सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: आप देख रहे हैं ITDC News का Deep Analysis, जहां हम आपको जटिल मामलों के हर पहलू से रूबरू कराते हैं। आज के एपिसोड में हम चर्चा करेंगे ‘केरल के 1990 के अंडरवियर चरस केस’ पर। एक ऐसा मामला जिसने तीन दशक बाद फिर सुर्खियां बटोरी हैं।

मामले की शुरुआत

यह कहानी शुरू होती है 1990 में। ऑस्ट्रेलियाई नागरिक एंड्रयू साल्वाटोर सेरवेली को तिरुवनंतपुरम एयरपोर्ट पर 61.5 ग्राम चरस के साथ गिरफ्तार किया गया। चरस को उनके अंडरवियर में छिपाकर रखा गया था। इस तस्करी के मामले में वकील एंटनी राजू ने सेरवेली का बचाव किया। ट्रायल कोर्ट ने उन्हें एनडीपीएस एक्ट के तहत दोषी मानते हुए 10 साल की सजा सुनाई।

हाईकोर्ट की सुनवाई और बरी होना

लेकिन, मामला तब पलटा जब सेरवेली ने हाईकोर्ट में अपील की। उन्होंने दावा किया कि जिस अंडरवियर में चरस मिली थी, वह उनके शरीर पर फिट ही नहीं होता। हाईकोर्ट ने इस आधार पर उन्हें बरी कर दिया। यहां से सवाल उठा, क्या सबूतों के साथ छेड़छाड़ हुई थी? और क्या वकील एंटनी राजू ने अंडरवियर बदल दिया था?

वकील एंटनी राजू पर आरोप

1994 में, वकील एंटनी राजू और एक अदालत के क्लर्क के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज हुआ। लेकिन इसके बाद भी, राजू ने राजनीति में प्रवेश किया और केरल के परिवहन मंत्री बने। अब यह मामला एक राजनीतिक विवाद बन चुका है।

सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई

अब, 34 साल बाद, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई फिर से शुरू करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने ट्रायल को एक साल के भीतर पूरा करने का निर्देश दिया है। न्यायालय ने साफ किया कि हाईकोर्ट ने दंड प्रक्रिया संहिता की गलत व्याख्या की थी।

मामले के व्यापक प्रभाव

यह मामला सिर्फ एक तस्करी का नहीं है। यह भारत की न्यायिक प्रक्रिया और सबूतों की पवित्रता पर गंभीर सवाल खड़े करता है। अब सवाल यह है, क्या तीन दशक पुराने इस मामले में न्याय हो पाएगा? और क्या यह केरल की राजनीति पर प्रभाव डालेगा?

समापन

तो यह था हमारा डीप एनालिसिस ‘अंडरवियर चरस केस’ पर। आप इस मामले पर क्या सोचते हैं? हमें कमेंट सेक्शन में बताएं