अमेरिकी बच्चों को गणित के आसान सवाल भी परेशान कर रहे हैं। दशकों से यहां के छात्र गणित की अंतरराष्ट्रीय स्तर की परीक्षाओं में खराब प्रदर्शन कर रहे हैं।

अमेरिकी कंपनियां साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और गणित के कौशल वाले लोगों के लिए बेसब्र हैं। परमाणु इंजीनियर, सॉफ्टवेयर डेवलपर्स और मशीनिस्ट की भारी कमी है। ऐसे में 30% अमेरिकियों का साधारण गणित के साथ सहज होना चिंता की बात है।

राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा नेशनल असेसमेंट ऑफ एजुकेशनल प्रोग्रेस के नतीजे तो और भी डराने वाले हैं। 13 साल के बच्चों का स्कोर 2012 की तुलना में 5 पॉइंट तक घट गया है।

कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के एलन शॉएनफेल्ड कहते हैं कि अमेरिका की यह समस्या एक सदी से भी पुरानी है। विश्व युद्ध के दौरान उसे इसी के चलते परेशान होना पड़ा था

क्योंकि तब हथियारों का हिसाब-किताब रखने के लिए भी मुश्किल से लोग मिल पाते थे। 1890 में इस समस्या से निपटने की ईमानदार कोशिश की गई थी।

इसके बाद 1950 में शीत युद्ध के दौरान बच्चों का कमजोर गणित चिंता का विषय बना, जब तत्कालीन सोवियत संघ द्वारा स्पुतिनक सैटेलाइट की लॉन्चिंग के बाद वैचारिक समझ पर केंद्रित नया कोर्स लागू किया गया।

1970 में मूल की ओर लौटने का तर्क देकर इसे खारिज कर दिया गया। 1990 के बाद यह राजनीतिक मुद्दा हो गया।

रूढ़िवादी पारंपरिक गणित के पक्षधर हैं, जिनमें अल्गोरिदम याद करना और पहाड़े रटना आदि शामिल है। वहीं, प्रगतिवादी वैचारिक दृष्टिकोण का समर्थन करते हैं, जिसमें याद करने पर जोर नहीं है।