सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: मध्यप्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का आयोजन राष्ट्रीय हिंदी विज्ञान सम्मेलन 2024 के अंतर्गत आयोजित किया गया। कार्यक्रम का विषय था “अमृत काल में राष्ट्रीय वैज्ञानिक चेतना का उन्नयन” के अंतर्गत “समयानुकूल कृषि प्रौद्योगिकी”। विश्वविद्यालय में आयोजित इस कार्यक्रम में विज्ञान और कृषि के क्षेत्र के अनेक महारथियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. प्रभाशंकर शुक्ल, कुलपति, नॉर्थ ईस्ट हिल यूनिवर्सिटी, शिलांग उपस्थित रहे। इस अवसर पर मुख्य वक्ता एवं सारस्वत अतिथि के रूप में डॉ.एन.के गुप्ता, निदेशक, शिक्षा एस.के.एन.कृषि विश्वविद्यालय, जोबनेर जयपुर (राजस्थान) उपस्थित थे। विशिष्ट अतिथियों के रूप में मनोज पटेरिया निदेशक राष्ट्रीय विज्ञान संचार सूचना संसाधन संस्थान, डॉ. प्रवीण रामदास, सह संगठन मंत्री विज्ञान भारती, नई दिल्ली, और संजय सिंह कौरव, प्रांतीय सचिव, विज्ञान भारती मध्य भारत प्रांत, छत्तीसगढ़ शामिल थे। इस मौके पर कार्यक्रम की अध्यक्ष भोज मुक्त विश्वविद्यालय के प्रो. संजय तिवारी द्वारा की गई साथ ही कार्यक्रम के संयोजक एवं विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. सुशील मंडेरिया भी कार्यक्रम में मौजूद रहे। विश्वविद्यालय में आयोजित इस कार्यक्रम में सभी उपस्थित विशिष्ट अतिथियों, विद्वानों ने कृषि के क्षेत्र में विज्ञान की उपलब्धियां एवं उपयोगिता को विस्तार पूर्वक अपने उद्बोधन में प्रस्तुत किया।
सर्वप्रथम मनोज पटेरिया ने कहा कि, वैज्ञानिक चेतना में कृषि पर पतंजलि विश्वविद्यालय बहुत गहरी खोज कर रहा है। इसकी सूचना मुझे कुछ ही समय पूर्व मिली है और जल्द ही इसका परिणाम भी हमें सफलता के रूप में ही प्राप्त होगा ऐसी उम्मीद है। इसमें विशेष कर कृषि की उत्पादकता एवं उत्पादन में विशेष उपयोगी मौसम का हाल अपने स्तर से बात कर सभी को जानकारी प्रदान करते थे। उन्होंने यह यह भी कहा कि आधुनिक कृषि पर बहुत अधिक कार्य हुए हैं परंतु एक विशेष पायदान तक पहुंचाने के लिए हमें और प्रयास करना होगा। हम जैविक खेती से प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ रहे हैं जिसे वर्तमान भाषा में ऑर्गेनिक फार्मिंग का नाम दिया गया है। श्री पटेरिया ने यह भी स्पष्ट किया कि “लैब टू लैंड” के साथ-साथ हमें आज के समय को ध्यान में रखते हुए “लैंड टू लैब” पर विशेष ध्यान देना चाहिए। किसी भी खेती को जब हम प्रायोगिक अवस्था में लेंगे तो आवश्यक बदलाव आएगा और उसकी गुणवत्ता भी अच्छी होगी। उन्होंने विभिन्न उदाहरण जिसमें भाखरा नांगल डैम, प्राचीन समय में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए अनाज के रखरखाव में नीम एवं दिए के इस्तेमाल जैसे कुछ अन्य महत्वपूर्ण कृषि क्षेत्र के उदाहरण देकर अपने विचार प्रस्तुत किया।
