आज के दिन, जब करोड़ों साधक एक साथ मौन हो जाते हैं, तो वह मौन शोक का नहीं, एक परम चेतना से जुड़ाव का होता है।
19 अप्रैल, बाबूजी महाराज का निर्वाण दिवस — केवल एक तारीख नहीं, बल्कि उस दिव्य ज्योति की स्मृति है, जिसने ध्यान को कर्मकांडों से मुक्त कर हृदय की सहजता तक पहुंचाया।
श्री रामचंद्र जी उर्फ़ बाबूजी महाराज — शाहजहाँपुर के एक साधारण परिवार में जन्मे, परंतु आध्यात्मिक ऊंचाइयों के ऐसे शिखर को छू लिया, जहाँ से वे आज भी हजारों नहीं, बल्कि लाखों आत्माओं को मौन में मार्ग दिखा रहे हैं।
उन्होंने अपने गुरु लालाजी महाराज से दीक्षा लेकर सहज मार्ग और Heartfulness ध्यान पद्धति की नींव रखी।
उनका दर्शन था:
> “ध्यान केवल अभ्यास नहीं, आत्मा की घर वापसी है।”
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निर्वाण नहीं, विस्तार है यह दिवस
1983 में उन्होंने देह त्यागी, लेकिन उनकी उपस्थिति सीमाओं से परे हो गई।
आज, कन्हा शांति वनम् से लेकर अमेरिका, यूरोप, जापान, अफ्रीका तक — उनके द्वारा दी गई प्राणाहुति की अनुभूति हो रही है।
उनकी पुस्तकों, जैसे “Reality at Dawn”, “श्रद्धांजलि”, “योग की प्रभावशीलता” को आज ध्यान के माध्यम से फिर से जीवंत किया जा रहा है।—
सहज मार्ग – हर आत्मा के लिए
बाबूजी ने कभी धर्म, जाति, भाषा का भेद नहीं किया। उनके लिए हर आत्मा ईश्वर की एक ही किरण थी।
उन्होंने ध्यान को संन्यासियों की नहीं, बल्कि गृहस्थ जीवन की यात्रा बना दिया।
आज उनकी शिक्षाओं का अनुसरण Heartfulness संस्था कर रही है, जिसकी अगुवाई दाजी कर रहे हैं।—
आज का यह दिन –
शब्दों का नहीं, अनुभूति का दिन है।
न कोई आयोजन, न कोई उद्घोष।
सिर्फ एक मौन समर्पण — हृदय की उस गति में, जहाँ बाबूजी आज भी धड़क रहे हैं।—
बाबूजी कहीं नहीं गए हैं।
वो वहीं हैं —
जहाँ कोई मन चुपचाप बैठकर ईश्वर को खोजता है।
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