सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: नमस्कार! आईटीडीसी न्यूज़ के साइट इनसाइट में आपका स्वागत है। COP29 जलवायु सम्मेलन में भारत ने अमीर देशों के ₹25 लाख करोड़ (300 बिलियन डॉलर) के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। भारत ने इस राशि को ‘अपर्याप्त’ और ‘चिल्लर’ करार देते हुए खारिज कर दिया। सवाल ये है, आखिर भारत ने ऐसा क्यों किया? आइए, इस गहन विश्लेषण में जानते हैं पूरी कहानी।”

[COP29 क्या है?]
“सबसे पहले बात करते हैं COP29 की। COP यानी कॉनफ्रेंस ऑफ द पार्टीज़। ये एक वार्षिक अंतरराष्ट्रीय बैठक है, जहां 197 देश जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपायों पर चर्चा करते हैं। इस बार यह सम्मेलन अजरबैजान के बाकू शहर में आयोजित हुआ। थीम थी – ‘क्लाइमेट फाइनेंस’, यानी जलवायु परिवर्तन के लिए फंडिंग।”

“सम्मेलन का उद्देश्य यह तय करना था कि विकसित देश विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कैसे और कितना आर्थिक सहयोग देंगे। इसी के तहत 2035 तक हर साल 300 बिलियन डॉलर की फंडिंग का प्रस्ताव दिया गया।”

[₹25 लाख करोड़ का प्रस्ताव और उसके उद्देश्य]
“इस 300 बिलियन डॉलर यानी ₹25 लाख करोड़ की फंडिंग का मुख्य उद्देश्य चार चीजों पर केंद्रित था:

  1. सौर, पवन और जल ऊर्जा जैसे रिन्यूएबल एनर्जी स्रोतों को बढ़ावा देना।
  2. जलवायु आपदाओं से निपटने के लिए विकासशील देशों की मदद करना।
  3. ग्रीन टेक्नोलॉजी जैसे हाइड्रोजन एनर्जी और कार्बन कैप्चर में निवेश।
  4. जलवायु परिवर्तन से प्रभावित क्षेत्रों को वित्तीय सहायता देना।”

[भारत ने क्यों ठुकराई ये डील?]
“भारत ने इस प्रस्ताव को ठुकराते हुए साफ कहा कि यह राशि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए नाकाफी है। भारत की प्रतिनिधि चांदनी रैना ने COP29 में स्पष्ट किया:
‘भारत इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करता। यह राशि न तो हमारे लक्ष्यों को पूरा करने में मददगार है, न ही इसमें हमारे विकास के अधिकारों का सम्मान किया गया है।'”

“विशेषज्ञों का भी मानना है कि इतनी कम राशि से विकासशील देश अपनी जलवायु लक्ष्यों को हासिल नहीं कर सकते। भारत ने यह भी तर्क दिया कि यह फंडिंग असल में विकासशील देशों पर प्रदूषण नियंत्रण के कठोर नियम थोपने का प्रयास है।”

[विकसित बनाम विकासशील देशों का विवाद]
“भारत का स्टैंड यह है कि जलवायु संकट के लिए मुख्य रूप से विकसित देश जिम्मेदार हैं। औद्योगिक क्रांति के दौरान ग्रीनहाउस गैसों का सबसे ज्यादा उत्सर्जन इन्हीं देशों ने किया। अब वही देश विकासशील देशों पर कठोर नियम लागू कर रहे हैं, जो उनके औद्योगिक विकास को बाधित करते हैं।”

“भारत का कहना है कि विकसित देशों को पहले अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना चाहिए और फिर विकासशील देशों को समानता के आधार पर सहयोग देना चाहिए।”

[भारत का स्टैंड और आगे की राह]
“भारत ने COP29 में यह भी साफ किया कि वह जलवायु परिवर्तन के खिलाफ अपने लक्ष्यों को लेकर गंभीर और सशक्त है। लेकिन उसे समानता और सम्मान चाहिए, न कि ‘थोड़ी-बहुत आर्थिक मदद’। भारत अपने संसाधनों और स्मार्ट इंडस्ट्रियलाइजेशन के दम पर आगे बढ़ने के लिए प्रतिबद्ध है।”

[निष्कर्ष]
“COP29 में भारत का स्टैंड यह दिखाता है कि वह जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वैश्विक नेताओं से वास्तविक प्रतिबद्धता की उम्मीद करता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या विकसित देश अपनी जिम्मेदारी निभाने को तैयार हैं? यही सवाल भविष्य की दिशा तय करेगा।”

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