नई दिल्ली । केंद्र सरकार में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में बताया कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से मिली सूचना के अनुसार, पिछले तीन साल में पुलिस कस्टडी के दौरान देशभर में 348 लोगों ने अपनी जान गंवाई है। साथ ही यह भी पाया गया कि इसी अवधि में हिरासत में 1,189 लोगों को यातना भी झेलनी पड़ी। 2018 में पुलिस हिरासत में 136 लोगों की मौत हुई 2019 में 112 और 2020 में 100 लोगों की जान गई। देश के अलग- अलग राज्यों में पिछले 3 वर्षों के दौरान पुलिस हिरासत में मौत की संख्या देखा जाए तो गुजरात में यह संख्या अधिक है। गुजरात में 2018 में 13 लोगों की पुलिस हिरासत में मौत हुई, वहीं इसके बाद मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश का नंबर आता है इन दोनों ही राज्यों में 2018 में पुलिस हिरासत में मरने वालों की संख्या 12-12 है। तीसरे नंबर पर महाराष्ट्र और तमिलनाडु है यहां 11-11 लोगों की पुलिस हिरासत में मौत हुई। दिल्ली में 8 और बिहार में 5 लोगों की मौत इस वर्ष पुलिस हिरासत में हुई।
मध्यप्रदेश में 2019 में भी पुलिस हिरासत में सबसे अधिक मौत 2019 में पुलिस हिरासत में सबसे अधिक मौत मध्यप्रदेश में हुई। इस साल यहां पुलिस कस्टडी में 14 लोगों की मौत हुई। वहीं गुजरात में इस वर्ष 12 लोगों की तो वहीं तमिलनाडु में भी 12 लोगों की मौत पुलिस कस्टडी में हुई। दिल्ली में 9 लोगों की मौत हुई तो वहीं बिहार में 5 और उत्तर प्रदेश में इस वर्ष 3 लोगों की मौत हुई।
3 साल में पुलिस हिरासत में मौत की संख्या देखी जाए तो राज्यों के हिसाब से सबसे अधिक संख्या गुजरात की है। 2018 में गुजरात में जहां 13, 2019 में 12 और 2020 में यहां मरने वालों की संख्या 17 है। वहीं महाराष्ट्र में इस वर्ष 13 लोगों की जान पुलिस हिरासत में चली गई। यूपी, मप्र और बंगाल में 8-8 लोगों की जान पुलिस हिरासत में चली गई। बिहार में यह संख्या कम है इस साल 3 लोगों की मौत पुलिस हिरासत में हुई।
2017 से लेकर 2019 तक देश में राजनीतिक कारणों के लिए हत्या के मकसद के तहत कुल 213 मामले दर्ज किये गये। इनमें सर्वाधिक 98 मामले 2017 में दर्ज किये गये। 2018 में 54 और 2019 में 61 ऐसे मामले दर्ज किये गए। लोकसभा में दिये गए लिखित उत्तर के अनुसार, एनसीआरबी के 2019 तक के आंकड़े उपलब्ध हैं और आंकड़ों के अनुसार तीन साल में ऐसे मामलों में पीड़ितों की कुल संख्या 230 रही। 2017 में ऐसे सर्वाधिक मामले झारखंड में दर्ज हुए जिनकी संख्या 42 रही। इनमें पीड़ितों की संख्या भी 42 रही। 2018 में इस तरह के सर्वाधिक मामले बिहार में दर्ज किए गए जिनमें प्रकरण और पीड़ितों की संख्या 9-9 रही।