सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल :संसद की स्थायी समितियों की बैठकों में सांसदों की उपस्थिति चिंताजनक रूप से कम देखी जा रही है। लोकसभा की एक दर्जन से अधिक स्थायी समितियों में औसतन लगभग 40% सदस्य लगातार अनुपस्थित रहते हैं। राजनीतिक दल यह चाहते हैं कि किसी भी विधेयक को सदन में पेश करने से पहले संबंधित स्थायी समिति को भेजा जाए ताकि विधेयक पर गहन विचार-विमर्श हो सके। लेकिन सांसदों की कम उपस्थिति से इस प्रक्रिया में बाधा आती है।

पिछले साल सितंबर में संसद की स्थायी समितियों का पुनर्गठन किया गया था, लेकिन तब से लेकर अब तक सांसदों की बैठक में भागीदारी में खास सुधार नहीं हुआ है। खासकर महत्वपूर्ण मामलों पर चर्चा के दौरान भी कई सांसद बैठक में शामिल नहीं होते।

हाल ही में विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने स्थायी समिति को भारत-पाकिस्तान तनाव पर जानकारी दी, जिसमें कुल सदस्यों में से केवल 24 सदस्य उपस्थित थे। यह उपस्थिति संसद की गंभीरता और जिम्मेदारी पर सवाल खड़े करती है।

स्थायी समितियां संसद का महत्वपूर्ण हिस्सा होती हैं, जहां विधायकों के समूह गहन जांच-पड़ताल करते हैं, नीतिगत सुझाव देते हैं और विभिन्न मुद्दों पर विशेषज्ञों से जानकारी लेते हैं। सांसदों की उपस्थिति में कमी से न केवल विधायी प्रक्रिया प्रभावित होती है, बल्कि जनप्रतिनिधित्व की जिम्मेदारी भी कमजोर पड़ती है।

विशेषज्ञों का मानना है कि सांसदों को स्थायी समितियों की बैठकों में नियमित और सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए ताकि लोकतंत्र मजबूत हो और नीतिगत फैसलों में व्यापक सहमति बन सके।

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