सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: हाल ही में, अजमेर की सिविल कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें दरगाह की जमीन को ‘श्री संकटमोचन महादेव विराजमान मंदिर’ घोषित करने की मांग उठाई गई है। याचिका में कहा गया है कि दरगाह स्थल पर भगवान शिव का मंदिर था, जहाँ पहले पूजा और जलाभिषेक की विधियाँ आयोजित की जाती थीं।
इस याचिका में 1911 में हरविलास शारदा द्वारा लिखी गई एक पुस्तक का हवाला दिया गया है, जिसमें इस दावे का समर्थन किया गया है। अदालत ने याचिका को स्वीकार करते हुए दरगाह कमेटी और संबंधित पक्षों को नोटिस जारी कर दिया है। मामले की अगली सुनवाई 20 दिसंबर को निर्धारित की गई है।
अजमेर शरीफ दरगाह, सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का मकबरा है, जिसे 12वीं सदी में स्थापित किया गया था। यह दरगाह विभिन्न धर्मों के लोगों के लिए आस्था का केंद्र मानी जाती है और साम्प्रदायिक सौहार्द का प्रतीक है।
दरगाह के प्रमुख नसरुद्दीन चिश्ती ने याचिका को खारिज करते हुए कहा, “ऐसे दावे समाज में अशांति फैला सकते हैं। यह धार्मिक सौहार्द बिगाड़ने का एक प्रयास है।” उन्होंने यह भी जोड़ते हुए कहा कि दरगाह का इतिहास सदियों पुराना है और यह हमेशा से ही सभी धर्मों के लोगों के लिए खुला रहा है।
ऐतिहासिक दृष्टि से, दरगाह का निर्माण सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी ने शुरू किया था, जिसे बाद में मुगल सम्राटों द्वारा विकसित किया गया। यह स्थल आज भी सांप्रदायिक सौहार्द और धार्मिक सहिष्णुता का प्रतीक बना हुआ है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रकार के विवादों के समाधान के लिए ऐतिहासिक तथ्यों और प्रमाणों का गहन अध्ययन आवश्यक है, ताकि धार्मिक और सांस्कृतिक शांति बनी रहे। इससे समाज में एकता और समझ बढ़ेगी, और किसी भी प्रकार की अशांति से बचा जा सकेगा।