सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: नमस्कार दोस्तों! स्वागत है आईटीडीसी न्यूज़ पर। आज हम चर्चा करेंगे महाराष्ट्र के आगामी चुनावों पर, जहाँ बीजेपी और एमवीए के बीच संघर्ष नई दिशा में बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है। इस बार चुनावी मुद्दे में ‘हिंदुत्व’ और ‘जाति’ का बड़ा प्रभाव है, जो महाराष्ट्र की राजनीति को पूरी तरह से प्रभावित कर रहे हैं। बीजेपी का ‘हिंदुत्व’ एजेंडा और महाविकास अघाड़ी (एमवीए) का जातिगत और सांप्रदायिक समीकरण किस प्रकार चुनावी नतीजों को आकार देगा, जानें इस खबर में।

बीजेपी का ‘हिंदुत्व’ एजेंडा

बीजेपी इस बार चुनाव में हिंदू वोटरों को एकजुट करने का प्रयास कर रही है। उनका मानना है कि अगर हिंदू वोट एकजुट हो जाएं, तो पार्टी के लिए जीत सुनिश्चित हो सकती है। महाराष्ट्र की आबादी में मुस्लिम समुदाय का प्रभाव 11.56% है, जो राज्य की 38 सीटों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है। पिछली बार यानी 2019 में बीजेपी को मुस्लिम बहुल सीटों पर सफलता मिली थी, लेकिन इस बार बीजेपी के लिए इस समीकरण में बदलाव हो सकता है।

एमवीए का जातिगत समीकरण

महाविकास अघाड़ी (एमवीए) इस चुनाव में अपने पुराने जातिगत समीकरणों पर भरोसा कर रही है। विदर्भ क्षेत्र में दलित-मुस्लिम-कुनबी वोटों पर फोकस किया जा रहा है, जबकि अन्य क्षेत्रों में मराठा-मुस्लिम-दलित समीकरण पर काम हो रहा है। मराठा समुदाय की नाराजगी एक अहम मुद्दा बन चुकी है, जिसमें मंझले नेता मनोज जरांगे के नेतृत्व में मराठा आरक्षण को लेकर कई बार प्रदर्शन हो चुके हैं। बीजेपी और महायुती को इस नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है।

उलेमा बोर्ड की चुनौती

एमवीए के सामने एक और बड़ी चुनौती है ऑल इंडिया उलेमा बोर्ड की मांगें। बोर्ड ने एमवीए से मुस्लिम समुदाय के लिए 10% आरक्षण की मांग की है। इसके साथ ही, आरएसएस पर प्रतिबंध की मांग भी उठाई गई है। ये मांगें एमवीए के लिए चुनावी समीकरण को और जटिल बना सकती हैं।

बीजेपी का हिंदुत्व कार्ड और शिवसेना का समर्थन

बीजेपी का हिंदुत्व कार्ड इस बार खासा प्रभावी दिख रहा है, खासकर शिवसेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे के हिंदुत्व सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए। शिवसेना अब यूबीटी कांग्रेस के साथ है, जिससे बीजेपी को हिंदुत्व को और ज्यादा जोर-शोर से उठाने का मौका मिल गया है। उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इसे ‘वोट जिहाद’ का नाम दिया और संभाजीनगर में इसे ‘वोटों का धर्मयुद्ध’ बताया है।

एमवीए और बीजेपी का चुनावी घोषणापत्र

दोनों प्रमुख गठबंधन महिला, किसान, आदिवासी और दलित समुदायों को अपने घोषणापत्र में प्रमुखता दे रहे हैं, लेकिन असली चुनावी एजेंडा अभी भी हिंदुत्व और जातिगत समीकरण ही बना हुआ है। बीजेपी की ओर से ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ जैसे बयान दिए जा रहे हैं, वहीं कांग्रेस जाति जनगणना और संविधान बचाने जैसे मुद्दों को लेकर चुनावी मैदान में है।

चुनावी नतीजे और भविष्य के संकेत

2024 के लोकसभा चुनावों में एमवीए ने 44% वोट शेयर हासिल किया था, और 48 में से 30 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इस बढ़े हुए वोट शेयर ने बीजेपी के लिए खतरे की घंटी बजाई है, और इसलिए बीजेपी ने अब हिंदुत्व कार्ड पर जोर दिया है। महाराष्ट्र चुनाव में जातिगत समीकरण और हिंदुत्व कार्ड का असर कितना होगा, ये तो चुनावी नतीजों से ही स्पष्ट होगा।