आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस/आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल : बहुत कम लोगों को पता है कि आशुतोष राणा अभिनेता नहीं बल्कि नेता बनना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने स्टूडेंट यूनियन भी जॉइन किया था। लोगों को लगता था कि वे एग्जाम में पास नहीं हो पाएंगे। हालांकि, जब रिजल्ट आया तो आशुतोष फर्स्ट डिवीजन में पास हुए। उनकी मार्कशीट को ट्रॉली में रखकर बैंड बाजे के साथ नगर में घुमाया गया था।
आशुतोष राणा ने खुद ही अपना नामकरण किया है। घर में पूजन के दौरान पंडित जी ने ॐ आशुतोषाय नमः का जाप किया। इस मंत्र से प्रभावित होकर उन्होंने अपना नाम आशुतोष रख लिया। आशुतोष जब पहली बार महेश भट्ट से मिले तो उनके पांव छू लिए। ये बात महेश भट्ट को रास नहीं आई थी। उन्होंने इसके लिए आशुतोष को आगे से ऐसा करने से मना कर दिया था। आशुतोष ने ये बातें दैनिक भास्कर को एक्सक्लूसिव इंटरव्यू के दौरान बताईं।
खुद से किया नामकरण, मंत्रों से प्रभावित होकर नाम ‘आशुतोष’ रखा
आशुतोष राणा ने अपने नामकरण के पीछे की कहानी बताते हुए कहा, ‘मैं साढ़े तीन साल का था। माता-पिता के साथ एक पूजन में बैठा था। उस वक्त तक मेरा नामकरण नहीं हुआ था। सब राणा जी- राणा जी कहकर बुलाते थे।
पूजन के दौरान पंडित ने ॐ आशुतोषाय नमः का मंत्र पढ़ा। मेरे बाल मन में इस मंत्र का अर्थ जानने की जिज्ञासा हो गई। फिर पंडित जी ने बताया कि आशुतोष शिव जी का एक नाम है। शिव जी बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं, इसलिए उनका नाम आशुतोष है। मैंने अपनी मां से कहा कि आज से मेरा नाम आशुतोष होगा। अपने नाम के चुनाव से लेकर काम के चुनाव तक, सब मैंने ही किया है।’
आशुतोष के गुरु जी ने उन्हें महेश भट्ट से मिलने की सलाह दी थी
आशुतोष के जीवन में उनके गुरुदेव देवप्रकाश शास्त्री (आशुतोष इन्हें प्यार से दद्दा जी कहते हैं) का बहुत बड़ा रोल रहा है। आशुतोष ने अपने जीवन के सभी बड़े फैसले उनके कहने पर ही लिए हैं। महेश भट्ट से मिलने का भी आइडिया भी उन्होंने ही दिया था।
आशुतोष ने कहा, ‘मध्य प्रदेश के सागर यूनिवर्सिटी से मैंने अपना ग्रेजुएशन पूरा किया। तब तक मेरी मुलाकात मेरे गुरुदेव दद्दा जी से हो गई थी। ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद दद्दा जी ने कहा- बेटा अब समय आ गया है कि तुम अपने पैशन को अपना प्रोफेशन बनाओ। तुम दिल्ली जाओ, वहां नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में दाखिला ले लो।
सौभाग्य से पहले प्रयास में ही मेरा वहां दाखिला हो गया। वहां से पास आउट होने के बाद मैं फिर दद्दा जी से मिला। उन्होंने कहा कि अब दिल्ली छोड़ दो और मुंबई चले जाओ। मुंबई जाकर महेश भट्ट से मिलो। वो चाहे छोटा काम दें या बड़ा, खुशी-खुशी कर लेना। गुरु का आदेश मेरे लिए सर्वोपरि था। इसके बाद 17 जून 1994 को मैं मुंबई आया।’
महेश भट्ट को आशुतोष का पैर छूना रास नहीं आया
आशुतोष राणा मुंबई जाकर सबसे पहले महेश भट्ट से मिले थे। जाते ही उन्होंने महेश भट्ट के पांव छू लिए। ये चीज महेश भट्ट को सही नहीं लगी। आशुतोष कहते हैं, ‘जब मैं पहली बार महेश भट्ट साहब से मिला तो उनके पैर छू लिए।
भट्ट साहब थोड़ा असहज हो गए। शायद उन्हें ये चीज सही नहीं लगी। चूंकि ये मेरा कल्चर था, इसलिए मैंने ऐसा किया। भट्ट साहब ने कहा कि ये सब करने की जरूरत नहीं है, बस हाथ मिलाइए और मुझे सिर्फ महेश कहकर पुकारिए। हालांकि, बहुत सालों बाद भट्ट साहब को ये रियलाइज हुआ कि पैर छूना मेरी सभ्यता है। उन्होंने मुझसे ये बात कही भी थी।’