भारतीय बैंकिंग प्रणाली में डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन (DICGC) के तहत फिलहाल ₹5 लाख तक की जमा राशि सुरक्षित है। इसका मतलब यह है कि अगर कोई बैंक दिवालिया हो जाता है, तो ग्राहक को अधिकतम ₹5 लाख तक की ही गारंटी मिलती है। अब सरकार इस सीमा को ₹10 लाख या उससे अधिक करने पर विचार कर रही है। यह बदलाव क्यों जरूरी है, और इसका बैंकिंग सेक्टर पर क्या असर होगा? आइए इस पर चर्चा करते हैं।

खाताधारकों की सुरक्षा क्यों बढ़ानी चाहिए?

1. बढ़ता बैंकिंग जोखिम: पिछले कुछ वर्षों में पीएमसी बैंक, यस बैंक और लक्ष्मी विलास बैंक जैसे कई मामलों में खाताधारकों को भारी नुकसान उठाना पड़ा। छोटे सहकारी बैंकों में संकट की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। ऐसे में, अधिक बीमा कवर से लोगों का विश्वास बना रहेगा।

2. अंतरराष्ट्रीय मानकों से तुलना: अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप के कई देशों में बैंक जमा बीमा भारत की तुलना में ज्यादा है। अमेरिका में यह सीमा $250,000 (करीब ₹2 करोड़) तक है, जबकि भारत में अभी सिर्फ ₹5 लाख है।

3. मध्यम वर्ग और वरिष्ठ नागरिकों को राहत: रिटायर्ड लोग और मध्यम वर्गीय परिवार आमतौर पर बैंक में बड़ी राशि जमा रखते हैं। अगर कोई बैंक संकट में आता है, तो मौजूदा बीमा कवर उनके लिए नाकाफी साबित हो सकता है।

बैंकिंग सेक्टर पर असर

अगर सरकार यह बदलाव करती है, तो इससे बैंकों की जवाबदेही बढ़ेगी और वे जोखिम प्रबंधन को और मजबूत करेंगे। हालांकि, बैंकों को इसके लिए DICGC को ज्यादा प्रीमियम देना होगा, जिससे उनका ऑपरेटिंग कॉस्ट बढ़ सकता है।

क्या सरकार इसे लागू करेगी?

वित्त मंत्रालय और आरबीआई इस प्रस्ताव पर विचार कर रहे हैं। हालांकि, इसमें मुख्य चुनौती बीमा कवर बढ़ाने से बैंकों पर पड़ने वाला अतिरिक्त बोझ है। यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार खाताधारकों की सुरक्षा को प्राथमिकता देती है या बैंकों के वित्तीय संतुलन को।

निष्कर्ष

बैंकिंग सिस्टम में लोगों का भरोसा बनाए रखने के लिए जमा बीमा सीमा बढ़ाना समय की मांग है। सरकार को चाहिए कि वह इस पर जल्द फैसला ले, ताकि आम जनता को अपनी मेहनत की कमाई को लेकर कोई चिंता न हो। खाताधारकों की सुरक्षा मजबूत होगी, तो बैंकिंग सेक्टर भी मजबूत होगा।

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