सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को बाल विवाह के मामलों पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने कहा कि बाल विवाह रोकने के लिए समाज में जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है, केवल सजा के प्रावधानों से कुछ नहीं होगा।
CJI ने कहा, “हमने बाल विवाह की रोकथाम पर बने कानून (PCMA) के उद्देश्य को समझा। इसमें बिना किसी नुकसान के सजा देने का प्रावधान है, जो अप्रभावी साबित हुआ है। हमें अवेयरनेस कैंपेनिंग की जरूरत है।”
इस मामले की सुनवाई 10 जुलाई को की गई थी, जब याचिका NGO “सोसाइटी फॉर एनलाइटनमेंट एंड वॉलंटरी एक्शन” द्वारा 2017 में दाखिल की गई थी। NGO का आरोप था कि बाल विवाह निषेध अधिनियम को सही तरीके से लागू नहीं किया जा रहा है।
पिछली सुनवाई में, सुप्रीम कोर्ट ने जागरूकता अभियानों और प्रशिक्षण पर सवाल उठाते हुए कहा कि ये कार्यक्रम वास्तव में जमीनी स्तर पर बदलाव नहीं ला रहे हैं। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने बताया कि आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र और असम जैसे राज्यों में बाल विवाह के मामले अधिक देखे गए हैं।
विधि अधिकारी ने यह भी कहा कि 34 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 29 ने बाल विवाह पर आंकड़े उपलब्ध कराए हैं। पिछले तीन वर्षों में बाल विवाह के मामलों में 50% की कमी आई है।
असम में बाल विवाह के मामलों में 81% की कमी
असम में बाल विवाह के खिलाफ कई फैसले लागू किए गए हैं, जिनकी वजह से 81% कमी आई है। असम सरकार की कैबिनेट ने जुलाई 2024 में अनिवार्य रजिस्ट्रेशन लॉ लाने के लिए एक बिल को मंजूरी दी थी, जो बाल विवाह को रोकने में मदद करेगा।
राष्ट्रीय बाल आयोग की याचिका
इस बीच, राष्ट्रीय बाल आयोग (NCPCR) ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की है जिसमें मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत बाल विवाह की अनुमति देने के मुद्दे पर सवाल उठाया गया है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई के लिए तैयार हो गया है।