सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क – आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस/आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: पश्चिम बंगाल में OBC सर्टिफिकेट रद्द किए जाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सोमवार (2 सितंबर) को सुनवाई होगी। इससे पहले 27 अगस्त को हुई सुनवाई में पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट से कहा था कि याचिकाकर्ताओं द्वारा प्रस्तुत किए गए कई दस्तावेजों को पढ़ने और उनका जवाब देने के लिए समय चाहिए।
गौरतलब है कि 22 मई को कलकत्ता हाईकोर्ट ने राज्य में 2010 के बाद कई जातियों को दिए गए OBC स्टेटस को रद्द कर दिया था। इसके साथ ही, हाईकोर्ट ने इन जातियों को सरकारी नौकरियों और शैक्षिक संस्थानों में मिलने वाले आरक्षण को भी अवैध ठहराया था। इस फैसले के विरोध में बंगाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने मांगा डेटा:
सुप्रीम कोर्ट ने 5 अगस्त को सुनवाई के दौरान राज्य सरकार से पूछा था कि मुस्लिम समुदाय समेत 77 नई जातियों को OBC लिस्ट में क्यों शामिल किया गया। कोर्ट ने इन जातियों के सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन से संबंधित डेटा भी मांगा था।
इसके जवाब में कपिल सिब्बल ने कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करने की मांग की थी और बताया कि इस फैसले के कारण NEET-UG 2024 पास करने वाले छात्रों को प्रवेश में दिक्कतें आ रही हैं।
ममता बनर्जी का विरोध:
कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले को लेकर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कड़ा विरोध जताया था। उन्होंने कहा था कि वे इस आदेश को नहीं मानेंगी और राज्य में OBC आरक्षण जारी रहेगा। ममता ने आरोप लगाया था कि भाजपा शासित प्रदेशों की नीतियों पर चर्चा क्यों नहीं की जाती और उन्होंने कोर्ट के फैसले को चुनौती देने का ऐलान किया था।
अमित शाह का बयान:
गृहमंत्री अमित शाह ने इस मामले पर ममता बनर्जी की आलोचना की और कहा कि ममता ने बिना किसी सर्वे के 118 मुस्लिमों को OBC रिजर्वेशन दिया। कोर्ट ने इस पर संज्ञान लेते हुए 2010 से 2024 के बीच दिए गए सभी OBC सर्टिफिकेट रद्द कर दिए। शाह ने कहा कि वे सुनिश्चित करेंगे कि कोर्ट का आदेश लागू हो।
हाईकोर्ट की याचिका:
ममता सरकार के OBC आरक्षण देने के फैसले के खिलाफ 2011 में जनहित याचिका दाखिल की गई थी। याचिका में कहा गया था कि 2010 के बाद दिए गए OBC सर्टिफिकेट 1993 के पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम के तहत नहीं दिए गए थे। कोर्ट ने