सीएनएन सेंट्रल न्यूज़ एंड नेटवर्क–आईटीडीसी इंडिया ईप्रेस / आईटीडीसी न्यूज़ भोपाल : मशहूर वेटरन एक्ट्रेस वहीदा रहमान आज 86 साल की हो चुकी हैं। उम्र के इस पड़ाव में वहीदा अपना सालों पुराना फोटोग्राफी का शौक पूरा कर रही हैं, वहीं वो इस उम्र में स्कूबा डाइविंग तक करना चाहती हैं। पद्मश्री, पद्मभूषण और दादा साहेब फाल्के जैसे बड़े सम्मान हासिल कर चुकीं वहीदा जी, महज 17 साल की उम्र से हिंदी सिनेमा का हिस्सा हैं। कभी डॉक्टर बनने का सपना देखने वालीं वहीदा एक मजबूरी के चलते फिल्मों में आईं और सीआईडी, प्यासा, कागज के फूल, नीलकमल, चौदहवीं का चांद जैसी कई सुपरहिट फिल्मों का हिस्सा बनीं, लेकिन अपनी शर्तों पर।
जब गुरु दत्त, राज खोसला जैसे बेहतरीन फिल्ममेकर के साथ काम करने के लिए लोग किसी भी हद तक जाने को राजी हो जाते थे, तब 17 साल की वहीदा ने उनसे अपनी 3 शर्तें मनवाई थीं। पहली शर्त कि कभी पर्दे पर रिवीलिंग या छोटे कपड़े नहीं पहनेंगी, दूसरी कि वो अपना नाम नहीं बदलेंगी और तीसरी, मां हमेशा सेट पर उनके साथ रहेंगी।
हुनर इस कदर था कि उनकी शर्तें भी आसानी से मान ली जाती थीं, जिनकी पैरवी देव आनंद जैसे कई बड़े सितारे भी कर चुके हैं।
आज जन्मदिन के खास मौके पर पढ़िए वहीदा रहमान की जिद, हुनर और कामयाबी की कहानी-
3 फरवरी 1938 को वहीदा रहमान का जन्म चेंगलपट्टू, तमिलनाडु में जिला कमिश्नर अब्दुर रहमान और मुमताज बेगम के घर हुआ। वो चार बहनों में सबसे छोटी थीं।
मुस्लिम होने पर गुरुजी ने कर दिया था भरतनाट्यम सिखाने से इनकार
वहीदा रहमान को बचपन से ही भरतनाट्यम सीखने में दिलचस्पी थी। वहीदा ने जिद की तो उनकी मां उन्हें चेन्नई ले गईं। चेन्नई में जब वो एक गुरुजी के पास पहुंचीं, तो मुस्लिम होने पर गुरुजी ने उन्हें सिखाने से इनकार कर दिया। जब वहीदा जिद पर अड़ी रहीं, तो गुरुजी ने उनसे कुंडली लाने को कहा।
कुंडली देखकर गुरु जी ने की थी भविष्यवाणी
मुस्लिम होने पर वहीदा के पास कुंडली नहीं थी, ऐसे में गुरुजी ने खुद उनकी कुंडली बनाई थी। जैसे ही गुरुजी ने उनकी कुंडली देखी तो वो हैरान रह गए। उन्होंने कहा था, तुम मेरी आखिरी और सबसे बेहतरीन शिष्य बनोगी।
पिता की मौत के बाद डॉक्टर बनने का सपना टूटा, मजबूरी में बनीं हीरोइन
कुछ समय बाद वहीदा के पिता का ट्रांसफर विशाखापट्टनम हो गया, तो उन्होंने वहीं के सेंट जोसेफ कॉन्वेंट स्कूल से पढ़ाई पूरी की। स्कूल के दिनों में वहीदा ने ठान लिया था कि वो डॉक्टर बनेंगी। इसके लिए वो जमकर पढ़ाई करती थीं, लेकिन कुछ समय बाद ही उनका सपना टूट गया। महज 13 साल की थीं, जब अचानक पिता की मौत हो गई और मां भी अक्सर बीमार रहने लगीं।
पिता की मौत के बाद घर की आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी, ऐसे में उन्होंने अपने भरतनाट्यम के हुनर का इस्तेमाल कर रीजनल सिनेमा में छोटे-मोटे रोल करना शुरू कर दिया। कुछ पहचान वालों की मदद से उन्हें 1955 की तेलुगु फिल्म रोजुलु मरायी के एक गाने में छोटा का रोल मिला था, जिसके बाद वो कुछ तेलुगु फिल्मों में नजर आई थीं।
गुरु दत्त की नजर पड़ते ही स्टार बनीं वहीदा रहमान
वहीदा की पहली फिल्म रोजुलु मरायी का प्रीमियर हैदराबाद में हुआ था, जहां हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के नामी फिल्ममेकर गुरु दत्त भी मौजूद थे। प्रीमियर में गुरु दत्त ने जैसे ही वहीदा का अभिनय देखा, तो वो बेहद इंप्रेस हुए। मुलाकात के दौरान उन्होंने वहीदा को मुंबई आने का ऑफर दे दिया। मुंबई पहुंचते ही उन्हें गुरु दत्त के असिस्टेंट रहे राज खोसला की फिल्म सीआईडी में देव आनंद के साथ लीड रोल दे दिया गया। वहीदा रहमान, बचपन से ही देव आनंद की फैन थीं।