बीज वक्ता के रूप में उपस्थित डॉ. एन. के. गुप्ता ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि, विषम परिस्थितियों में कृषि कैसे की जाती है इसका उदाहरण भारतीय किसान है। भारतीय किसानों ने कोरोना के दौरान भी पूरे देश में अनाज की कमी नहीं आने दी। जब पूरा देश कोरोना की मार झेल रहा था और घर पर बैठ के विभिन्न प्रकार के व्यंजनों का सेवन कर रहा था तब हमारे भारतीय किसान अपने-अपने खेतों में पसीना बहा कर हमारे लिए अनाज की बुवाई और कटाई में जुटे हुए थे। उन्होंने राजस्थान के किसानों के जीवन यापन का उदाहरण देकर कहा कि, राजस्थान के किसान कभी भी सिर्फ कृषि पर निर्भर नहीं होते हैं। राजस्थान में वन्य जीवों की संख्या बहुत अधिक है। राजस्थानी किसान वन्यजीवों के लिए भी अपना समय व्यतीत करते हैं। हमारे विश्वविद्यालय के पास 35000 करोड़ लीटर वॉटर स्टोरेज फैसिलिटी उपलब्ध है। राजस्थान में आज भी कृषि में बहुत कम पेस्टिसाइड का उपयोग किया जाता है। क्योंकि भारत प्राचीन काल से ही कृषि प्रधान देश रहा है और इसी के चलते भारत को सोने की चिड़िया भी कहा जाता रहा है। आज के किसान, बढ़ती आबादी को ध्यान में रखते हुए और अधिक मेहनत के साथ भारत में अनाज उत्पादकता में सफल हुए हैं। इतना ही नहीं आज भारत के पास इतना अनाज है कि वह चाहे तो अपने देश की जनसंख्या के साथ-साथ दूसरे देश को भी अनाज उपलब्ध कराने में सक्षम है।
संजय सिंह कौरव ने अपनी बात रखते हुए कहा कि, हम उस देश में रहते हैं, जहां किसान हित की बातें भी किसान आसानी से समझ नहीं पाते। यह उस अंग्रेजी का दुष्प्रभाव है। मेरा मानना है कि, विज्ञान मातृभाषा में उपलब्ध होना चाहिए। कृषि के क्षेत्र में मातृभाषा बहुत उपयोगी होती है। हम जिस भी राज्य में देश में कृषि के क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं हमें वहां की मातृभाषा से परिचित होना एवं बोलना आना आवश्यक है। मातृभाषा में हृदय की बात हृदय तक आसानी से पहुंचती है। समाज की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए लैंड टू लैब का कॉन्सेप्ट बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी से हम लैब में समाज की आवश्यकताओं को वैज्ञानिकों के माध्यम से पूर्ण करने में सफल हो पाएंगे। उन्होंने कहा कि, किसान की समस्याओं का निवारण करना ही विज्ञान का लक्ष्य है। अक्सर शोध पहले होता है और बाद में प्रौद्योगिकी तय होती है। हमारे हृदय की संवेदना हमारी मातृभाषा में होती है। इसीलिए भारतीय हिंदी विज्ञान का कार्यक्रम भोपाल में ही आयोजित किया गया उन्होंने कहा कि, भौगोलिक दृष्टि से भारत में सर्वाधिक जमीन खेती के लिए उपलब्ध है। उन्होंने सरकार की कृषि से जुड़ी विभिन्न योजनाओं की जानकारी देते हुए कहा कि, वर्तमान समय में किसानों को जैविक छिड़काव के लिए ड्रोन को उपयोग में लाने के लिए शिक्षित करना होगा और साथ ही ऐसे ही कुछ बड़े कदम कृषि के क्षेत्र में उपलब्धता के लिए उठाने होंगे।
प्रवीण रामदास ने अपने वक्तव्य में कहा कि, स्वदेशी विज्ञान मतलब भारत का विज्ञान और भारत के लिए विज्ञान। हर देश अपनी मातृभाषा में पुरस्कृत होते हैं । विज्ञान की शिक्षा मातृभाषा में बहुत महत्वपूर्ण है। साइंस कम्युनिकेशन का एक रूल है कि इंडिया में अगर कोई प्रयोगशाला में काम करता है तो हिंदी आना महत्वपूर्ण है। हमारे मध्य प्रदेश में जो पुराने किसानों ने कृषि के क्षेत्र में अपना योगदान दिया है वह हमें नहीं भूलना चाहिए। हमें इस बात को भी ध्यान रखना चाहिए कि हमारा देश कृषि प्रधान देश रहा है।
मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित डॉ. प्रभा शंकर शुक्ला ने अपने उद्बोधन में कहा कि, आज की युवा पीढ़ी खेतों में काम नहीं करना चाहती और हम यह सोचते हैं कि 25 वर्षों बाद हमारा देश कैसा होगा, 200 वर्षों बाद हमारा देश कैसा बनेगा कृषि के क्षेत्र में हम क्या तरक्की कर पाएंगे यह हमने अभी से सोचना शुरू कर दिया है। नालंदा जैसे कई अन्य विश्वविद्यालय हमारे देश के अभिन्न अंग रहे हैं।
ऑर्गेनिक फार्मिंग पर बात करते हुए कहा कि, NEP ने देश में ऐसा कहा है कि, रीजनल लैंग्वेज में साहित्य को विकसित करें। ऐसा करने से हमारे देश की मातृभाषा हिंदी भी विकसित होगी। साथ ही विदेशी भाषा को भी प्राथमिकता दिए जाने को कहा जिससे सभी देश क्षेत्र में एवं हर जगह कृषि के क्षेत्र में विकास करना आसान होगा। डॉ शुक्ला ने स्वयं विभिन्न भाषाओं में “आपका स्वागत है” वाक्य को बोलकर सभी को चकित कर दिया। उन्होंने कहा कि, हमें गर्व है नालंदा विश्वविद्यालय में आज भी 11 देश के लोग पढ़ रहे हैं।
सरकार का एक अनुमानित आंकड़ा है कि 2047 तक देश की जनसंख्या लगभग 170 करोड़ से ऊपर होगी ऐसे में हम देश के लोगों को भोजन उपलब्ध कराने में उस समय तक इतनी उत्पादकता के साथ सक्षम हो यह जरूरी नहीं है इस हेतु हमें अभी से देश में कृषि और ऑर्गेनिक फार्मिंग को बढ़ावा देते हुए भोजन के उत्पादकता बढ़ाने की आवश्यकता है। 2047 तक जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए लगभग 100 मिलियन टन भोजन की आवश्यकता होगी इसे हेतु हमें अभी से प्रयासरत होना होगा। पर्याप्त मात्रा में अन्य उत्पादन या कृषि को बढ़ाने के लिए अनाज के साथ-साथ पानी की भी बहुत बड़ी मात्रा में आवश्यकता होती है। विश्व में इकोनॉमी की दृष्टि से भारत पांचवें स्थान पर है। दूध के उत्पादन में हम पहले स्थान पर हैं। अनाज के उत्पादन में हम दूसरे स्थान पर हैं। दिन प्रतिदिन मौसम में आ रहे बदलाव के चलते हैं हमारे देश के किसानों को कृषि में विभिन्न प्रकार की बाधाओं का भी सामना करना पड़ रहा है। हमें गर्व है कि हमारे पास नॉलेज पूर्ण युवा इस देश में मौजूद हैं। उन्होंने क्रोनो बायोलॉजी पर ध्यान आकर्षित करते हुए साइंटिफिक दृष्टि से हमारे जीवन पूरे बदलाव है। यहां एक प्रकार से हम अपने स्वयं की क्रोनोलॉजी के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। हमें अपनी क्रोनो बायोलॉजी को सुधारने के लिए स्वयं दृष्टिबद्ध होना होगा। अपने जीवन और अपने दिनचर्या में बदलाव लाकर ही हम अपना क्रोनो बायोलॉजिकल सिस्टम सुधार पाएंगे। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि, हमें फार्मर प्रोड्यूसिंग क्षेत्र में काम करना होगा। हमें नेचुरल फार्मिंग के माध्यम से दलहन तिलहन आदि फसलें लगाने की जरूरत है। उन्होंने पोस्ट हार्वेस्टिंग को भी अपने वक्तव्य में सुमार करते हुए कहा कि एक और जहां कृषि से हम अनाज उत्पादन कर रहे हैं वही उसके समीप में उसकी क्लीनिंग और पैकेजिंग पर भी ध्यान देने की और काम करने की आवश्यकता है। अच्छी क्वालिटी का अनाज अच्छी पैकिंग के साथ उपलब्ध कराना आज के समय की मांग है। उन्होंने बताया कि पूरे भारत में फार्मिंग पर नजर रखने का काम FPO करता है। उन्होंने अपने वक्तव्य में कार्बन के क्षेत्र में भी प्रकाश डालते हुए कहा कि कार्बन ट्रेडिंग के क्षेत्र में हमारे किसानों को ट्रेनिंग की आवश्यकता है। कार्बन ट्रेडिंग करके ही हम देश में कितना ऑक्सीजन बचा है विभिन्न क्षेत्रों से जानकारियां प्राप्त कर सकते हैं। हमें सिर्फ कृषि से अनाज ही नहीं पैदा करना है। हमें इसके साथ-साथ देश में अनाज की बिक्री अच्छे से अच्छी हो इस पर भी ध्यान देना आवश्यक है इस हेतु इसकी पैकेजिंग एक बहुत बड़ा पहलू है। हमारे देश में 18% जीडीपी हमें कृषि से मिलती है।
