सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल : विगत तीन दिनों से रविंद्र भवन के अंजनी सभागार में चल रहे केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के अखिल भारतीय रूपक महोत्सव का समापन हुआ । समापन सत्र के पहले कौण्डिन्य प्रहसनम,पल्लीकमलम तथा ओडिसी नृत्य की प्रस्तुति हुई। केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय निदेशक सदाशिव परिसर,पुरी, ओडिशा द्वारा प्रस्तुत कौणडिन्य प्रहसनम एक विनोद पूर्ण रूपक है जिसके आरंभ में पुराण पुरुषोत्तम जगन्नाथ और पुरुषोत्तम क्षेत्र के भोजन वैभव को प्रदर्शित किया गया है । प्रहसनम यानी एक हास्य प्रस्तुति को दर्शाते हुए इस नाटक में मानव जीवन में भोजन की आवश्यकता को बताया गया है । हास्य के माध्यम से प्रहसन ने यह संदेश दिया कि जीवन के लिए प्राण वायु- हवा के साथ-साथ भोजन भी आवश्यक होता है ।इसी दिन केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, भोपाल परिसर ने निदेशक राम चौधरी द्वारा रचित पल्लीकमलम नाटक की प्रस्तुति दी ।इस नाटक की मुख्य पात्र कमलकलिका है ।कमल कलिका ब्रह्मपद एवं तरंगिणी की पुत्री है ।कमलकलिका रूप कुमार को पसंद करती है जो कि एक अनाथ पर दार्शनिक विचार वाला साधारण नौका चालक है। किस प्रकार कमल कलिका के जीवन में उतार चढ़ाव आते हैं परन्तु अंत में वह रूप कुमार की जीवन संगिनी के रूप में अपने आप को पाती है, इस घटनाक्रम को इस नाटक में प्रस्तुत किया गया । कमलकलिका की भूमिका में जागृति जैन, रूप कुमार की भूमिका में आर्यन शर्मा,कंचनकणिका के रूप में अंजलि ,सारिका के रूप में चंड ,तरंगिणी की भूमिका में स्मृति तथा ब्रह्मपद की भूमिका में दीपक ने मंच को सजीव कर दिया। इसी दिन नाट्यशास्त्र अध्ययन अनुसंधान केंद्र की ओर निदेशक कल्याणी फगरे ने ओडिसी नृत्य की प्रस्तुति दी ।

समापन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में ब्रह्मर्षि मुदगुलनागफणी शर्मा, लब्धपद्मश्री हैदराबाद, विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ मार्गिमधु, निदेशक, कुटियाट्टमनेपथ्यकेन्द्रम, केरल, सम्मानित अतिथि के रूप में प्रो आर. जी. मुरलीकृष्ण, कुलसचिव, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली तथा सारस्वत अतिथि के रूप में डॉ मीरा द्विवेदी, संस्कृत विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय एवं निदेशक गणपति हेगड़े, प्राचार्य,एम. एल. ए. विद्यालय ,मालकेश्वरम उपस्थित रहे । कार्यक्रम की अध्यक्षता केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय भोपाल परिसर के निदेशक प्रो रमाकांत पाण्डेय ने की । समस्त अतिथियों का स्वागत कार्यक्रम के निदेशक निदेशक मधुकेश्वर भट्ट ने किया ।
समापन सत्र में कार्यक्रम के संयोजक नीलाभ तिवारी ने प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुए कहा कि चार दिन तक चला यह आयोजन भारतवर्ष के विभिन्न भागों से आए प्रतिभागियों के भावपूर्ण अभिनय से दर्शकों के मन को भाव विभोर कर गया। प्राचीन भारत से लेकर वर्तमान भारत तक के समय के प्रासंगिक विषयों पर आधारित इन नाटकों ने एक ओर समाज की विभिन्न स्थितियों पर प्रकाश डाला वहीं दूसरी ओर इसने मानव मस्तिष्क व मन के अंतर्द्वंद्व को प्रस्तुत किया।

केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के कुल सचिव प्रो आर जी मुरलीकृष्ण ने इस कार्यक्रम में अपनी विशिष्ट उपस्थिति दर्ज कराई। उन्होंने अपने उद्बोधन में कार्यक्रम के आयोजकों को बधाई देते हुए समस्त छात्र-छात्राओं , प्रतिभागियों व मार्गदर्शकों का उत्साह वर्धन किया उन्होंने कहा कि समस्त छात्र केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के प्राण वायु हैं ।उनके अध्ययन तथा पाठ्य सहगामी गतिविधियों में उत्साह पूर्ण भाग लेने से ही विश्वविद्यालय का गौरव बढ़ता है ।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, भोपाल परिसर के निदेशक प्रो रमाकांत पाण्डेय ने समस्त प्रतिभागियों की प्रशंसा करते हुए कहा कि नाट्य प्रस्तुति देने वाले समस्त कलाकार एवं प्रस्तुति को तैयार करने में योगदान दे रहे समस्त प्रतिभागी प्रशंसा के पात्र हैं। नाट्य एक ऐसी कला है जो कलाकार के स्वयं के व्यक्तित्व को निखारते हुए विभिन्न चरित्रों के सजीव प्रदर्शन के द्वारा अभिनय कलाकार व दर्शक दोनों ही के अंतर्मन व व्यक्तित्व को संवारती है ।

रस की अनुभूति से मानव मन आनंदित होने के साथ-साथ अपने अंर्तमन की जटिलताओं को भी नियंत्रित करने में सक्षम होता है। उन्होंने केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली के कुलपति श्रीनिवास वरखेड़ी को धन्यवाद दिया कि उन्होंने इस वर्ष के अखिल भारतीय रूपक महोत्सव का आयोजन करने का दायित्व केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के भोपाल परिसर को दिया ।उन्होंने संदेश दिया कि प्रतिभागियों व दर्शकों के उत्साह को देखते हुए इस प्रकार की प्रस्तुतियां भविष्य में भी होती रहेंगी ।उद्घाटन सत्र में धन्यवाद ज्ञापन प्रो सनंदन कुमार त्रिपाठी ने किया तथा संचालन कृपा शंकर शर्मा का रहा।

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