सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस /आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल: हमारे मस्तिष्क के पीछे वाले भाग में, जहां हिप्पोकैंपस स्थित होता है, वहां लिशन (lesion) बनने लगते हैं, यह हमारी याददाश्त कम करने लगते हैं। वैज्ञानिकों का मत है कि इनसे छुटकारा पाने के लिए औषधि या लंबी नींद के अलावा यदि कोई और प्रभावी उपाय है, तो वह ध्यान तकनीक है। जिससे ये लिशन समाप्त होने लगते हैं और आप एक शीतलता महसूस करते हैं। ध्यान, अल्जाइमर जैसी बीमारी के प्रभाव को सीमित करने में भी सहायक होता है। हमारे मस्तिष्क के बीच का हिस्सा, जिसे एमिग्डाला कहते हैं, वह भी ध्यान के प्रभाव से प्रतिक्रिया देने लगता है।

योग न केवल हमारी बुद्धि तीक्ष्ण करता है बल्कि हमारे मन और भावनाओं को भी दृढ़ बनाता है। आज, दक्षिण अमेरिका से लेकर जापान और चीन तक, हम समाज में एक व्यवहारिक विकार देख सकते हैं। आज समाज में हम एक तरफ अवसाद और दूसरी तरफ आक्रोश देख सकते हैं। व्यक्ति अवसाद से जूझ रहा है और उसे यह समझ नहीं आ रहा कि वह अपने जीवन के साथ क्या करे? आज समाज में अकेलापन बढ़ गया है। इस समय हमें जिन तकनीकों की सबसे अधिक आवश्यकता है, वे हैं ध्यान और प्राणायाम। ध्यान और प्राणायाम ऐसी स्थिति में चमत्कार की तरह काम करते हैं। यह लोगों को व्यवहारिक-मानसिक समस्याओं से निकालते हैं और स्वस्थ बनाते हैं। चलिए हम सब मिलकर एक संकल्प लें कि हमारे समाज में मानसिक स्वास्थ्य अच्छा रहे। आज भी 35 करोड़ से अधिक लोग मानसिक रोग से पीड़ित हैं। ध्यान एक औषधि की तरह है, जो हमें इन समस्याओं से बाहर निकाल सकता है। हमें इसे सभी तक पहुंचाना होगा। ध्यान इम्यूनिटी बढ़ाता है, मानसिक स्पष्टता प्रदान करता है, भावनात्मक संतुलन लाता है और आध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाता है।

योग एक ऐसा हल है, जिससे इंसान अपनी मुस्कराहट, अपनी ऊर्जा, अपनी प्रतिरक्षा शक्ति को वापस पा सकता है। योग एक हिंसा मुक्त समाज बनाने में मदद करता है। दरअसल, योग हिंसा और हिंसात्मक प्रवृत्तियों से इंसान को दूर रखता है। योग और ध्यान से हम पक्षपात से बाहर निकलकर पूरी मानव जाति को एक परिवार समझ सकते हैं। योग हमेशा कहता है ‘वसुधैव कुटुम्बकम’- हम सब एक बड़े परिवार का हिस्सा हैं। भले ही हम अलग-अलग धर्मों से आते हैं, अलग भाषाएं बोलते हैं लेकिन हम सब एक-दूसरे के हैं। हम सब उस दिव्य परमात्मा के ही हैं। तो एक पक्षपात मुक्त बुद्धि, आघात मुक्त स्मृति और कष्ट मुक्त मन हर एक मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है।

चलिए सब मिलकर करोड़ों लोगों को योग और ध्यान के पथ पर लाएं। कुछ लोगों का मानना है कि योग किसी एक धर्म का है और उनके धर्म के विरुद्ध है। मैं उन सभी लोगों को आश्वासन देना चाहता हूं कि योग कभी भी आपको आपके धार्मिक मूल्यों से दूर नहीं करता। योग आपकी राजनीतिक या धार्मिक विचारधारा को बदलने वाली वस्तु नहीं है। आप अपनी विचारधारा और धर्म मूल्यों के साथ योग को अपना सकते हैं।