अमेरिकी अधिकारियों द्वारा गौतम अदानी और उनके भतीजे सागर अदानी पर लगाए गए धोखाधड़ी और रिश्वतखोरी के आरोपों ने भारत के कॉर्पोरेट और राजनीतिक परिदृश्य को हिलाकर रख दिया है। ये आरोप सौर ऊर्जा परियोजनाओं के अनुबंध हासिल करने में अनैतिक तरीकों पर केंद्रित हैं, जो भारत में कॉर्पोरेट प्रशासन, नियामक निगरानी और राजनीतिक संरक्षण की गहराई से जुड़ी समस्याओं को उजागर करते हैं।

अदानी समूह का तेजी से उभार, जो भारत की आर्थिक क्षमता का प्रतीक माना जाता है, हमेशा राजनीतिक संरक्षण के आरोपों से घिरा रहा है। हालांकि, अदानी समूह ने इन आरोपों से इनकार किया है, लेकिन विदेशी न्यायिक निकाय द्वारा उठाए गए इस कदम ने हमें आत्मनिरीक्षण के लिए मजबूर किया है: क्या भारत की नियामक प्रणालियाँ इतनी मजबूत हैं कि वे नैतिक व्यापारिक प्रथाओं की रक्षा कर सकें, या वे एक ऐसे वातावरण को बढ़ावा दे रही हैं जहां वित्तीय अनियमितताएं फल-फूल सकें?

यह प्रकरण ऐसे समय में आया है जब भारत वैश्विक निर्माण और निवेश हब के रूप में अपनी पहचान बना रहा है। ‘मेक इन इंडिया’ जैसे अभियानों के जरिए विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने की कोशिशें जारी हैं। लेकिन इस तरह के घोटाले देश की छवि खराब कर सकते हैं और विदेशी निवेशकों का भरोसा कम कर सकते हैं।

यह घटना व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता को भी रेखांकित करती है। सेबी (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) जैसे नियामक निकायों को निर्णायक रूप से कार्रवाई करनी होगी और जवाबदेही सुनिश्चित करनी होगी। यदि अनुपालन और प्रवर्तन में ढिलाई बरती जाती है, तो अन्य कॉर्पोरेट दिग्गजों को भी मनमानी करने की छूट मिल सकती है। इसलिए, व्हिसलब्लोअर सुरक्षा को मजबूत करना, अनियमितताओं के लिए कड़े दंड लागू करना और कॉर्पोरेट नैतिकता को बढ़ावा देना अनिवार्य है।

इसके अलावा, न्यायपालिका की भूमिका भी अहम है। भारत में हाई-प्रोफाइल मामलों में अक्सर देरी होती है, जो न्याय प्रक्रिया में जनता के विश्वास को कमजोर करती है। कॉर्पोरेट धोखाधड़ी के मामलों का शीघ्र और निष्पक्ष निपटारा सुनिश्चित करना जरूरी है।

अदानी समूह के लिए यह मामला उसकी साख और नैतिक प्रतिबद्धता की परीक्षा है। भारत की अर्थव्यवस्था के लिए यह याद दिलाने वाला क्षण है कि स्थायी विकास का आधार नैतिकता होनी चाहिए, न कि अवसरवाद।

सरकार, नियामकों और कॉर्पोरेट क्षेत्र की सामूहिक जिम्मेदारी है कि वे भरोसा बहाल करें। जैसे-जैसे भारत वैश्विक आर्थिक शक्ति बनने की ओर अग्रसर है, ऐसे घोटाले इसकी व्यापारिक छवि को परिभाषित नहीं कर सकते। अदानी समूह का यह प्रकरण, भले ही शर्मिंदगी का कारण हो, एक ऐसा मोड़ बन सकता है जहां पारदर्शिता और जवाबदेही को मजबूत करने की प्रतिबद्धता को दोहराया जाए।

दुनिया देख रही है – भारत इस मुद्दे को कैसे सुलझाता है, यह आने वाले वर्षों के लिए एक मिसाल कायम करेगा।

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