प्रो. तिवारी ने अपने उद्बोधन में कहा कि, ICER ने 187 ऐप लॉन्च किए हैं। वर्तमान में कृषि के क्षेत्र में भारत काफी हद तक आत्मनिर्भर है। उन्होंने प्राचीन समय में खाद्यान्न के क्षेत्र में भारत में पर्याप्त अनाज ना होने पर हो रही समस्याओं का जिक्र करते हुए कहा कि हमें उस समय अपने देश की जनसंख्या को जीवित रखने के लिए बाहर के अन्य देशों से अनाज आयात करना पड़ता था। कोलकाता एवं भारत के कुछ अन्य राज्यों में जब जरूरत से ज्यादा गर्मी से बेहाल और अनाज की कमी के चलते 40 लाख लोगों की मृत्यु हुई थी। प्रो. तिवारी ने भारत में अनाज की कमी और अस्त व्यस्त जनजीवन पर चर्चा की। उन्होंने कहा चर्चिल का कहना था कि, भारत में अनाज की कमी के लिए खुद भारतीय जिम्मेदार है, वह मरे या जिएं हमें फर्क नहीं पड़ता। उन्होंने केंद्र शासन द्वारा कृषि के क्षेत्र में पीएम किसान योजना के सहारे किसानों को विभिन्न प्रकार के लाभों पर भी चर्चा की। ICER द्वारा चलाई गई विभिन्न ऐप्स से हमें जुड़ना चाहिए ऐसा करने से हम कृषि से जुड़ने का एक अच्छा अवसर प्राप्त होगा। हर स्थान में अंग्रेजी के उपयोग से आज कई चीजे प्रभावित हो रहे हैं। मेरा मानना है कि अपने देश की वृद्धि के लिए हमें मातृभाषा का उपयोग हर क्षेत्र में करना आवश्यक है। जिस दिन हम हिंदी को हर क्षेत्र में अपना लेंगे उस दिन हम देश को एक बड़े पड़ाव पर ले जा सकेंगे। हमें विश्व गुरु बनने के लिए मातृभाषा का निर्वाहन एक बार फिर करना होगा।
आभार प्रदर्शन करने से पूर्व विश्वविद्यालय के डॉ. सुशील मंडेरिया ने कृषि के क्षेत्र में अपने विचार रखते हुए कहा कि, हम हर्षित हैं कि पूरे विश्व में हमारे पास सबसे अधिक लार्जेस्ट लैंड इन द वर्ल्ड फॉर कृषि उपलब्ध है। हम हमारे मॉडर्न ज्ञान को कृषि के क्षेत्र में समझदारी से उपयोग करें तो यह कृषि के क्षेत्र में चार चांद लगा देने के बराबर होगा। उन्होंने कई प्राकृतिक प्राचीन पद्धतियों का उदाहरण देते हुए कहा कि, हमारे पूर्वज कृषि और मौसम के क्षेत्र में कई विभिन्न प्राकृतिक पद्धतियों का इस्तेमाल करके मौसम का पूर्वानुमान लगाकर ही नई फसल रोपने और काटने का काम करते थे। वह अपनी पद्धतियों से यह पूर्व अनुमान आसानी से लगा लेते थे की साल में कितने महीने कृषि के लिए अच्छे हैं और कितने महीने सूखे बीतेंगे।
कार्यक्रम का संचालन विश्वविद्यालय के निदेशक एवं कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डॉ. रतन सूर्यवंशी द्वारा किया गया। कार्यक्रम के अंत में आभार प्रदर्शन विश्वविद्यालय के कुल सचिव एवं कार्यक्रम के संयोजक डॉ मंडेरिया द्वारा किया गया। कृषि आधारित कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के समस्त अधिकारियों शिक्षकों कर्मचारी एवं विद्यार्थी सभागार में उपस्थित रहे।