नई दिल्ली । भारत में निवेशकों के बीच हरित या ईएसजी (पर्यावरण, सामाजिक और शासन) कोषों में निवेश की धारणा कमजोर होने की वजह से बीते वित्त वर्ष 2021-22 में इन कोषों से 315 करोड़ रुपए की निकासी देखने को मिली। इससे पहले वित्त वर्ष 2020-21 में इन कोषों में 4,884 करोड़ रुपए का निवेश आया था। जानकारी के मुताबिक 2020-21 से पहले सतत या हरित कोषों में 2,000 करोड़ रुपए से अधिक का निवेश हुआ था।
विशेषज्ञों का कहना है कि आगे चलकर ईएसजी कोष भारत में संपत्ति प्रबंधकों की कुल निवेश रूपरेखा का अभिन्न अंग होंगे। हरित कोषों में ज्यादातर निवेश नई कोष पेशकश (एनएफओ) के जरिये आया है। 2020-21 में इन कोषों में उल्लेखनीय प्रवाह देखने को मिला था। इसकी वजह है कि उस साल कई ईएसजी कोष शुरू हुए थे।
रिलेटिविटी इन्वेस्टमेंट एडवाइजर्स के एक भागीदार ने कहा कि वृहद और सूक्ष्म दोनों कारणों की वजह से बाजार में अभी उतार-चढ़ाव है। परिभाषा के लिहाज से हरित कोषों की प्रकृति दीर्घावधि की होनी चाहिए। इन कोषों को दीर्घावधि के प्रतिस्पर्धात्मक लाभ को समझना होगा और कोविड बाद की परिस्थिति में अधिक मजबूती दिखानी होगी। इस तरह के कोष हमेशा कम उतार-चढ़ाव वाले होते हैं।
विशेषज्ञ के मुताबिक वैश्विक स्तर पर सतत या हरित कोषों में निवेश का प्रवाह तेजी से जारी है। इन कोषों में दिसंबर, 2021 तक निवेश का आंकड़ा 2,700 अरब डॉलर को पार कर गया था। भारत में ईएसजी की शुरुआत अभी नई है, लेकिन पिछले कुछ साल के दौरान ऐसे कई कोष शुरू हुए हैं जिनसे निवेशकों को निवेश का विकल्प मिला है।