सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल : रविन्द्र भवन में चल रहे अखिल भारतीय रूपक महोत्सव में द्वितीय दिवस केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय वेदव्यास परिसर बलाहार ,हिमाचल प्रदेश ने आचार्य रेवा प्रसाद द्विवेदी द्वारा विरचित नाटिका ‘यूथिका’की प्रस्तुति दी ।यह नाटिका मानवीय संवेदनाओं की उन गहन भावनाओं का वर्णन करती है जो समाज का एक महत्वपूर्ण अंग हैं ।इस नाटक के विषयवस्तु में लात वंश की यूथिका और मान वंश के हर्ष के मध्य प्रेम संबंध स्थापित हो जाता है ।इस विषय वस्तु को सजीव अभिनय के द्वारा दर्शाया गया ।


द्वितीय प्रस्तुति में प्रो राधावल्लभ त्रिपाठी द्वारा रचित मशकधानी नाटक की प्रस्तुति दी गई। यह एक हास्य व्यंग्य प्रेक्षणक है जो मच्छरों के आतंक को दर्शाता है ।इस हास्य व्यंग्य प्रेक्षणक में मच्छर अपनी व्यथा और समस्या को प्रस्तुत करते हुए कथा के साथ सम्बद्ध होते हैं । सामान्य जीवन के दैनिक कार्य कलापों में हास्य किस प्रकार उत्पन्न होता है यह इस संस्कृत रुपक में प्रदर्शित हुआ। इसी दिन कालीकट आदर्श संस्कृत विद्यापीठ, केरल ने धर्मचक्रप्रवतर्नम नामक नाटक की प्रस्तुति दी।


गुजरात विश्वविद्यालय के आचार्य वसंत कुमार भट्ट द्वारा लिखित इस विशिष्ट नाटक धर्मचक्रप्रवर्तनम का कथानक शशपण्डित, विवेचन और परिव्राजक चरित्रों पर आधारित है ।भगवान इंद्र को किस प्रकार शशपण्डित प्रसन्न करता है और इंद्र से अगले जन्म में बुद्धत्व का वरदान प्राप्त करता है यह कथा इस नाटक में दर्शायी गई।गुरुवायुर, केरल से आए नाट्य दल ने कविवर राधा वल्लभ त्रिपाठी द्वारा लिखित नाटक सुशीला का मंचन किया ।महिलाओं की पीड़ा को दर्शाता हुआ यह प्रसिद्ध नाटक मुख्य पात्र सुशीला द्वारा महिलाओं की शक्ति को स्वयं पहचान कर प्रत्यक्ष प्रकट करने के भाव के साथ समाप्त होता है। द्वितीय दिन नाट्यशास्त्र अध्ययन अनुसंधान केंद्र केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय भोपाल परिसर ने देवशुनी रूपक प्रस्तुत किया।
ऋग्वेद की कथा पर आधारित इस रूपक में दर्शाया कि भ्रष्टाचार व अनैतिकता जगत में व्याप्त होने पर भगवान इंद्र किस प्रकार सृष्टि के पशु पक्षीयों की सहायता से सत्य व मूल्य को पुनर्स्थापित करते हैं। शास्त्रों में सदैव ही सृष्टि के समस्त अंगों को महत्व दिया गया है। देवताओं के गोधन को उनके शत्रु पणि चुरा लेते हैं ।गायों की खोज में सुपर्ण नामक गरुड़ को भेजा जाता है। भगवान इंद्र सरमा नामक एक श्वान को इस गोधन को ढूंढने का कार्य देते हैं ।ऋग्वेद की इस कहानी को समकालीन संदर्भ में इस नाटक में अत्यंत सजीव स्वरूप में प्रस्तुत किया गया ।
नाट्य शास्त्रअध्ययनअनुसंधान केंद्र,भोपाल परिसर ने इस नाटक को लोकगीतों के साथ लोक नाटक की प्रस्तुति के स्वरूप में चित्रित किया। संस्कृत रंगम चेन्नई से आईं नंदनी रमणी ने भगवदज्जूकीयम नाटक की प्रस्तुति देते हुए अनासक्त योग को दर्शाया। एक ओर शिष्य शांडिल्य सांसारिकता में लिप्त है तो दूसरी ओर गुरु मोक्ष के मार्ग को प्रदर्शित करता है ।भावपूर्ण अभिनय द्वारा पात्रों ने हास्य उत्पन्न करते हुए मानव जीवन के सार को प्रस्तुत किया।
रुपकों की प्रस्तुति के साथ ही निमाड़ी एवं बुन्देली लोकगीतों की भी प्रस्तुति प्रतिदिन लोक कलाकारों द्वारा की जा रही है।

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