सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में अपने सिंगापुर दौरे के दौरान कहा कि सिंगापुर हर विकासशील देश के लिए प्रेरणा है और भारत में कई सिंगापुर बनाए जाएंगे। उन्होंने सिंगापुर की आर्थिक और सामाजिक सफलता की प्रशंसा की और कहा कि यह देश दुनिया के विकासशील देशों के लिए एक मॉडल है। सिंगापुर की छोटी सी भूमि में जो विकास हुआ है, वह भारत के लिए भी एक प्रेरणादायक दृष्टांत है।

सिंगापुर: एक छोटा, लेकिन शक्तिशाली देश

सिंगापुर एक छोटा टापू देश है, जो मात्र 719 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। यह आकार में दिल्ली से भी छोटा है, लेकिन इसकी आर्थिक और सामाजिक सफलता ने इसे दुनिया के सबसे अमीर देशों में चौथे स्थान पर ला खड़ा किया है। सिंगापुर की प्रति व्यक्ति आय 1.07 लाख अमेरिकी डॉलर (करीब 90 लाख रुपए) है, जबकि भारत में यह मात्र 2,239 डॉलर (करीब 1 लाख 87 हजार रुपए) है। इसके बावजूद, सिंगापुर अपने व्यापारिक माहौल और आर्थिक ताकत के कारण विश्व मंच पर एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

वीरान टापू से व्यापारिक हब बनने की कहानी

सिंगापुर की यह सफलता हमेशा से नहीं थी। 1819 से पहले, सिंगापुर एक वीरान टापू था। यह आधुनिक मलेशिया, इंडोनेशिया और सिंगापुर के हिस्सों में फैले श्रीविजय बौद्ध साम्राज्य के अधीन था। हालांकि, 11वीं सदी में भारत के चोल साम्राज्य के राजा राजेंद्र चोल ने चीन को जीतने की योजना बनाई। उनके साथ कलिंग के राजा शूलन भी थे, जिन्हें सिकंदर का वंशज माना जाता था। लेकिन, जब वे चीन के करीब पहुंचे, तो उन्होंने रास्ते में ही एक साम्राज्य (श्रीविजय साम्राज्य) पर हमला किया और उसे जीत लिया।

चीन तक पहुंचना मुश्किल होने के कारण, राजा शूलन ने वहां रहने का फैसला किया और श्रीविजय साम्राज्य की राजकुमारी ओनांग किउ से विवाह कर लिया। यह वही शूलन थे, जिनके वंशज सांग निला उतामा ने 1299 में सिंगापुर की खोज की थी। उस समय इस द्वीप का नाम ‘तेमासेक’ था। सांग निला उतामा ने इस द्वीप को ‘सिंहपुर’ नाम दिया, जिसका अर्थ था ‘शेरों का नगर’। यही नाम आगे चलकर सिंगापुर बना।

अंग्रेजों का प्रवेश और सिंगापुर का विकास

15वीं सदी में पुर्तगाली, डच और अंग्रेज व्यापारियों ने सिंगापुर के महत्व को समझा और इस पर कब्जा करने की कोशिशें कीं। अंग्रेजों ने 1819 में जोहर के सुल्तान के साथ करार करके सिंगापुर को व्यापारिक केंद्र के रूप में विकसित किया। उन्होंने यहां पोर्ट्स बनाए और व्यापारियों को लुभाने के लिए कई टैक्स छूट दीं। धीरे-धीरे, सिंगापुर एक व्यापारिक केंद्र के रूप में उभरा और इसकी आबादी तेजी से बढ़ने लगी।