु महज़ योजनाओं की घोषणा करने से आर्थिक क्रांति संभव नहीं है। उनके सफल क्रियान्वयन और सही दिशा में निवेश की आवश्यकता होती है।
यदि हम भारत के सामने मौजूद चुनौतियों की बात करें तो सबसे पहली ज़रूरत उद्योग और व्यापार को गति देने की होगी। वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए भारत को अपनी विनिर्माण क्षमता को बढ़ाना होगा। चीन और वियतनाम जैसे देशों से मुकाबला करने के लिए उद्योग जगत को अनुकूल माहौल और सुलभ नीतियां प्रदान करनी होंगी। इसके साथ ही ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस’ को और प्रभावी बनाना होगा ताकि विदेशी निवेशक भारत को एक प्रमुख औद्योगिक केंद्र के रूप में देखें।
रोज़गार और श्रमशक्ति को मज़बूत करना इस लक्ष्य को पाने की दिशा में एक और अहम कड़ी है। भारत की युवा आबादी एक बड़ी ताकत है, लेकिन इसे सही कौशल प्रशिक्षण देना उतना ही आवश्यक है। सरकार की स्किल इंडिया जैसी योजनाओं को और व्यापक बनाकर छोटे शहरों और गाँवों तक पहुँचाना होगा ताकि मज़दूरों को बदलते उद्योगों की आवश्यकताओं के अनुसार प्रशिक्षित किया जा सके। अगर युवा कुशल नहीं होंगे तो भारत की जनसंख्या उसका सबसे बड़ा संसाधन बनने के बजाय सबसे बड़ी चुनौती बन जाएगी।
अर्थव्यवस्था को नई ऊँचाइयों पर ले जाने के लिए बुनियादी ढांचे और लॉजिस्टिक्स में सुधार भी बेहद आवश्यक है। भारत में तेज़ी से विकासशील सड़क, रेलवे, और बंदरगाहों की व्यवस्था व्यापार के विस्तार में बड़ी भूमिका निभा सकती है। सरकार की गति शक्ति योजना और भारतमाला परियोजना इस दिशा में सही प्रयास हैं, लेकिन इनके क्रियान्वयन में किसी भी प्रकार की देरी से निवेशकों का भरोसा डगमगा सकता है। इसी तरह वित्तीय समावेशन को भी प्राथमिकता देनी होगी। ग्रामीण क्षेत्रों में माइक्रोफाइनेंस और डिजिटल बैंकिंग को बढ़ावा देकर छोटे कारोबारियों को आगे लाने का प्रयास किया जाना चाहिए।
अब सवाल उठता है कि क्या भारत 2027 तक इस लक्ष्य को वास्तव में प्राप्त कर सकता है? नीतियां सही दिशा में हैं, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती उनके प्रभावी कार्यान्वयन की है। भारत को न केवल आर्थिक सुधारों की रफ़्तार तेज़ करनी होगी, बल्कि शासन की स्थिरता और पारदर्शिता भी सुनिश्चित करनी होगी। निवेशकों का विश्वास तभी बढ़ेगा जब उन्हें भरोसा होगा कि भारत में उनकी पूंजी सुरक्षित है और उन्हें व्यापार के लिए उपयुक्त माहौल मिलेगा।
यह लक्ष्य केवल सरकार के प्रयासों से ही पूरा नहीं होगा। इसके लिए उद्योग जगत, स्टार्टअप्स, छोटे व्यापारियों और नागरिक समाज को भी अपनी भूमिका निभानी होगी। जब सरकार, उद्योग, और आम नागरिक एक साथ आर्थिक विकास की इस यात्रा में योगदान देंगे, तभी भारत 2027 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के अपने सपने को साकार कर सकेगा। यह केवल संकल्प और घोषणाओं से नहीं बल्कि ठोस नीति निर्माण, सतत क्रियान्वयन और जनभागीदारी से संभव होगा।
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