नई दिल्ली । काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर में बनने वाला हर भवन अपने एक विशिष्ट नाम से जाना जाएगा। उनका जल्द ही नामकरण होगा। यो नाम काशी की संस्कृति, साहित्य, जीवनशैली आदि से जुड़े होंगे। इसके लिए मंदिर प्रशासन शहरवासियों के बीच एक प्रतियोगिता कराएगा। प्रतियोगिता में अधिक लोगों की पंसद के नाम भवन से जोड़े जाएंगे। करीब 52000 वर्ग मीटर में बन रहे कॉरिडोर परिक्षेत्र के भवनों के साथ मंदिर परिसर की चारों दिशा में निर्माणाधीन प्रवेश द्वारों के भी नामकरण होंगे। अभी ये प्रवेश द्वार संख्या के आधार पर पहचाने जाते हैं।  विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह तक जाने के लिए पहले भी चार प्रवेश द्वार थे। चौक-विश्वनाथ मार्ग पर पड़ने वाले गेट को वीआईपी, छत्ताद्वार और ज्ञानवापी गेट के नाम से जाना जाता था। गोदौलिया चौराहे से आने वाले मार्ग के गेट को ढुंढिराज प्रवेश द्वार, दशाश्वेध घाट, लालिता, कालिका गली से मंदिर जाने वाले प्रवेश मार्ग को सरस्वती द्वार और मणिकर्णिका घाट से आने वाले मार्ग के प्रवेश द्वार को नीलकंठ गेट के नाम से जाना जाता था। वर्तमान में नीलकंठ व सरस्वती गेट का अस्तित्व खत्म हो गया है।  कॉरिडोर का निर्माण के बाद दो मुख्य प्रवेश द्वार रहेंगे। इनमें एक गेट गोदौलिया और दूसरा ललिता घाट के पास प्रस्तावित है। इनके अलावा मंदिर परिसर के चारों ओर चार प्रवेश द्वार होंगे। अभी किस प्रवेश द्वार से कौन श्रद्धालु आएगा और जाएगा, इस पर निर्णय होना बाकी है। इन चारों प्रवेश द्वारों के नामाकरण का फैसला लिया गया है। मंडलायुक्त दीपक अग्रवाल ने बताया कि विश्वनाथ कॉरिडोर में अलग-अलग 26 भवनों का निर्माण हो रहा है। इन सभी का नामाकरण किया जाएगा। ये नाम काशी और बाबा विश्वनाथ से जुड़े रहेंगे। नामों के चयन के लिए शहर के लोगों के बीच प्रतियोगिता करायी जाएगी।  काशी विश्वनाथ धाम का निर्माण करीब 64 फीसदी पूरा हो गया है। गंगा किनारे बाढ़ का पानी आने से कुछ कार्य बाधित हो गये हैं। लेकिन बाकी कार्यों को युद्धस्तर पर कराया जा रहा है। मंडलायुक्त ने बताया कि निर्माण कार्यों की रफ्तार पिछले दिनों की तुलना में काफी बढ़ी है। कॉरिडोर का काम लक्ष्य के अनुरूप नवम्बर में पूरा करा लिया जाएगा। लालिता घाट पर स्थित रहा गोयनका लाइब्रेरी के नाम से जाने जाना वाला विश्वनाथ पुस्तकालय अब इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया। कॉरिडोर में भवन के अधिग्रहण होने के बाद भवन को तोड़ दिया गया है। केवल अवशेष के रूप में महज ईंट और मलबा दिखायी दे रहा है। दरअसल, इसकी स्थापना 1910-15 के बीच नीलकंठ से मणिकर्णिकाघाट जाने वाले रास्ते पर एक मकान में हुआ था। इसे विस्तार देने के लिए बड़े उद्यमी गौरी शंकर गोयनका ने 1926 में ललिताघाट पर लगभग चार बीघे में भवन खरीदे। इस पर अंडर ग्राउंड के अलावा दो मंजिला भवन बनाया। यह पुस्तकालय संस्कृत का खजाना रहा। तंत्र, पुराण, वेद, व्याकरण, साहित्य, इतिहास, ज्योतिष, बारहों दर्शन, आगम तंत्र समेत संस्कृत जगत के सभी विषयों के ग्रंथ और पांडुलिपियां हैं।