बेंगलुरु, जो कभी अपने उद्यानों और हरियाली के लिए जाना जाता था, अब जल संकट के गंभीर दौर से गुजर रहा है। तेजी से शहरीकरण, बढ़ती आबादी और संसाधनों के अति दोहन ने इस शहर को पानी की कमी की चुनौती से जूझने पर मजबूर कर दिया है। कावेरी नदी और शहर के प्रमुख जलाशय जैसे टीजी हल्लि और हेसरघट्टा अब लगभग सूख चुके हैं, जिससे बेंगलुरु में जल आपूर्ति पर भारी असर पड़ा है। इस संकट के मूल में गलत जल प्रबंधन और तेजी से बदलते जलवायु पैटर्न हैं, जिनके परिणामस्वरूप वर्षा के अनियमित पैटर्न ने संकट को और गहरा बना दिया है।

सरकार ने इस जल संकट से निपटने के लिए आपातकालीन कदम उठाए हैं। पानी की कटौती के साथ-साथ, जल संरक्षण के लिए जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं। पानी का सीमित वितरण, वर्षा जल संचयन को अनिवार्य करना, और शहर के तालाबों के पुनरुद्धार पर ध्यान दिया जा रहा है। हालांकि, ये कदम फिलहाल तात्कालिक राहत प्रदान कर सकते हैं, लेकिन दीर्घकालिक समाधान के बिना यह समस्या फिर से उभर सकती है।

बेंगलुरु के भूजल स्तर में भी भारी गिरावट देखी जा रही है, जो इस संकट को और गहरा बना रही है। पानी के अंधाधुंध दोहन और बुनियादी ढांचे में कमियों ने जल संकट को और गंभीर बना दिया है। भूजल का असंतुलित उपयोग इस स्थिति को और विकट बना रहा है, जिससे शहर के लाखों निवासियों के लिए पीने का पानी भी एक चुनौती बन गया है।

इस संकट का समाधान एक समग्र दृष्टिकोण की मांग करता है। पानी की बचत और संरक्षण के साथ-साथ प्रभावी जल प्रबंधन नीति की सख्त आवश्यकता है। शहर में जल पुनर्चक्रण की व्यवस्था को बेहतर बनाने, तालाबों के पुनरुद्धार और वर्षा जल संग्रहण की व्यापक योजना को लागू करने से संकट को नियंत्रित किया जा सकता है।

बेंगलुरु का यह जल संकट न केवल इस शहर के लिए बल्कि पूरे देश के लिए एक चेतावनी है। यदि हम जल संसाधनों का जिम्मेदार और सतत उपयोग सुनिश्चित नहीं करते, तो भविष्य में और भी गंभीर संकटों का सामना करना पड़ सकता है। यह समय है जब सरकार, नागरिक और व्यवसायी एकजुट होकर इस समस्या से निपटने के प्रयास करें और जल संरक्षण की दिशा में ठोस कदम उठाएं।

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